मुंबई: ब्रिटिश कंपनी केयर्न एनर्जी ने भारत सरकार के खिलाफ अंतरराष्ट्रीय मध्यस्थता अदालत में एक टैक्स विवाद से जुड़े मामले में जीत हासिल की है. केयर्न ने एक बयान में कहा, ‘‘न्यायाधिकरण ने आम सहमति से फैसला सुनाया कि भारत ने ब्रिटेन-भारत द्विपक्षीय निवेश संधि के तहत केयर्न के प्रति अपने दायित्वों का उल्लंघन किया है और उसे 1.2 अरब अमरीकी डालर का हर्जाना और ब्याज चुकानी होगी.’’


इसमें 20 करोड़ डॉलर के ब्याज और मामले को न्यायाधिकरण में ले जाने पर हुए खर्च के रूप में दो करोड़ डॉलर को मिलाकर भारत सरकार को कंपनी के पक्ष में कुल 1.4 अरब डॉलर (10,500 करोड़ रुपये) देने होंगे. हाल के दिनों में भारत के लिए यह दूसरा झटका है. इससे पहले सितंबर में एक अंतरराष्ट्रीय मध्यस्थता न्यायाधिकरण ने वोडाफोन समूह पर भारत द्वारा पूर्व प्रभाव से लगाए गए कर के खिलाफ फैसला सुनाया था.


केयर्न का दावा यूके-भारत द्विपक्षीय निवेश संधि की शर्तों के तहत किया गया था. ट्रिब्यूनल की कानूनी सीट नीदरलैंड थी और कार्यवाही स्थायी न्यायालय की मध्यस्थता की रजिस्ट्री के तहत हुई. इस आदेश में चुनौती या अपील का प्रावधान नहीं है, लेकिन भारत सरकार इसे चुनौती दे सकती है, और प्रधानमंत्री कार्यालय (पीएमओ) चुनौती देने के बारे में अंतिम फैसला लेगी.


हालांकि, विशेषज्ञों का मानना है कि ऐसा करना वैश्विक निवेशकों को गलत संकेत देगा, जो कर निश्चितता चाहते हैं. पारस बोथरा, अध्यक्ष - इक्विटीज, आशिका स्टॉक ब्रोकिंग, ने कहा, "सरकार को वोडाफोन और केयर्न के साथ बात करनी चाहिए ताकि मामले को सौहार्दपूर्ण ढंग से सुलझाया जा सके."


केयर्न ने मार्च 2015 में भारत के 10,200 करोड़ रुपये (($1.4 बिलियन डॉलर) की डिमांड के खिलाफ औपचारिक मामला दायर किया था. यह टैक्स विवाद 2007 में उस समय इसके भारतीय कंपनी की लिस्टिंग से संबंधित था. 2011 में, केयर्न एनर्जी ने केयर्न इंडिया में अपनी अधिकांश हिस्सेदारी वेदांता लिमिटेड को बेच दी, जिससे भारतीय कंपनी में उसकी हिस्सेदारी लगभग 10% कम हो गई.


2014 में टैक्स की शिकायत के बाद भारत सरकार ने शेष शेयरों को जब्त कर लिया और भारतीय फर्म में अपनी हिस्सेदारी के लिए वेदांता को केयर्न एनर्जी के लिए लाभांश दिया. केयर्न एनर्जी के अलावा सरकार ने इसी तरह की कर मांग उसकी सहायक कंपनी केयर्न इंडिया (जो अब वेदांत लिमिटेड का हिस्सा है) से की. केयर्न इंडिया ने भी अलग मध्यस्थता मुकदमे के जरिए इस मांग को चुनौती दी है.


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