प्राइवेट नौकरी के बारे में आपने भी सुना होगा कि यहां छुट्टियां कम होती हैं. अच्छी कंपनियां अपने कर्मचारियों को ठीक-ठाक छुट्टियां देती हैं, जिनमें आकस्मिक परिस्थितियों में कुछ लंबी छुट्टियां भी शामिल होती हैं. जैसे कोई कर्मचारी अचानक गंभीर बीमारी का शिकार हो जाए तो वह सिक लीव पर जा सकता है. कई कंपनियां कुछ महीने तक सिक लीव के दौरान सैलरी देती रहती है, जबकि उसके बाद बिना सैलरी की छुट्टी पर जाना होता है. अभी इसी तरह की छुट्टी से जुड़ा एक ऐसा मामला सामने आया है, जिसे जानकर आप हैरान रह जाएंगे.


हर साल मिले 55 लाख


यह मामला है आईटी कंपनी आईबीएम का. इस मामले में एक कर्मचारी पिछले 15 सालों से सिक लीव पर था. मजेदार है कि उसे कंपनी इन 15 सालों के दौरान भी सैलरी देती रही और सैलरी भी कोई मामूली नहीं, बल्कि 54 हजार पौंड सालाना से ज्यादा, जो भारतीय रुपये में एक साल का करीब 55 लाख रुपये हो जाता है. कर्मचारी के हिसाब से यह भी नाकाफी भुगतान था.


कर्मचारी की ये थी मांग


कर्मचारी ने इस मामले को लेकर कंपनी के खिलाफ कोर्ट में केस कर दिया. उसका आरोप था कि कंपनी ने उसके साथ भेदभाव किया है, क्योंकि बीते 15 साल से उसकी सैलरी नहीं बढ़ाई गई है. उसका कहना था कि इस 15 सालों में महंगाई बेतहाशा बढ़ी है, लेकिन उसकी सैलरी स्थिर है. ऐसे में उसे नुकसान हुआ है.


ऐसे शुरू हुआ मामला


ब्रिटिश अखबार टेलीग्राफ के अनुसार, यह केस किया इयान क्लिफोर्ड नामक कर्मचारी ने. उसने साल 2000 में लोटस डेवलपमेंट नामक कंपनी में नौकरी शुरू की थी. बाद में आईबीएम ने लोटस डेवलपमेंट को खरीद लिया. क्लिफोर्ड साल 2008 में सिक लीव पर चला गया. उसने साल 2013 में कंपनी के खिलाफ केस किया, जिसमें उसने कहा कि उसे पिछले पांच साल यानी 2008 से 2013 के दौरान वेतन में बढ़ोतरी या होलीडे पे नहीं मिला है.


आईबीएम ने दी ये राहत


आईबीएम ने मामले को सुलझाने के लिए क्लिफोर्ड को अपनी डिसेबिलिटी योजना का हिस्सा बना दिया, जिसके तहत कर्मचारी को 65 साल की उम्र होने तक उसकी सैलरी का 75 फीसदी मिलता रहता है. इस तरह से उसे हर साल 54,028 पाउंड यानी करीब 55.34 लाख रुपये मिल रहे थे. इस तरह देखें तो बीते 15 सालों में आईबीएम से उसे 8 करोड़ रुपये से ज्यादा मिल चुके हैं.


कोर्ट ने नहीं मानी बात


वहीं क्लिफोर्ड के हिसाब से यह नाकाफी भुगतान है और इसी कारण उसने महंगाई के हिसाब से पैसे बढ़ाकर देने की मांग की. हालांकि जब इस मामले की सुनवाई हुई तो कोर्ट ने क्लिफोर्ड की मांग ठुकरा दी. कोर्ट ने कहा कि उसे जो रकम मिल रही है, वह अगर 30 साल में महंगाई के कारण आधी हो जाती है, तो भी वह ठीक-ठाक बड़ी रकम रहेगी. ऐसे में क्लिफोर्ड की मांग अनुचित है.


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