RBI State Fianances Report: भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) ने 'स्टेट फाइनेंसेज: ए स्टडी ऑफ बजट्स ऑफ 2022-23' शीर्षक से हाल में प्रकाशित एक अध्ययन में सभी राज्यों के सम्मिलित जीडीपी के अनुपात में राज्यों के ऋण में गिरावट का अनुमान जताया है. उसने कहा है कि 2022-23 में राज्यों पर कर्ज का कुल दबाव 2021-22 के जीडीपी के 31.1 प्रतिशत से घटकर 2022-23 में जीडीपी का 29.5 प्रतिशत रह गया है. 


गुजरात


गुजरात अब बढ़ते सार्वजनिक ऋण के खतरे का सामना कर रहा है, जो पिछले साल मार्च के 3.20 लाख करोड़ रुपये से बढ़कर 3.40 लाख करोड़ रुपये हो गया है. गिरते हुए राजस्व के साथ-साथ इस बढ़ते कर्ज ने विपक्षी नेताओं और स्थानीय विशेषज्ञों के बीच चिंता पैदा कर दी है. इससे पहले, गुजरात के लिए अनुमानित सार्वजनिक ऋण 3,50,000 करोड़ रुपये आंका गया था. हालांकि, संशोधित अनुमान 3,40,000 करोड़ रुपये है और अगले साल तक इसके 3,81,000 करोड़ रुपये तक पहुंचने का अनुमान है. जब गुजरात के वित्त मंत्री कनुभाई देसाई ने 3 मार्च 2022 को वित्तीय वर्ष 2022-23 के लिए राज्य का बजट पेश किया, तो राजकोषीय घाटे को 36,113 करोड़ रुपये (राज्य के जीडीपी का 1.64 प्रतिशत) पर लक्षित किया गया था. संशोधित अनुमानों के अनुसार, राजकोषीय घाटा राज्य जीडीपी का 1.51 प्रतिशत रहने का अनुमान था, जो बजट अनुमान से कम था.


इन चिंताओं के बावजूद, 2022-23 के लिए अनुमानित राजकोषीय घाटा (जीएसडीपी का 1.64) केंद्र सरकार द्वारा केंद्रीय बजट 2022-23 के लिए जीएसडीपी के चार प्रतिशत की स्वीकृत सीमा के भीतर है.


पंजाब


मुख्यमंत्री भगवंत मान के नेतृत्व वाली 14 महीने पुरानी आम आदमी पार्टी (आप) सरकार द्वारा 1.75 लाख से अधिक कर्मचारियों के लिए पुरानी पेंशन योजना (ओपीएस) को फिर से शुरू करने की घोषणा किए हुए सात महीने से अधिक समय हो गया है, लेकिन इसका क्रियान्वयन अभी तक नहीं हो पाया है.  इसका कारण: 3.12 लाख करोड़ रुपये के मौजूदा कर्ज के साथ, राज्य दिवालियापन की ओर बढ़ रहा है, बढ़ी हुई उधारी के साथ और हाल ही में संपन्न विधानसभा चुनावों में एक सीमा तक मुफ्त पानी और बिजली जैसे वादे भी किए गए हैं. राज्य के बजट के अनुसार, जीएसडीपी के लिए प्रभावी बकाया ऋण 2023-24 में 46.81 प्रतिशत होने का अनुमान लगाया गया है. मामले से परिचित एक अधिकारी ने आईएएनएस को बताया कि राजनीतिक मजबूरी के कारण की जा रही लोकप्रिय घोषणाओं से कर्ज बढ़ता रहा है. अब यह बढ़कर दो लाख 52 हजार करोड़ से अधिक हो गया है.


'मुफ्त' की राजनीति के दौर में कर्नाटक की वित्तीय स्थिति को लेकर चिंता


कर्नाटक चैंबर ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्री ने बिजली की दरों में वृद्धि वापस लेने के लिए कांग्रेस सरकार को एक सप्ताह का अल्टीमेटम दिया है. चैंबर ने चेतावनी दी है कि अगर ऐसा नहीं हुआ तो सभी उद्योग बंद हो जाएंगे और विरोध प्रदर्शन करेंगे.


पूर्व मुख्यमंत्री बसवराज बोम्मई ने पिछले बजट में किसानों के लिए एमएसपी के लिए 1,500 करोड़ रुपये का आवंटन वापस लेने पर चिंता जताई है. उन्होंने राज्य भर में 9,556 स्कूल भवनों के निर्माण के लिए आवंटित धन को दूसरे मद में खर्च करने पर भी चिंता व्यक्त की. उन्होंने कैंसर रोगियों के लिए मुफ्त कीमोथेरेपी और एक लाख बार तक मुफ्त डायलिसिस सुविधा के लिए आवंटित फंड में कटौती न करने की भी चेतावनी दी है.


बेंगलुरु के विकास को सुनिश्चित करने के लिए मेट्रो परियोजना, उपनगरीय परियोजनाओं को धन उपलब्ध कराने पर भी संदेह जताया जा रहा है. ये घटनाक्रम राज्य की नवनिर्वाचित कांग्रेस सरकार बनने के बाद सामने आ रहे हैं, जो कर्नाटक में 'मुफ्त' की राजनीति के एक नए युग की शुरुआत कर रही है. राज्य एक मजबूत अर्थव्यवस्था के लिए जाना जाता है और शीर्ष राजस्व देने वाले राज्यों में से एक है.


कर्नाटक के मुख्यमंत्री सिद्दारमैया ने कहा है कि चुनावी वादे के अनुरूप पांच गारंटियों को लागू करने के लिए सरकार को सालाना 59,000 करोड़ रुपये की आवश्यकता होगी. चालू वर्ष के शेष महीनों के लिए वित्तीय आवश्यकता 41,000 करोड़ रुपये है.


