नई दिल्लीः कोरोनो वायरस की वजह से दुनियाभर में आर्थिक गतिविधियां ठप हैं और मांग कम होने से कच्चे तेल की कीमतों में भारी गिरावट देखी जा रही है. सोमवार को कच्चा तेल 18 सालों के निचले स्तर पर आ गया और करीब 7 फीसदी की गिरावट के बाद 20.09 डॉलर प्रति बैरल पर बंद हुआ. विश्व में कोरोना वायरस महामारी के चलते एनर्जी उत्पाद की मांग में बेतहाशा कमी आ गई है और इसके चलते क्रूड ऑयल की डिमांड भी बेहद कम हो गई है.


कम के कारोबार में कच्चा तेल दिन के सबसे निचले स्तर पर गया तो ये 19.27 डॉलर प्रति बैरल तक जा गिरा था और ये फरवरी 2002 के बाद से कच्चे तेल का सबसे निचला इंट्राडे स्तर है.


ब्रेंट क्रूड जो दुनिया में कच्चे तेल का बेंचमार्क है इसमें भी भारी गिरावट देखी गई और ये 13 फीसदी टूटकर 21.65 डॉलर प्रति बैरल के स्तर तक आ गिरा. ये इसका 18 सालों का सबसे निचला स्तर है. सोमवार को कारोबार बंद होते समय ब्रेंट क्रूड 22.76 डॉलर प्रति बैरल पर जाकर रुका जो कि इसका नवंबर 2002 के बाद से सबसे निचला स्तर है.


दुनियाभर की सरकारों द्वारा लॉकडाउन जैसी स्थिति लागू कर देने के बाद क्रूड की मांग बेहद घटी है और इसके चलते कच्चा तेल दुनियाभर में निचले लेवल पर आ रहा है. हाईवे खाली हैं, सड़कों पर गाड़ियां नहीं दौड़ रही हैं, एयरलाइंस कामकाज रोक चुकी हैं, फैक्ट्रीज ने अपने यहां प्रोडक्शन रोक दिया है और इसके चलते तमाम औद्योगिक गतिविधियां ठप हैं और इसका सीधा असर क्रूड पर पड़ रहा है.


बैंक ऑफ अमेरिका ने अनुमान दिया है कि वैश्विक तेल की मांग में प्रतिदिन 12 मिलियन यानी 1.2 करोड़ बैरल की मांग इस तिमाही में देखी जा सकती है और ये 12 फीसदी की गिरावट अभी तक की सबसे बड़ी गिरावट होगी.


इसके अलावा इस समय सऊदी अरब और रूस दुनिया को भारी मात्रा में कच्चे तेल की सप्लाई कर रहे हैं और इसने ग्लोबल क्रूड मार्केट में स्थिति और बिगाड़ दी है. इनके प्राइस वॉर ने कच्चे तेल के बाजार को बुरी तरह प्रभावित किया है. मांग में कमी और सप्लाई में अधिकता, प्राइस वॉर जैसे कारणों से कच्चे तेल की कीमतों में जो गिरावट आ रही है वो ऐतिहासिक है.


बहरहाल भारत में पेट्रोल, डीजल के कीमतों में कोई बदलाव नहीं हुआ है और ये पिछले 14 दिनों से नहीं बदले हैं. पिछली बार तेल कंपनियों ने 16 मार्च को ईंधन के दाम में बदलाव किया था.