पता नहीं इंडियन इकोनॉमी को किसकी नजर लग गई है. हर मोर्चे पर पस्ती साफ नजर आ रही है. एक्सपोर्ट्स इतना मार खा रहा है कि जनवरी महीने में व्यापार घाटा बढ़कर एक लाख 99 हजार करोड़ हो गया है. निर्यात की तुलना में आयात अधिक होने के कारण ऐसा हुआ है. यह भारत के टूटते रुपये का भी असर है. जनवरी में आयात और निर्यात में 22.99 अरब डॉलर का अंतर था. जो दिसंबर में केवल 21.94 अरब डॉलर का था.
वहीं देश में सोने का आयात पिछले साल के मुकाबले जनवरी में 40.79 फीसदी बढ़कर 2.68 अरब डॉलर का हो गया है. वहीं साल-दर-साल आधार पर अगर देखा जाय तो जनवरी में गुड्स यानी वस्तुओं का व्यापार घाटा 38.8 फीसदी बढ़ा है. पिछले वित्त वर्ष के इसी महीने में यह रिवाइज्ड आंकड़ा 16.56 बिलियन डॉलर यानी 1.43 लाख करोड़ रुपए था. कॉमर्स मिनिस्ट्री की ओर से 17 फरवरी को जारी प्रोविजनल डेटा के अनुसार, जनवरी में मर्चेंडाइज एक्सपोर्ट में 2.4 फीसदी की गिरावट आई है वहीं गुड्स के इंपोर्ट में 10.3 फीसदी की ग्रोथ हुई है.
कहीं डंपिंग के कारण तो नहीं बढ़ रहा आयात
मंगलवार को ऐक्सिस कैपिटल की ओर से जारी एक रिपोर्ट के मुताबिक, जनवरी के व्यापार के आंकड़ों से सस्ता माल भारत में पाटे जाने के संकेत मिलते हैं. रिपोर्ट में कहा गया है कि गैर तेल या सोने का आयात संभवतः रसायन, धातुओं और मशीनरी के सामान की डंपिंग के कारण बढ़ा है. भारत के आयात बास्केट में 22 फीसदी हिस्सेदारी वाले कच्चे तेल का आयात जनवरी में 13.5 फीसदी गिरकर 13.4 अरब डॉलर का हुआ है, वहीं गैर पेट्रोलियम और गैर रत्न व आभूषण का आयात 20 फीसदी बढ़कर 41.2 अरब डॉलर हो गया है. जानकारों की मानें तो व्यापार घाटे यानी आयात का निर्यात से अधिक होने की स्थिति इस तरह भयानक हो जाने का सब बड़ा कारण सोने की आयात में उछाल भी है. खाद्य तेल, चांदी और उर्वरक की काफी अधिक मांग होने के कारण भी आयात इस तरह बढ़ रहा है.
और कमजोर हो सकता है रुपया
व्यापार घाटे के इस कदर बढ़ने यानी निर्यात के मुकाबले अधिक आयात होने का सबसे बड़ा कारण यह है कि देश अपनी जनता की जरूरतों के लिए पर्याप्त मात्रा में वस्तुओं और सेवाओं का उत्पादन नहीं कर पा रहा है. इसलिए दूसरे देशों से इसकी भरपाई करनी पड़ रही हैं. जाहिर है कि ये वस्तुएं और सेवाएं देशवासियों के लिए महंगी पड़ेंगी. इससे देश में महंगाई बढेगी. आयात के लिए विदेशी मुद्रा की झोली खोलनी होगी. इससे विदेशी मुद्रा भंडार कम होगा, इसकी भरपाई के लिए डॉलर जुटाने होंगे और रुपया कमजोर होगा. जिन सेक्टर में अधिक आयात हो रहा है, उन क्षेत्रों की भारतीय कंपनियां कमजोर पड़ेंगी और वहां रोजगार का संकट पैदा हो सकता है.
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