Rare Earth Elements: चीन जब भी किसी देश से नाराज होता है, तो वहां रेयर अर्थ (REEs) की सप्लाई रोक देता या सीमित कर देता है. हाल फिलहाल में चीन ने रेयर अर्थ के एक्सपोर्ट को लेकर नियम भी कड़े कर दिए हैं. इसके तहत चीन ने सात रेयर अर्थ और तैयार चुम्बकों के एक्सपोर्ट के लिए लाइसेंस को अनिवार्य कर दिया है. साथ ही इनका इस्तेमाल डिफेंस सेक्टर में न किए जाने का भी फरमान निकाला है. चीन के इसी फैसले से अमेरिका से उसकी ठन गई है. 

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क्या होता है रेयर अर्थ?

रेयर अर्थ दरअसल 17 मिनरल्स का एक ग्रुप होता है. इनका इस्तेमाल तमाम इंडस्ट्रीज में हाईटेक उत्पादों को बनाने में किया जाता है. स्मार्टफोन से लेकर इलेक्ट्रिक व्हीकल, रडार सिस्टम, मिसाइल, ड्रोन बनाने से लेकर क्लीन एनर्जी जेनरेट करने में भी ये उपयोग में लाए जाते हैं. दिखने में बेहद साधारण लगने वाले ये मिनरल्स असर में बेहद गुणकारी हैं.

पूरी दुनिया में रेयर अर्थ मिनरल्स का भंडार करीब 130 मिलियन टन का है. इनमें से अकेले चीन के पास सबसे ज्यादा 44 मिलियन टन है. वहीं, अगर भारत की बात करें, तो इसके पास करीब 6.9 मिलियन टन रेयर अर्थ का भंडार है, जो दुनिया के कुल भंडार का लगभग 5 परसेंट है. वैसे तो प्रकृति में रेयर अर्थ की कोई कमी नहीं है, लेकिन इन्हें निकालना बड़ा मुश्किल होता है क्योंकि ये मिले-जुले रूप में पाए जाते हैं जैसे कि कई बार ये रेडियोएक्टिव तत्व यूरेनियम के साथ चिपके पाए जाते हैं. 

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चीन का क्यों है दबदबा? 

चीन 3.48 लाख टन रेयर अर्थ मिनरल्स निकालता है, जो वैश्विक उत्पादन का लगभग 70 परसेंट है. जबकि इसकी 90 परसेंट प्रॉसेसिंग का काम भी चीन ही में होता है. ऐसा इसलिए चीन के पास ऐसी-ऐसी टेक्नोलॉजी है, जो रेयर अर्थ को आसानी से अलग कर देते हैं. ऐसे में दूसरे देशों से निकाले गए रेयर अर्थ को भी प्रोसेसिंग के लिए चीन में ही भेजा जाता है.

इस तरह से रेयर अर्थ पर चीन का पूरी दुनिया में दबदबा कायम है. हालांकि, IEA (International Energy Agency) की रिपोर्ट के मुताबिक, 2030 तक रेयर अर्थ के खनन में चीन की हिस्सेदारी 69 परसेंट से घटकर 51 परसेंट और रिफाइनिंग में 90 परसेंट से घटकर 76 परसेंट हो जाने की उम्मीद है. यह रुझान सप्लाई चेन में विविधता लाने और इसे बैलेंस करने के व्यापक अंतर्राष्ट्रीय प्रयास को दर्शाता है.

रेयर अर्थ में होते हैं ये मिनरल्स

सेरियम, नियोडिमियम, लैंथेनम, येट्रियम, स्कैंडियम, प्रेजोडायमियम, समैरियम, गैडोलीनियम, डिस्प्रोसियम, एर्बियम , युरोपियम, थ्यूलियम, टेरबियम, लुटेटियम, प्रोमेथियम, होल्मियम, येटरबियम.

चीन पर निर्भरता खत्म करने की कोशिश जारी

भारत के पास अभी जितना रेयर अर्थ है, वह ग्लोबल लेवल पर 1 परसेंट से भी कम है. केरल, तमिलनाडु, ओडिशा, आंध्र प्रदेश और गुजरात जैसे राज्यों में भविष्य के लिए बड़ी संभावनाएं दिख रही हैं. देश की मिट्टी में रेयर अर्थ का पता लगाने, उसे खोदकर निकालने और प्रोसेसिंग करने के लिए सरकार लगातार बढ़ावा दे रही है.

इसी सिलसिले में सरकार ने 2025 में नेशनल क्रिटिकल केमिकल मिशन की शुरुआत की थी. भारत आने वाले समय में अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया जैसे देशों से भी रेयर अर्थ मंगा सकता है. 2040 तक रेयर अर्थ की डिमांड 300-700 परसेंट तक बढ़ सकती है इसके लिए तैयारी अभी से शुरू होने की जरूरत है. इस बीच, एक और अच्छी खबर यह है कि सरकारी कंपनी IREL (इंडिया) लिमिटेड को अमेरिकी निर्यात नियंत्रण सूची से हटा दिया गया. यह एक बड़ा कदम है, जो भारत के लिए अंतरराष्ट्रीय सहयोग के दरवाजे खोलता है.

इसके अलावा, IREL विशाखापत्तनम में अपनी एक नई फेसिलिटी भी शुरू करने जा रही है, जहां समैरियम-कोबाल्ट चुम्बकों का उत्पादन किया जाएगा. इससे टेक्नोलॉजी में आत्मनिर्भर बनने में भारत को और मदद मिलेगी. ये मैग्नेट हाईटेक डिफेंस इक्विपमेंट्स के लिए बहुत जरूरी है.

 

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