Success Story Of IAS Topper Dr. Rajendra Bharud: अगर आप कड़ी मेहनत कर कुछ करने की ठान लें, तो अपनी किस्मत भी बदल सकते हैं. आज आपको साल 2013 में यूपीएससी (UPSC) परीक्षा पास कर आईएएस अफसर बनने वाले डॉ. राजेंद्र भारुड (Rajendra Bharud) की कहानी बताएंगे, जिनका बचपन बेहद गरीबी में गुजरा. उनके परिवार की आर्थिक स्थिति बेहद खराब थी और उनके पिता का निधन हो गया, जब वे मां के गर्भ में थे. जैसे-तैसे उनकी मां और दादी ने एक झोपड़ी में रहकर शराब बेचने का काम किया और जीवन को आगे बढ़ाया. तमाम चुनौतियों से लड़ने के बाद राजेंद्र पहले डॉक्टर और फिर आईएएस अफसर बन गए. वे आज समाज के लिए मिसाल बन चुके हैं. 


जन्म से पहले हुई पिता की मौत


राजेंद्र भारुड़ का जन्म होने ही वाला था, उससे पहले उनके परिवार पर बहुत बड़ी आपदा आई. राजेंद्र की पिता की मौत हो गई. परिवार की स्थिति वैसे ही खराब थी, लेकिन पिता की मौत से सब कुछ बिखर गया. दादी और मां ने मिलकर शराब बेचने का काम शुरू किया और जैसे तैसे गुजारा किया. जब राजेंद्र तीन चार महीने के थे, तब उनके रोने पर कुछ कस्टमर उन्हें शराब की कुछ बूंदे चटा देते थे. इससे वे सो जाते थे. जब वे थोड़े बड़े हुए तो उन्हें कस्टमर के लिए पास की दुकान से स्नैक्स लाने पड़ते थे. लेकिन उनका मन हमेशा से पढ़ाई में रहा. 


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जब एक व्यक्ति बोला- भील का बेटा कलेक्टर बनेगा? 


एक दिन जब राजेंद्र से एक ग्राहक ने स्नैक्स लाने के लिए कहा, तो उन्होंने कहा कि वह पढ़ाई कर रहे हैं. इस पर उस व्यक्ति ने कहा कि तुम भील समाज में पैदा हुए हो, तुम भी शराब ही बेचोगे. भील का बेटा क्या कलेक्टर बनेगा. यह शब्द सुनकर राजेंद्र और उनकी मां खूब रोई थीं. धीरे-धीरे राजेंद्र बड़े हुए तो उन्होंने अपनी किस्मत बदलने का फैसला किया. इंटरमीडिएट के बाद उन्होंने मेडिकल का एंट्रेंस एग्जाम क्लियर कर लिया और एमबीबीएस की डिग्री हासिल कर ली. इसके बाद उन्होंने यूपीएससी की तैयारी थी और लगातार दो बार परीक्षा क्रैक कर आईएएस बनने का सपना पूरा कर लिया. 


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यहां देखें डॉ. राजेंद्र भारुड़ का दिल्ली नॉलेज ट्रैक को दिया गया इंटरव्यू 



चुनौतियों का डटकर किया मुकाबला


राजेंद्र ने बचपन से कठिन चुनौतियों का सामना किया. इसके बावजूद वे पढ़ाई को लेकर गंभीर रहें और आगे बढ़ते रहे. उनका जन्म महाराष्ट्र के आदिवासी भील समुदाय में हुआ था, जहां के तमाम लोगों की परिस्थितियां बेहद खराब होती हैं. लेकिन राजेंद्र ने शुरू से ही अपनी किस्मत को बदलने की ठान ली थी, जिसके लिए उन्होंने कड़ी मेहनत की. डॉक्टरी की पढ़ाई के दौरान ही उन्होंने सिविल सेवा की तैयारी की और आईएएस अफसर बन गए. आज वे महाराष्ट्र के नंदूरबार के डीएम हैं. उनकी कहानी हमें संघर्षों के बावजूद कोशिश करने की सलाह देती है.


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