Year 2023 Picture: कोविड महामारी के 2 सालों तक दुनिया में छाए रहने के बाद अब यूक्रेन-रूस युद्ध के चलते दुनिया पर संकट के बादल छाए हुए हैं. इस समय दुनिया में नए साल यानी वर्ष 2023 का आगाज होने वाला है और उससे पहले इन चार बातों पर दुनिया का ध्यान जाना जरूरी है.
1. इस समय इस विवाद का क्या असर होगा.2. महंगाई को कंट्रोल करने के लिए जारी संघर्ष पर ध्यान देना.3.एनर्जी मार्केट्स में जारी परेशानी से निपटना4.महामारी के बाद चीन का अनिश्चित स्थिति
ग्लोबल इकोनॉमी के मंदी की चपेट में आने का डरकोलिन्स इंग्लिश डिक्शनरी के एडिटर ने 2022 के लिए "पर्माक्रिसिस" को अपना साल का शब्द घोषित किया है. इसका मतलब है कि अस्थिरता और असुरक्षा का समय जो व्यापक होता जा रहा है. ये इसी की आगे की कड़ी है जिसमें ये आशंका जताई जा रही है कि वैश्विक अर्थव्यवस्था की रफ्तार धीमी हो रही है और ये साल 2023 में मंदी की चपेट में आ जाएगी.
महंगाई दर का डरपैसों की तंगी के कारण डॉलर में मजबूती देखी जा रही है और इसके कारण महंगाई दर के उभरते बाजारों तक पहुंचने का खतरा बना हुआ है. इसके चलते देशों के ऊपर मौजूद कर्ज को चुकाने में दिक्कत देखी जा रही है.
अगला साल महंगाई से जूझने और आर्थिक ठहराव का होगा, जिसके चलते डर बढ़ा है-डेलॉइट द्वारा कुछ सीएफओ का इंटरव्यू लिया गया और 39 फीसदी सीएफओ को आशंका है कि अमेरिका मंदी की चपेट में रहेगा और 46 फीसदी को ग्लोबल मंदी की आशंका है. साल 2022 में मैक्डॉनल्ड्स ने अपने चीज़बर्गर के दाम यूके में बढ़ा दिए और ऐसा 14 सालों में पहली बार देखा गया है.
कैसी रहेगी दुनिया की जीडीपीसाल 2023 में मजबूत ब्रांड्स की ओर से मजबूत प्राइसिंग की जरूरत होगी और 2023 के समय सुपर भविष्यवाणी करने वालों ने दुनिया की जीडीपी के 1.5 फीसदी से 3 फीसदी के बीच रहने और चीन के 3.5 फीसदी से 5 फीसदी के बीच रहने की संभावना जताई थी. साल 2022 में यानी कोविड संकटकाल के बाद सुनहरी धूप के हॉलिडे और फैंसी रेस्टोरेंट्स में खाने खाने की प्रवृति फिर से बढ़ रही है जिससे अर्थव्यवस्था को फायदा मिल रहा है. हालांकि ये दिख रहा है कि साल 2023 में ऊंची ब्याज दरों के चलते ऊंचे एनर्जी बिलों और ऊंचे मॉर्टगेज पेमेंट के कारण ये चमकती इकोनॉमी, फीकी पड़ सकती हैं.
ब्रिटेन के लिए कैसी है उम्मीदब्रिटेन की उत्पादकता 1997-2007 के बीच दूसरी सबसे अच्छी रही थी हालांकि 2009 से 2019 के बीच ये दूसरी सबसे खराब स्थिति में आ गई है. ब्रिटेन की नेशनल हेल्थ सर्विस खराब स्थिति में है और ये महामारी पूर्व की स्थिति से भी ज्यादा बदतर हो चुकी है. महामारी के पहले 42 लाख लोगों से बढ़कर 68 लाख लोग अब वेटिंग लिस्ट में आ गए हैं.
तुर्की के कैसे रहेंगे हालाततुर्की के हालात भी चुनौतीपूर्ण हैं और अर्दगॉन ने साल 2023 तक 2 खरब डॉलर की इकोनॉमी बनने का भरोसा दिया था पर इसकी जीडीपी साल 2021 में गिरकर 815 अरब डॉलर तक आ गई है जो कि साल 2013 में 957 अरब डॉलर पर थी. यहां अब महंगाई दर 80 फीसदी पर है.
अमेरिका के लिए भी चुनौतियां बरकरारवहीं अमेरिका की बात करें तो जब-जब यहां महंगाई दर ने 5 फीसदी का स्तर छुआ है, वहां आर्थिक मंदी आई है, तो क्या इस साल इसमें अलग कहानी देखी जाएगी? ये बड़ा सवाल है. साल 2023 तक अमेरिका आर्थिक मंदी से बाहर आ सकता है क्योंकि यहां महंगाई दर घट सकती है. रिसर्च के मुताबिक स्थिर हाउसिंग हेल्थ, एजूकेशन, रोजगार और पीढ़ीगत समृद्धि के लिए जरूरी है.
दक्षिण एशिया यूक्रेन संकट से जूझ रहादक्षिण एशिया यूक्रेन युद्ध की कीमत चुका रहा है. श्रीलंका, पाकिस्तान और बांग्लादेश इन सभी देशों को चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है क्योंकि खाद्य सामग्री और एनर्जी के दाम बढ़ते जा रहे हैं. हालांकि दक्षिण एशिया में भारत एक चमकता हुआ स्थान है.
