Trump Tariffs: अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने टैरिफ पर नरम रुख अपनाते हुए अपने व्यापारिक प्रतिद्वंद्वी चीन के साथ बातचीत के लिए तैयार हो गए हैं. उन्होंने ये दावा किया है कि दोनों देशों के बीच टैरिफ पर बातचीत भी शुरू हो गई है. अमेरिकी राष्ट्रपति ने ओवल ऑफिस में संवाददाताओं से बात करते हुए कहा कि उन्हें विश्वास है कि दुनिया की सबसे बड़ी इकॉनोमी एक बड़े ट्रेड वॉर को खत्म करने के लिए समझौता कर सकती है. ऐसे में सवाल उठ रहा है कि आखिर कैसे बीजिंग को लेकर नरम रुख अपनाने वाले ट्रंप अब बातचीत के लिए तैयार हो गए हैं.     

जिस वक्त ट्रंप ने टैरिफ वॉर छेड़ा था उस समय उनका लक्ष्य बिल्कुल स्पष्ट था कि चीन के दबदबे को खत्म किया जाए और अमेरिकी अर्थव्यवस्था को मजबूत किया जाए. हालांकि, ऐसा लगता है कि उनका ये टैरिफ अटैक बैक फायर कर गया है क्योंकि अमेरिकी डॉलर लगातार गिर रहा है. निवेशक सहमे हुए हैं और कैपिटल फ्लो नीचे जा रहा है. निवेशकों नीतिगत फैसलों से लंबे समय में पड़ने वाले अर्थव्यव्स्था पर असर को लेकर भी चिंतित हैं. 

क्यों झुक गए ट्रंप?

ऐसे में नामी इन्वेस्टर और ऑथर रुचिरा शर्मा पहले ही कह चुकी हैं कि डॉलर के कमजोर होने की स्थिति में विदेशी निवेशक भारत की तरफ आकर्षित होंगे. उन्होंने बातचीत के दौरान एक वेबसाइट को बताया था कि अमेरिकी राष्ट्रपति के लिए दबाव बनाने का बेहतर हथियार टैरिफ नहीं बन पाया. 

शर्मा ने कहा कि टैरिफ के जरिए किसी की अर्थव्यवस्था को चोट पहुंचाने का उनका ये संभावत गलत रास्ता है. उन्होंने कहा कि अब कमजोर हो रहे अमरिकी डॉलर ने उनकी रणनीति को और मुश्किल कर दिया है. डॉलर के गिरने से आयात पहले ही महंगे हो चुके हैं और अमेरिकी निर्यात सस्ते. ऐसे में डॉलर की गिरती कीमत ने अमेरिकी अर्थव्यवस्था पर दबवा को और बढ़ाकर रख दिया है. इसका मतलब ये हुआ कि टैरिफ पर अब किसी भी तरह के और तनाव से समस्या और गहरी विकट हो सकती है.

अमेरिकी अर्थव्यवस्था को नुकसान का अंदेशा

Goldman Sachs ने भी इस चिंता को और बढ़ाकर रख दिया. इन्वेस्टमेंट बैंक ने हाल में अपने अनुमान में कहा कि अगले साल तक प्रमुख करेंसी जैसे यूरो और येन के मुकाबले अमेरिकी डॉलर में करीब 10 प्रतिशत की गिरावट आ सकती है. इस गिरावट के कई आर्थिक फैक्टर है, जैसे अमेरिकी की धीमी जीडीपी रफ्तार और टैरिफ पर जारी व्यापारिक तनाव. ऐसे में अगर डॉलर कमजोर होता है तो इसकी सीधा मतलब ये है कि ट्रेड वॉर से किसी अन्य देश के मुकाबले सबसे ज्यादा अमेरिका को खामियाजा भुगतना होगा.

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