RBI Repo Rate: मुद्रास्फीति का दबाव कम होने के कारण भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) अपनी आगामी मौद्रिक नीति बैठक में प्रमुख नीतिगत दर रेपो को 0.25 प्रतिशत कम कर सकता है. हालांकि कुछ विशेषज्ञों का मानना हैं कि, दूसरी तिमाही में उम्मीद से बेहतर 8.2 प्रतिशत जीडीपी वृद्धि के मद्देनजर केंद्रीय बैंक ब्याज दर को स्थिर रख सकता है.

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उपभोक्ता मूल्य सूचकांक पर आधारित खुदरा मुद्रास्फीति पिछले दो महीनों से सरकार के तय दायरे की निचली सीमा (दो प्रतिशत) से भी कम है. 

विशेषज्ञों की राय

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कुछ विशेषज्ञों का मानना है कि, अर्थव्यवस्था में आई तेजी के कारण आरबीआई ब्याज दरों को यथावत रख सकता है. यह तेजी राजकोषीय समेकन, लक्षित सार्वजनिक निवेश और जीएसटी दर कटौती जैसे विभिन्न सुधारों से समर्थित है. मौद्रिक नीति समिति (एमपीसी) की बैठक 3-5 दिसंबर 2025 तक होनी है.

आरबीआई गवर्नर संजय मल्होत्रा पांच दिसंबर को समिति के फैसलों की घोषित करेंगे. केंद्रीय बैंक ने पिछले साल फरवरी में दरों में कमी शुरू की थी और कुल एक प्रतिशत की कटौती करके रेपो दर को 5.5 प्रतिशत कर दिया था. अगस्त में कटौती रोक दी गई थी. कुछ विशेषज्ञों के अनुसार मुद्रास्फीति का दबाव कम होने से आरबीआई आने वाली मौद्रिक नीति बैठक में प्रमुख नीतिगत दर में 0.25 प्रतिशत की कटौती कर सकता है. 

एचडीएफसी बैंक की रिपोर्ट

एचडीएफसी बैंक की एक रिपोर्ट के मुताबिक, इस साल वृद्धि अनुमान से अधिक और मुद्रास्फीति अनुमान से कम है. इसके मुताबिक, ‘‘इसलिए आरबीआई के आगामी फैसले में कांटे की टक्कर रहेगी. दूसरी छमाही में वृद्धि पर बने जोखिम और वित्त वर्ष 2026-27 की तीसरी तिमाही तक मुद्रास्फीति के चार प्रतिशत से काफी नीचे रहने की उम्मीद को देखते हुए हमें लगता है कि आने वाली नीतिगत दर बैठक में फिर 0.25 प्रतिशत की कटौती हो सकती है.'' 

भारतीय स्टेट बैंक के आर्थिक अनुसंधान विभाग की एक शोध रिपोर्ट में कहा गया कि, मजबूत जीडीपी वृद्धि और न्यूनतम मुद्रास्फीति के साथ अब आरबीआई को इस सप्ताह होने वाली एमपीसी बैठक में व्यापक बाजारों को दर की दिशा बतानी है. बैंक ऑफ बड़ौदा के मुख्य अर्थशास्त्री मदन सबनवीस ने कहा कि, आने वाली नीति में रेपो दर पर कांटे का मुकाबला होगा. चूंकि मौद्रिक नीति आगे की सोच वाली होती है और उस हिसाब से इस समय नीतिगत दर उचित स्तर पर दिख रही है. 

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