जीडीपी का कितना फीसदी हिस्सा हाउसहोल्ड कर्ज के रूप में है-
दक्षिण कोरिया- 105 फीसदीहॉन्गकॉन्ग- 91 फीसदीथाईलैंड- 90 फीसदीताइवान- 88 फीसदीब्रिटेन- 88 फीसदीअमेरिका- 80 फीसदीजापान- 70 फीसदीसिंगापुर- 58 फीसदीभारत- 35
अफ्रीकी देशों में बढ़ रही है खाने-पीने की चीजों की कीमतेंसाल 2020 और 2022 के बीच अफ्रीकी देशों में खाने-पीने की चीजों के दाम में 24 फीसदी का उछाल देखा गया है. इसके अलावा एनर्जी की ऊंची कीमतों के चलते ट्रांसपोर्ट और फर्टिलाइजर्स के दाम में भी इजाफा देखा जा रहा है.
ग्लोबल वॉर्मिंग का खतरा बढ़ रहाग्लोबल वॉर्मिंग एक ऐसा खतरा है है जो लगातार बढ़ता जा रहा है और देशों में गरीबी और विवादों को बढ़ावा दे रहा है. ग्लोबल तापमान का ऐवरेज जहां 1.1 फीसदी से बढ़कर 1.3 फीसदी पर आ गया है वहीं ये कई बाढ़, सूखे, जंगलों की आग और गर्म हवाएं और लू जैसे प्राकृतिक कारण इसे और बुरा बनाएंगे. ऑनलाइन सेल पर असरसाल 2023 में महंगाई खरीदारी करने वालों और रिटेलर्स को नुकसान पहुंचाएगी. जो ऑनलाइन सेल साल 2014 में 10 फीसदी पर थी वो अब बढ़कर 14 फीसदी पर आ चुकी है.वहीं प्रतिशत के हिसाब से देखें तो इसकी ग्रोथ साल 2023 में सपाट रह सकती है.
नई कारों की सेल्सग्लोबल तौर पर नई कारों की बिक्री 1 फीसदी की दर से बढ़ेगी जबकि इलेक्ट्रिक व्हीकल्स की सेल्स 25 फीसदी की दर से बढ़ेगी.
कमोडिटी कीमतों को देखेंकमोडिटी कीमतों को देखें तो कमोडिटी प्राइस इंडेक्स 1990 में 100 पर था जो साल 2023 में 210 पर आ जाएगा. साल 2022 में ये 240 पर था और ये दोबारा 2021 के लेवल पर आ जाएगा. 2020 में ये 170 के लेवल पर था.
एविएशन बिजनेस को होगा फायदासाल 2023 में इंटरनेशनल ट्रैवल के 30 फीसदी बढ़ने के बाद ये इंडस्ट्री मुनाफा कमाने लगेगी. हालांकि ये कोविड महामारी के पहले के लेवल पर जा नहीं पाएगी क्योंकि बिजनेस वर्ग अब रिमोट तरीके से मिलेंगे. (वर्चुअल या अन्य माध्यम से)
ग्लोबल महंगाई का क्या होगा आंकड़ाग्लोबल जीडीपी का आंकड़ा 1.6 फीसदी पर आ सकता है लेकिन वैश्विक महंगाई दर 6 फीसदी के आसपास होगी जिसके चलते देशों के केंद्रीय बैंकों को ब्याज दरें बढ़ानी पड़ेंगी.
कच्चे तेल के दाम/ डॉलर प्रति बैरल2019- 62 डॉलर2020- 47 डॉलर2021- 73 डॉलर2022- 100 डॉलर2023- 87 डॉलर
एप्पल की रणनीतिएप्पल की रणनीति के तहत लोगों को थर्ड पार्टी एप ब्लॉक करने की मंजूरी मिलने के चलते एडवर्टाइजर्स को लोगों का डेटा संग्रहित करने में मुश्किलों का सामना करना पड़ेगा.
कपड़ों का बाजारकपड़ों की रिपेयर सर्विसेज चलन में हैं और LVMH की संभ्रात रिपेयर सर्विस 2023 में आएगी. Hugo Boss ऐसा रीसेल प्लेटफॉर्म बनाएगा जहां Hugo Boss के इस्तेमाल किए हुए आइटम्स बेचे जा सकेंगे. Tommy Hilfiger भी रिपेयर की पेशकश करने वाली सर्विस के बारे में प्लान कर रहा है.
कंपनी के एंप्लाइज का डरसाल 2023 में एंप्लाइज का कंपनी की संस्कृति और मूल्यों के साथ कनेक्शन उन्हें प्रेरणा देगा. लोगों को चिंता है कि रोबोट्स उनकी जॉब छीन रहे हैं, हालांकि किसी भी देश ने रोबोट्स को बड़े पैमाने पर रोबोट्स को बड़े पैमाने पर नहीं अपनाया है. जर्मनी, जापान, दक्षिण कोरिया और सिंगापुर जैसे देश बेरोजगारी की समस्या से जूझ रहे हैं.
वर्चुअल रियलटी का संसारवर्चुअल रियलटी एक डिजिटल ब्लाइंडफोल्ड की तरह है जो आपको एक बिल्कुल नई दुनिया में पहुंच जाते हैं और ये कंप्यूटर की दुनिया को भी पीछे छोड़ चुकी है. वहीं मिक्स्ड रियल्टी इसके आगे का एक कदम है वर्चुअल और वास्तविक आइटम्स को आपस में मिलने का मौका देता है.
ये सभी रिसर्च और निष्कर्ष The Economist के आलेख के आधार पर हैं .