E-Waste Management: दक्षिण कोरियाई कंपनी एलजी और सैमसंग ने भारत सरकार पर इलेक्ट्रॉनिक-कचरा रीसाइकिलर्स को भुगतान बढ़ाने वाली नीति को रद्द करने के लिए मुकदमा दायर किया है. ये अपने बिजनेस पर असर का हवाला देते हुए कई दूसरी बड़ी कंपनियों के साथ मिलकर भारत के पर्यावरण नियमों को चुनौती दे रही हैं. केस पर मंगलवार को सुनवाई होनी है. इससे पता चलता है कि विदेशी कंपनियों और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार के बीच वेस्ट मैनेजमेंट के तरीकों को लेकर गतिरोध बढ़ रहा है. इस पर दोनों कंपनियों ने रॉयटर्स के सवालों का अब तक कोई जवाब नहीं दिया है. इधर, भारत के पर्यावरण मंत्रालय ने भी कोई प्रतिक्रिया नहीं दी है.
ये कंपनियां भी कर चुकी हैं मोदी सरकार पर मुकदमा
भारत, चीन और अमेरिका के बाद तीसरा सबसे बड़ा ई-कचरा जेनरेटर या उत्पादक है, लेकिन सरकार का कहना है कि पिछले साल देश के केवल 43 परसेंट ई-कचरे को ही रीसाइकिल किया गया है. इस सेक्टर का 80 परसेंट हिस्सा अनौपचारिक स्क्रैप डीलरों का है और रीसाइक्लिंग के इनके तरीके पर्यावरण और सेहत दोनों के लिए ही ठीक नहीं है.
डाइकिन, भारत की हैवेल्स और टाटा की वोल्टास ने पहले ही मोदी सरकार पर मुकदमा कर दिया है. दरअसल, केंद्र सरकार के नए नियमों के मुताबिक, इलेक्ट्रॉनिक्स कंपनियों को अब एयर कंडीशनर, रेफ्रिजरेटर, टीवी और अन्य उपकरणों को रिसाइकल करने के लिए ज्यादा पैसा खर्च करना होगा, जबकि कंपनियां निपटान लागत को ज्यादा बता रही हैं.
क्यों सरकार ने तय किया न्यूनतम भुगतान?
सैमसंग और एलजी ने रीसाइकिलर्स को देय न्यूनतम भुगतान तय करने के निर्णय के खिलाफ पैरवी की थी, जबकि सरकार का कहना है कि ई-कचरा रीसाइक्लिंग में निवेश को बढ़ावा देने और इस सेक्टर में अधिक से अधिक औपचारिक लोगों को लाने के लिए यह जरूरी है. ऐसा इसलिए क्योंकि लेकिन देश भर में अनौपचारिक रूप से कचरे को रिसाइकिल करने का धंधा खूब फल-फूल रहा है. इस काम में रिसाइकलर्स मेटल्स और कलपुर्जों को निकालकर कचरे को या तो खुले में जला देते हैं या एसिड लीचिंग जैसे तरीकों को अपनाते हैं, जो पर्यावरण के लिए खतरनाक है.
सरकार के नए नियम से कंपनियां परेशान
एलजी ने नई दिल्ली हाईकोर्ट में अपनी फाइलिंग में कहा है कि रिसाइकलर्स को न्यूनतम राशि के भुगतान संबंधी नियम इस बात पर विचार करने में विफल रही कि केवल कंपनियों को लूटने और 'पॉल्यूटर पे' के नाम पर उन पर टैक्स लगाकर सरकार जिस लक्ष्य को हासिल करना चाहती है उसे हासिल नहीं कर सकती है. इसमें आगे कहा गया कि अगर सरकार अनौपचारिक रिसाइकलर्स को नियम के दायरे में नहीं ला सकती तो यह प्रशासन की विफलता है.
सैमसंग ने भी अपनी फाइलिंग में कहा है कीमत तय कर देने से ही पर्यावरण संरक्षण के उद्देश्य पूरे नहीं हो जाते हैं. इससे खर्च भी अधिक बैठेगा. नए नियमों के तहत कंज्यूमर इलेक्ट्रॉनिक्स सामान को रिसाइकल करने के लिए 22 रुपये प्रति किलो और स्मार्टफोन के लिए 34 रुपये प्रति किलो का न्यूनतम भुगतान करना अनिवार्य है.
इसका असर एयर कंडीशनर बनाने वाली कंपनियों पर ज्यादा पड़ेगा क्योंकि प्रति यूनिट रिसाइक्लिंग पर उनकी लागत स्मार्टफोन जैसे हल्के गैजेट के मुकाबले काफी बढ़ गई है. रिसर्च फर्म रेडसियर ने फरवरी में कहा था कि अमेरिका के मुकाबले भारत की रिसाइक्लिंग दरें अभी भी कम हैं. अमेरिका में ये पांच गुना और चीन में कम से कम 1.5 गुना ज्यादा हैं.
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