Indian Currency Falls: भारतीय रुपये में इस साल भारी गिरावट देखने को मिली है. विदेशी निवेशकों की लगातार बिकवाली और कई अन्य आर्थिक कारणों की वजह से रुपया अमेरिकी डॉलर के मुकाबले ऐतिहासिक निचले स्तर पर पहुंच गया है और 90 के पार चला गया है. इस साल रुपये में अब तक 4.9 प्रतिशत की गिरावट आ चुकी है, जिससे यह 31 प्रमुख मुद्राओं में तीसरी सबसे खराब प्रदर्शन करने वाली करेंसी बन गई है.

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हालांकि, टर्की की लीरा और अर्जेंटीना के पेसो की स्थिति इससे भी ज्यादा खराब रही है. खास बात यह है कि रुपये में यह गिरावट ऐसे समय हो रही है, जब डॉलर की मजबूती खुद 70 प्रतिशत तक कम हो चुकी है.

रुपये में गिरावट के कई फैक्टर्स

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रुपये की इस गिरावट के पीछे कई प्रमुख कारण हैं. व्यापार घाटे में बढ़ोतरी, भारतीय उत्पादों पर 50 प्रतिशत तक के भारी टैरिफ और विदेशी पूंजी का देश से बाहर निकलना इसके प्रमुख कारण हैं. ट्रंप प्रशासन के साथ किसी भी सहमति पर न पहुंच पाना भी भारतीय मुद्रा पर अतिरिक्त दबाव बना रहा है. 90 के स्तर को पार करने के बावजूद रुपये पर लगातार दबाव है और इसकी कीमत 2011 की तुलना में लगभग आधी हो चुकी है. इस स्थिति ने आरबीआई गवर्नर संजय मल्होत्रा के सामने बड़ी चुनौती खड़ी कर दी है, जो रुपये की स्थिरता बनाए रखने के प्रयास कर रहे हैं.

रुपये की गिरावट को थामने के लिए रिजर्व बैंक की तरफ से कई रणनीतियाँ अपनाई जा रही हैं. ब्लूमबर्ग की रिपोर्ट के अनुसार, आरबीआई रुपये के कारोबारियों को गुप्त निर्देश जारी करता है, जिनमें प्रतिदिन अलग-अलग रणनीतियाँ अपनाई जा सकती हैं—जैसे हर मिनट 100 मिलियन डॉलर की बिकवाली से लेकर व्यापक हस्तक्षेप तक. आरबीआई का उद्देश्य रुपये में अत्यधिक उतार-चढ़ाव और कयासबाजी को नियंत्रित करना है, न कि आक्रामक तरीके से बाजार को प्रभावित करना.

क्या कर रहा आरबीआई?

रिपोर्ट में यह भी उल्लेख है कि बाजार खुलने से पहले आरबीआई के दक्षिण मुंबई स्थित मुख्यालय में रोजाना बैठकें होती हैं, जहां रुपये की स्थिति पर विस्तार से चर्चा की जाती है. फाइनेंशियल मार्केट कमेटी और अन्य विभागों के प्रतिनिधि इसमें शामिल होते हैं. रुपये पर बढ़ते दबाव और संभावित हस्तक्षेप की रणनीति पर कई दौर की बैठकें हो सकती हैं, जिनका अंतिम निर्णय आरबीआई गवर्नर लेते हैं.

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