Budget 2024 insurance Sector Expectations: कुछ ही हफ्तों में वित्तीय मंत्री निर्मला सीतारमण द्वारा 2024 का अंतरिम बजट पेश किया जाएगा. इंश्योरेंस इंडस्ट्री बजट 2024 से भारत में इंश्योरेंस की पहुंच को बढ़ाने के लिए टैक्स बेनिफिट की लिमिट के बढ़ने की उम्मीद कर रही है. इंश्योरेंस पॉलिसी पर मिलने वाला टैक्स डिस्काउंट इंश्योरेंस को अपनाने के लिए लोगों को प्रोत्साहित करने का काम करता  रहा है, साथ ही इससे 2047 तक पूरे भारत के लोगों द्वारा इंश्योरेंस अपनाने के IRDAI के लक्ष्य को पूरा करने में भी मदद मिलेगी.


बजट 2024 से इंश्योरेंस इंडस्ट्री की उम्मीदें


उचित संतुलन खोजने के लिए संपूर्ण इंश्योरेंस कैटेगरी पर दोबारा विचार करने की जरूरत है. सेक्शन 80 सी के तहत 1,50,000 रुपये की ज्यादातम डिडक्टिबल लिमिट पीपीएफ, लोन इत्यादि जैसे अन्य स्वीकार्य खर्चों के कारण समाप्त हो जाती है. इस अंतर को भरने के लिए केवल टर्म इंश्योरेंस के लिए एक समर्पित छूट श्रेणी घोषित करने की जरूरत है. इससे टैक्सपेयर्स को ज्यादा कवरेज वाला टर्म प्लान चुनने के लिए भी प्रोत्साहन मिलेगा. साथ ही 18 फीसदी की जीएसटी दर पर भी दोबारा विचार करने की जरूरत है. अब टैक्स सिस्टम पर फिर से विचार करने का समय आ गया है ताकि मूल्य निर्धारण का फायदा अंतिम उपभोक्ता तक पहुंचे और ज्यादा लोगों को लाइफ इंश्योरेंस में निवेश करने के लिए प्रोत्साहित किया जा सके.


सेक्शन 80 सी के तहत 1.50 लाख रुपये की लिमिट बढ़नी चाहिए- इंश्योरेंस सेक्टर


हमें इस बात पर दोबारा विचार करना चाहिए कि बीमा को निष्पक्ष बनाने के लिए कर किस प्रकार काम करते हैं. मौजूदा समय में, सेक्शन 80 सी के तहत 1,50,000 रुपये की ज्यादातम कटौती सीमा का उपयोग पीपीएफ और ऋण जैसे अन्य खर्चों में किया जाता है. हमें इसे संबोधित करने के लिए टर्म इंश्योरेंस के लिए एक विशेष छूट श्रेणी बनानी चाहिए. यह बदलाव लोगों को बेहतर कवरेज वाले टर्म प्लान चुनने के लिए प्रोत्साहित करेगा. साथ ही 18 फीसदी जीएसटी दर की समीक्षा करने की जरूरत है. अब कर प्रणाली पर दोबारा विचार करने का समय आ गया है ताकि लागत फायदा उपभोक्ताओं तक पहुंच सके, और ज्यादा लोगों को जीवन बीमा में निवेश करने के लिए प्रोत्साहित किया जा सके.


पेंशन प्रोडक्ट्स को एनपीएस के जैसे टैक्स ट्रीटमेंट देने की मांग


इसके अलावा, लोग रिटायरमेट प्लानिंग को बाद के लिए टाल देते हैं जो आर्थिक रूप से सही फैसला नहीं है. इसके लिए यह महत्वपूर्ण है कि पेंशन उत्पादों को राष्ट्रीय पेंशन योजना (एनपीएस) के समान टैक्स ट्रीटमेंट मिले. टैक्स के संदर्भ में पेंशन और इयरली पेंशन प्रोडक्ट्स को समान टैक्स ट्रीटमेंट मिलने से वे लंबी अवधि के लिए फाइनेंशियल प्लानिंग करने वाले लोगों के लिए ज्यादा आकर्षक बन जाएंगे. मौजूदा सिस्टम मूलधन और ब्जाज दोनों सहित पूरी एनुअल इनकम पर टैक्स लगाती है. पेंशन उत्पादों को व्यापक रूप से अपनाने को बढ़ावा देने और अन्य निवेश साधनों के साथ समानता सुनिश्चित करने के लिए, हम इन पेंशन उत्पादों से प्राप्त एनुअल इनकम को टैक्स फ्री करने की स्थिति पर विचार करने की सलाह देते हैं. यह लोगों को अपने रिटायरमेंट के दिनों को सुरक्षित करने के लिए प्रोत्साहन के रूप में काम करेगा और पेंशन उत्पादों को मौजूदा टैक्स मानदंडों के साथ लेकर आएगा.


हेल्थ सेविंग अकाउंट्स तक भी बढ़े टैक्स डिस्काउंट


साथ ही, कोविड महामारी के बाद की दुनिया में हेल्थ इंश्योरेंस के महत्व को कम समझना सही फैसला नहीं है. हेल्थ इंश्योरेंस इंडस्ट्री में कई इनोवेशन्स को ध्यान में रखते हुए, इस इंडस्ट्री को निश्चित रूप से टैक्स स्ट्रक्चर में भी कुछ इनोवेशन्स की जरूरत है. एक पहलू यह हो सकता है कि खुद के लिए, पति/पत्नी और डिपेंडेंट बच्चों के लिए ज्यादातर डिडक्शन लिमिट को 50,000 रुपये और सीनियर सिटीजन माता-पिता के लिए 1,00,000 रुपये (1 लाख) तक बढ़ाया जाए. इसके अलावा, टैक्स डिस्काउंट को हेल्थ सेविंग अकाउंट्स तक भी बढ़ाया जाना चाहिए जिससे लोगों को बढ़ते हेल्थकेयर खर्चों की योजना बनाने के लिए ज्यादा पैसा मिलेगा.


(लेखक पॉलिसीबाजार डॉट कॉम में चीफ बिजनेस ऑफिसर- लाइफ इंश्योरेंस हैं, प्रकाशित विचार उनके निजी हैं)


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