बाजार नियामक सेबी फ्यूचर एंड ऑप्शंस सेगमेंट में बढ़ती भागीदारी से चिंतित है. नियामक को लगता है कि डेरिवेटिव सेगमेंट में लोगों के ज्यादा उतरने से उनके ऊपर रिस्क भी ज्यादा हो जा रहा है. ऐसे में सेबी ने जोखिम को कम करने के लिए कड़े नियमों का प्रस्ताव दिया है.
इस कारण जरूरी हुए कड़े नियम
सिक्योरिटीज एंड एक्सचेंज बोर्ड ऑफ इंडिया (सेबी) के ये प्रस्ताव इंडिविजुअल स्टॉक डेरिवेटिव में ट्रेडिंग को मुश्किल बनाने वाले हैं. सेबी का कहना है कि खास तौर पर हालिया समय में ऑप्शंस ट्रेडिंग में जो कई गुने की तेजी आई है, उसे देखते हुए जोखिम को कम करने के लिए कड़े नियम जरूरी हो गए हैं.
इससे पहले ऐसी खबरें आ रही थीं कि नियामक डेरिवेटिव मार्केट में निवेशकों की बढ़ रही गतिविधियों के मद्देनजर उभर रहे जोखिम को नियंत्रित करने व बाजार की स्थिरता की समीक्षा करने के लिए एक समिति बना सकता है.
वेबसाइट पर डिस्कशन पेपर
सेबी ने इस बारे में रविवार को अपनी वेबसाइट पर एक डिस्कशन पेपर पब्लिश किया. पेपर में नियामक ने प्रस्ताव रखा है कि इंडिविजुअल स्टॉक के डेरिवेटिव सौदों के साथ पर्याप्त तरलता और बाजार भागीदारों की ओर से ट्रेडिंग इंटरेस्ट होने चाहिए. अभी इस तरह की व्यवस्था सिर्फ इंडेक्स के डेरिवेटिव कॉन्ट्रैक्ट के लिए है.
ऐसे में बढ़ जाता है जोखिम
नियामक का मानना है कि अगर डेरिवेटिव सौदों के अंडरलाइंग कैश मार्केट में पर्याप्त गहराई नहीं होती है और लेवरेज किए गए डेरिवेटिव के साथ पोजिशन की उचित लिमिट नहीं होती है, तो ऐसे में बाजार में भाव को मैनिपुलेट करने, वोलटिलिटी के ज्यादा होने और निवेशकों की सुरक्षा के साथ समझौता हो जाने की आशंका अधिक रहती है.
कई गुना बढ़े डेरिवेटिव में सौदे
बाजार के आंकड़े बताते हैं कि बीते कुछ सालों के दौरान भारत में डेरिवेटिव सेगमेंट में ट्रेडिंग कई गुना बढ़ी है. एनएसई के अनुसार, 2023-24 के दौरान ट्रेड किए गए इंडेक्स ऑप्शंस की नॉशनल वैल्यू साल भर पहले की तुलना में डबल से ज्यादा हो गई. बीते पांच सालों में देश में ऑप्शंस ट्रेडिंग में कई गुने की तेजी आई है. इसके पीछे मुख्य रूप से खुदरा निवेशक जिम्मेदार हैं.
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