Dollar-Rupee Since 1947: अमेरिका को दुनिया का सबसे शक्तिशाली देश माना जाता है. दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था होने के साथ ही अमेरिकी करेंसी डॉलर की भी तूती बोलती है. डॉलर को दुनिया का सबसे ताकतवर करेंसी भी माना जाता है. हर देश दूसरे देशों के साथ व्यापार डॉलर में ही करते हैं. निवेशक डॉलर में किसी देश में निवेश करते हैं. डॉलर को बेंचमार्क करेंसी माना जाता है.और डॉलर दुनिया की दूसरी करेंसी का वैल्यू भी तय करती है. ठीक इसी प्रकार रुपये की तुलना भी डॉलर के वैल्यू के साथ की जाती है. 


1947 में एक डॉलर का वैल्यू 4.16 रुपये 


1947 में आजादी मिलने के बाद भारतीय करेंसी को डॉलर के साथ मापने की शुरुआत हुई जो पहले ब्रिटिश राज होने के चलते पाउंड में किया जाता था. 1947 में एक डॉलर का वैल्यू रुपये के मुकाबले 4.16 रुपये हुआ करता था. 1950 से लेकर 1966 तक एक डॉलर कै वैल्यू 4.76 रुपये बना रहा. लेकिन इसके बाद भारतीय अर्थव्यवस्था में गिरावट, विदेशों से लिए गए कर्ज, 1962 में भारत-चीन युद्ध, 1965 में भारत-पाकिस्तान युद्ध और 1966 में आए भीषण सूखे के कारण 1967 में एक डॉलर का वैल्यू 7.50 रुपये के बराबर हो गया. कच्चे तेल की सप्लाई के संकट के चलते 1974 में एक डॉलर का वैल्यू घटकर 8.10 रुपये पर आ गया. इसके बाद देश में राजनीतिक संकट, भारी भरकम विदेशी कर्ज लेने के चलते करेंसी में बड़ी गिरावट देखने को मिली जिसके बाद अगले एक दशक में लगातार डॉलर के मुकाबले रुपये गिरता रहा जो 1990 में 17.50 रुपये के लेवल पर आ गया.   


1990 के बाद रुपये में बड़ी गिरावट का सिलसिला 


1990 में भारतीय अर्थव्यवस्था पर संकट के बादल छाए हुए थे. भारत पर विदेशी कर्ज का बड़ा बोझ था. सरकार को जितना रेवेन्यू आ रहा था उसका 39 फीसदी कर्ज के ब्याज के मद में भुगतान करना पड़ रहा था. सरकार का वित्तीय घाटा 7.8 फीसदी पर जा पहुंचा था. भारत डिफाल्टर घोषित किए जाने के कगार पर जा पहुंचा था. 1991 में आर्थिक सुधार की प्रक्रिया की शुरुआत हुई. 1992 में एक डॉलर के मुकाबले रुपये का वैल्यू गिरकर 25.92 रुपये पर जा गिरा. 2004 में यूपीए जब सत्ता में आई तब एक डॉलर का वैल्यू 45.32 रुपये हुआ करता था.  2014 में जब मोदी सरकार सत्ता में आई उसके एक साल बाद एक डॉलर का वैल्यू 63 रुपये था. लेकिन उसके बाद से भी रुपये में कमजोरी का सिलसिला जारी रहा. 2021 में एक डॉलर का वैल्यू 74.57 रुपये के बराबर था. 


2022 में रुपये में आई कमजोरी


2022 में रूस के यूक्रेन पर हमले, बढ़ती महंगाई पर लगाम लगाने के लिए अमेरिका के सेंट्रल बैंक फेडरल रिजर्व ने ब्याज दरें बढ़ाने का सिलसिला शुरू किया जिसके बाद विदेशी निवेशक अपना निवेश वापस निकालने लगे. जिसके बाद एक डॉलर के मुकाबले रुपये में कमजोरी तो आई ही साथ में भारत का विदेशी मुद्रा कोष जो 640 अरब डॉलर के ऊपर जा पहुंचा था वो घटकर 530 अरब डॉलर तक घट गया. 2022 में एक समय डॉलर के मुकाबले रुपये में 10 फीसदी की गिरावट आ गई थी. एक डॉलर के मुकाबले रुपये का वैल्यू घटकर 83 के लेवल तक जा गिरा. फिलहाल एक डॉलर के मुकाबले रुपये का वैल्यू 81.71 रुपये के करीब है.  


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