आर्थिक एवं सांख्यिकी निदेशालय ने अपने अग्रिम अनुमानों में बताया है कि राज्य ने 2022-23 में 7.9 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की है. इसमें यह भी कहा गया है कि राज्य में प्रति व्यक्ति आय 2.04 लाख रुपये से बढ़कर 3.32 लाख रुपये हो गई है. कोविड-19 महामारी के कुछ वर्षों को छोड़कर राज्य कर्नाटक राजकोषीय उत्तरदायित्व अधिनियम, 2002 में निर्धारित राजकोषीय मापदंडों के पालन में सफल रहा है.


पूर्व सीएम बोम्मई ने दावा किया था कि वह 2023-24 के लिए रेवेन्यू सरप्लस बजट पेश कर रहे हैं. हालांकि, अब कई सवाल उठाए जा रहे हैं क्योंकि राज्य सरकार 'मुफ्त' पर हर साल 59,000 करोड़ रुपये खर्च करने की तैयारी में है. विपक्ष बिना किसी शर्त के मुफ्त की योजनाओं को लागू करने की मांग कर रहा है- अगर कांग्रेस सरकार झुकी तो खर्च बढ़कर एक लाख करोड़ रुपये सालाना हो जाएगा.


कर्ज में डूबा हिमाचल 800 करोड़ रुपये के कर्ज के लिए बाजार में उतरा


पहाड़ी राज्य हिमाचल प्रदेश, जिसकी अर्थव्यवस्था काफी हद तक पर्यटन, बागवानी और जलविद्युत पर निर्भर है, पर 75 हजार करोड़ रुपये का कर्ज हो गया है. इसमें लगातार बढ़ रही मजदूरी और पिछली सरकार से कर्मचारियों एवं पेंशनरों के वेतन एवं महंगाई भत्ते के बकाए के रूप में लगभग 11 हजार करोड़ रुपये की देनदारी है. कर्ज के पहाड़ का सामना करने के बावजूद, छह महीने पुरानी कांग्रेस सरकार ने पुरानी पेंशन योजना (ओपीएस) को लागू करने का वादा पूरा किया है, इससे अब बड़ी मात्रा में धन खर्च हो रहा है.


ओपीएस से 1.36 लाख सरकारी कर्मचारियों को फायदा हुआ, जो एक महत्वपूर्ण वोट बैंक है, लेकिन सरकार पर 800-900 करोड़ रुपये का वार्षिक बोझ पड़ा. अब महत्वपूर्ण मुफ्त उपहारों का प्रभाव भी राज्य की अर्थव्यवस्था पर महसूस किया जा रहा है. राज्य के पास वेतन, पेंशन और विकास परियोजनाओं के लिए पैसे नहीं हैं. इनके लिए सरकार 800 करोड़ रुपए का अतिरिक्त कर्ज जुटा रही है.


वित्त वर्ष 2023-24 में 7.84 लाख करोड़ रुपये होगा UP का कर्ज, पहले से 40 प्रतिशत ज्यादा


भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) ने दावा किया है कि 2020-21 में 31.1 प्रतिशत की तुलना में, सकल घरेलू उत्पाद के प्रतिशत के रूप में राज्यों का सामूहिक ऋण 2022-23 में घटकर 29.5 प्रतिशत रहने की उम्मीद है. अगले वित्त वर्ष 2023-24 में उत्तर प्रदेश का कर्ज बोझ 7.84 लाख करोड़ रुपये तक पहुंचने का अनुमान है, जो लगभग 40 प्रतिशत अधिक है.


आम चुनाव नजदीक हैं और योगी आदित्यनाथ सरकार लोकलुभावन योजनाओं को आगे बढ़ा रही है, वित्तीय विशेषज्ञों को लगता है कि कर्ज और बढ़ सकता है. यूपी वार्षिक बजट के अनुसार, 2023-24 में नाममात्र यूपी सकल राज्य घरेलू उत्पाद (जीएसडीपी) 24.39 ट्रिलियन रुपये होने का अनुमान लगाया गया है. दिलचस्प बात यह है कि 7.84 ट्रिलियन रुपये का अनुमानित सार्वजनिक ऋण उत्तर प्रदेश के 6.90 ट्रिलियन रुपये के वार्षिक बजट से 94,000 करोड़ रुपये या लगभग 14 प्रतिशत अधिक है.


मध्य प्रदेश पर भारी कर्ज


राज्य सरकार मतदाताओं को लुभाने के लिए कई लोकलुभावन योजनाओं और मुफ्त उपहारों की घोषणा कर रही है, जबकि राज्य लगभग 3.5 लाख करोड़ रुपये के कर्ज में डूबा हुआ है. विशेषज्ञों का कहना है कि पिछले पांच-छह सालों में राज्य में औसत प्रति व्यक्ति कर्ज तेजी से बढ़ा है. कर्ज के आंकड़ों पर गौर किया जाए तो राज्य के हर नागरिक पर 41 हजार रुपये का कर्ज है. मार्च 2016 के अंत तक यह 13,853 रुपये होने का अनुमान लगाया गया था, जबकि वित्त वर्ष 2013-14 में यह 10,896 रुपये दर्ज किया गया था. विशेषज्ञों का दावा है कि मध्य प्रदेश सरकार गंभीर आर्थिक संकट के दौर से गुजर रही है.


मध्य प्रदेश की आर्थिक स्थिति को इस बात से समझा जा सकता है कि पिछले वर्ष 2022-2023 में राज्य ने 2.79 लाख करोड़ रुपये का वार्षिक बजट पेश किया था, जबकि सरकार पर 3.31 लाख करोड़ रुपये का बढ़ता कर्ज था.


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