EPFO Board Meeting: एम्प्लोयी प्रोविडेंट फंड ऑर्गेनाइजेशन (EPFO) बोर्ड की बैठक बस कुछ ही देर में शुरू होने जा रही है. माना जा रहा है कि इस बैठक में EPF खातों की ब्याज दरों पर बड़ा फैसला लिया जा सकता है. हालांकि, मीडिया रिपोर्ट्स की मानें तो EPFO 8.25 फीसदी की ब्याज दर को बरकरार रख सकता है, लेकिन कुछ मीडिया रिपोर्ट्स का कहना है कि इसमें थोड़ी बढ़ोतरी या कटौती भी हो सकती है.

अभी कितनी है ब्याज दर

बता दें कि वित्त वर्ष 2023-24 के लिए EPF की मौजूदा ब्याज दर 8.25 फीसदी है, जो उससे पहले 8.15 फीसदी थी. वहीं, 2019 से 2021 तक यह 8.50 फीसदी थी, जबकि अब तक की सबसे ज्यादा ब्याज दर 2001 में 12 फीसदी रही थी.

EPF में आपका योगदान कैसे काम करता है?

अगर आप नौकरीपेशा हैं, तो हर महीने आपकी बेसिक सैलरी और महंगाई भत्ते का 12 फीसदी EPF खाते में जमा होता है. इसके साथ ही, आपका नियोक्ता यानी कंपनी भी इतना ही योगदान करती है, लेकिन इसमें से 8.33 फीसदी कर्मचारी पेंशन योजना (EPS) में जाता है, और बाकी 3.67 फीसदी EPF में जोड़ा जाता है.

सरकार ने 15,000 से कम कमाने वाले कर्मचारियों के लिए EPF में सदस्यता अनिवार्य कर दी है. इसका मतलब है कि इस सैलरी सीमा के भीतर आने वाले हर व्यक्ति का PF अकाउंट होना जरूरी है.

EPF कैसे कैलकुलेट होता है?

मान लीजिए कि आपकी बेसिक सैलरी + डीए, 14,000 है.

आपका योगदान- 12% × 14,000 = 1,680

नियोक्ता का योगदान (EPF)- 3.67% × 14,000 = 514

नियोक्ता का योगदान (EPS)- 8.33% × 14,000 = 1,166

कुल योगदान (EPF + EPF)- 1,680 + 514 = 2,194

अब, अगर EPF की ब्याज दर 8.25 फीसदी सालाना रहती है, तो महीने का ब्याज होगा 8.25 फीसदी / 12 = 0.679 फीसदी

नए EPF ब्याज दर पर क्या होगा फैसला?

बिजनेस स्टैंडर्ड की रिपोर्ट के मुताबिक, इस बार EPFO बोर्ड ब्याज दर में थोड़ी कटौती कर सकता है, क्योंकि शेयर बाजार और बॉन्ड यील्ड में गिरावट और ज्यादा क्लेम सेटलमेंट की वजह से दबाव बढ़ा है. हालांकि, ज्यादातर लोग मान रहे हैं कि ब्याज दर को स्थिर रखा जाएगा. एक बार EPFO बोर्ड द्वारा ब्याज दर तय होने के बाद, इसे लागू करने के लिए वित्त मंत्रालय की मंजूरी लेनी होगी.

बसे बड़ा सोशल सिक्योरिटी संगठन

EPFO भारत का सबसे बड़ा सोशल सिक्योरिटी संगठन है, जिसके पास करीब 29.88 करोड़ खाते (Annual Report 2022-23) हैं. इसकी शुरुआत 15 नवंबर 1951 को EPF ऑर्डिनेंस से हुई थी, जिसे बाद में 1952 के EPF अधिनियम में बदल दिया गया. यह कानून देशभर के कारखानों और अन्य प्रतिष्ठानों के कर्मचारियों की सुरक्षा के लिए लागू किया गया था.

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