शादी दो इंसानों को न केवल कानूनी रूप से जोड़ता है, बल्कि उन्हें इकोनॉमिकली भी पास लाता है. शादी के बाद यह पति-पत्नी की जिम्मेदारी है कि दोनों अपने फाइनेंस को साथ में मैनेज करें. ब्रेकअप होने की स्थिति में कुछ लिमिट्स तय किए जाने चाहिए ताकि जिम्मेदारियों का बंटवारा भी सही से हो और तनाव भी कम से कम हो. 

शादी से पहले ही कर लें बात

जब दो लोगों में शादी होती है, तो विरासत में मिली प्रॉपर्टी या बिजनेस या अपनी पर्सनल सेविंग्स पर अब एक के बजाय दो लोगों का हक शामिल हो जाता है. भारत में विवाह पूर्व समझौता (Prenuptial Agreement) कानूनी रूप से भले ही लागू नहीं है, लेकिन अब कई बड़े शहरों में लोग इसे धीरे-धीरे अपना रहे हैं.

यह एक कानूनी समझौता है, जो पति-पत्नी के बीच होता है. इसमें इस बात का जिक्र होता है कि अगर दोनों के बीच तलाक की नौबत आती है, तो उस स्थिति में प्रापॅर्टी या देनदारियों का बंटवारा कैसे होगा. ऐसे में आपको हमेशा शादी से पहले ही अपनी सेविंग्स और विरासत में मिली संपत्ति का हिसाब रखना चाहिए.

अलग-अलग बैंक अकाउंट है जरूरी 

अगर आपके पास अपनी कोई प्रॉपर्टी या इंवेस्टमेंट है, तो इस पर अकेले खुद की ओनरशिप होने से भविष्य में होने वाले किसी विवाद से बचा सकता है. विरासत में मिली संपत्ति के लिए अलग-अलग बैंक अकाउंट रखना जरूरी है ताकि आने वाले समय में कोई गलतफहमी पैदा न हो. शादी के रिश्ते में दोनों में ट्रांसपरेंसी का होना बहुत जरूरी है. दोनों को एक-दूसरे की सेविंग्स, इनकम और देनदारियों की खबर होनी चाहिए. इंश्योरेंस पॉलिसीज, लोन, प्रॉपर्टी को अगर साथ में मैनेज करते हैं, तो इससे आपसी रिश्ता मजबूत होता है. 

दोनों की फाइनेंशियल सिक्योरिटी जरूरी 

प्रॉपर्टी पर दोनों की ओनरशिप होने के कई फायदे भी हैं जैसे कि टैक्स पर छूट, उत्तराधिकार बनाने में भी सुविधा मिलती है. हालांकि, अगर दोनों पार्टनर्स में से किसी एक का इंवेस्टमेंट दूसरे के मुकाबले ज्यादा हो, तो वित्तीय निवेश को औपचारिक रूप देना भी आवश्यक है. जब बच्चे की परवरिश करने के लिए दोनों में से कोई एक नौकरी छोड़ देता है, तो फाइनेंशियली सिक्योरिटी के लिए संपत्ति और बीमा कवरेज लेने का प्लान भी जरूर बनाने चाहिए. 

 

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