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Budget 2024: EPF के ब्याज पर टैक्स छूट को खत्म करना है कठोर फैसला, FICCI ने की निर्णय वापस लेने की मांग

Tax On EPF: वित्त वर्ष 2021-22 में निजी क्षेत्र के कर्मचारियों के ईपीएफ में सालाना 2.50 लाख रुपये की लिमिट से ज्यादा योगदान वाले रकम पर ब्याज से होने वाले इनकम पर टैक्स छूट को वापस ले लिया गया था.

Union Budget 2023: वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण (Nirmala Sitharaman) मोदी 3.0 के पहले आम बजट (Union Budget) के लिए स्टेकहोल्डर्स से सलाह मशविरा कर रही हैं तो प्री-बजट मीटिंग में शिरकत कर रहे लोग बजट को लेकर अपनी मांगों की फेहरिस्त वित्त मंत्री को सौंप रहे हैं. इसी कड़ी में बिजनेस चैंबर फिक्की (FICCI) ने वित्त मंत्री से कर्मचारियों द्वारा ईपीएफ खाते (EPF Account)  में योगदान से प्राप्त इंटरेस्ट इनकम को टैक्स-फ्री रखने के लिए सालाना कंट्रीब्यूशन की लिमिट को 2.50 लाख रुपये से बढ़ाकर 5 लाख रुपये करने या फिर इस सख्त नियम को ही खत्म करने की मांग की है.  

EPF के इंटरेस्ट इनकम पर खत्म हो टैक्स का प्रावधान

वित्त मंत्री को सौंपे गए ज्ञापन में फिक्की ने अपने सुझाव में कहा, ईपीएफ खाते में 2.50 लाख रुपये तक की लिमिट से ज्यादा रकम योगदान करने से जो ब्याज हासिल होता है उसपर टैक्स छूट को खत्म किए जाने के फैसले को सरकार वापस ले. चैंबर ने कहा कि अगर किसी कर्मचारी का योगदान मिनिमम मैनडेटरी कंट्रीब्यूशन के मुताबिक सालाना 2.50 लाख रुपये की लिमिट से ज्यादा भी अगर हो जाए तो उसपर ब्याज से होने वाले इनकम पर सरकार को कोई टैक्स नहीं लगाना चाहिए. या फिर बिजनेस चैंबर ने वित्त मंत्री को सुझाव देते हुए कहा कि इंटरेस्ट इनकम पर टैक्स छूट के लिए सालाना 2.50 लाख रुपये की लिमिट को बढ़ाकर 5 लाख रुपये कर दिया जाना चाहिए.  

ईपीएफ पर टैक्स है कठोर फैसला 

फिक्की के मुताबिक, फाइनेंस एक्ट 2021 में इस प्रावधान को शामिल किया कि एक अप्रैल 2021 से कर्मचारियों द्वारा ईपीएफ खाते में सालाना 2.50 लाख रुपये की लिमिट से ज्यादा रकम के योगदान पर जो ब्याज मिलेगा उस रकम पर टैक्स छूट नहीं मिलेगा और इस रकम पर जो ब्याज हासिल होगा उसपर कर्मचारियों को टीडीएस का भुगतान करना होगा. फिक्की के मुताबिक, दूसरे देशों के मुकाबले जब भारत में पर्याप्त सोशल सिक्योरिटी सिस्टम का अभाव है ऐसे में रिटायरमेंट फंड में योगदान पर जो ब्याज से इनकम होता है उसपर टैक्स लगाना बेहद ज्यादती है. 

भारतीय खुद करते हैं सोशल सिक्योरिटी में योगदान 

फिक्की ने कहा, भारत में सभी नागरिकों के लिए कोई यूनिवर्सल सोशल सिक्योरिटी सिस्टम नहीं है. ऐसे में मध्यम और अपर-क्लास टैक्सपेयर्स को अपने सोशल सिक्योरिटी के लिए खुद योगदान करना होता है. बिजनेस चैंबर के मुताबिक, सैलरीड टैक्सपेयर्स के लिए अपने रिटायरमेंट कॉरपस को बनाने के साथ अपने रहन-सहन के स्टैंडर्ड को बरकरार रखने या बच्चों की शादी या नया घर खरीदने के लिए प्रॉविडेंट फंड को पारम्परिक रूप से मजबूत और सुरक्षित निवेश माना जाता है. 

नियमों के तहत EPF में करते हैं योगदान 

फिक्की के मुताबिक फाइनेंस बिल 2021 में ये कहकर संशोधन किया गया कि जो कर्मचारियों ज्यादा रकम का योगदान ईपीएफ खाते में करते हैं उन्हें अब टैक्स के दायरे में लाया गया है क्योंकि इस रकम पर मिलने वाले ब्याज पर वे टैक्स छूट पा रहे थे. चैंबर के मुताबिक, अगर कोई कर्मचारी प्राविडेंट फंड का चुनाव करता है तो वो नियमों के तहत अपने सैलेरी का 12 फीसदी रकम ईपीएफ में योगदान करने के लिए बाध्य है. ऐसे में ईपीएफ में सालाना 2.50 लाख रुपये तक के योगदान और 2.50 लाख रुपये से ज्यादा के योगदान में फर्क करना कतई उचित नहीं है. 

टैक्स छूट खत्म करने का फैसला हो वापस 

फिक्की ने वित्त मंत्री को अपने सुझाव में कहा कि 2.50 लाख रुपये से ज्यादा के योगदान के ब्याज पर टैक्स छूट को वापस लेने क फैसले को खत्म किया जाए. चैंबर ने कहा कि अगर किसी कर्मचारी का योगदान मिनिमम मैनडेटरी कंट्रीब्यूशन के मुताबिक सालाना 2.50 लाख रुपये से ज्यादा भी अगर हो जाए तो उसपर ब्याज से होने वाले इनकम पर कोई टैक्स नहीं लगाना चाहिए. बिजनेस चैंबर ने वित्त मंत्री को सुझाव दिया कि इसकी जगह इंटरेस्ट इनकम पर टैक्स छूट के लिए 2.50 लाख रुपये के ईपीएफ खाते में योगदान की लिमिट की समीक्षा कर उसे सालाना 5 लाख रुपये कर देना चाहिए. 

2021-22 के बजट में आया था EPF पर टैक्स का प्रावधान 

वित्त वर्ष 2021-22 के लिए पेश बजट में वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने ये एलान किया था कि अगर कोई कर्मचारी अपने वित्त वर्ष के दौरान ईपीएफ अकाउंट में सालाना 2.50 रुपये से ज्यादा का योगदान करता है तो 2.50 लाख रुपये की लिमिट से ज्यादा के योगदान पर मिलने वाले ब्याज पर कर्मचारी को टैक्स का भुगतान करना होगा और ये रकम अब से टैक्स-फ्री नहीं रहेगा. तब सरकार के इस फैसले की भारी आलोचना भी हुई थी. अब ये मामला फिर से चर्चाओं में आ चुका है. हालांकि सरकारी कर्मचारियों के लिए ये लिमिट सालाना 5 लाख रुपये है.     

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