Bank Locker Rule: देश में लाखों लोग अपनी बहुमूल्य संपत्ति जैसे सोना, चांदी और कैश को सुरक्षित रखने के लिए बैंक लॉकर का इस्तेमाल करते हैं. भारतीय बैंकों की ये तिजोरियां लोगों की संपत्ति को सुरक्षित रखने के लिए हैं. हालांकि चोरी, आग, बाढ़ या प्राकृतिक आपदाओं से नुकसान हो सकता है. ऐसी घटनाओं की स्थिति में भारतीय बैंकों के नियम को समझना बेहद जरूरी है.
अगर बैंक लॉकर में आपका कीमती सामान बाढ़, भूकंप, दंगा, आतंकवादी हमले, ग्राहक की लापरवाही आदि के कारण चोरी या क्षतिग्रस्त हो जाता है तो सबसे पहली उम्मीद बैंक से होगी कि वह इस नुकसान की भरपाई करे, लेकिन ऐसा नहीं है. भारतीय रिजर्व बैंक के अनुसार, बैंकिंग यूनिट अपने लॉकर में रखे कीमती सामान के लिए जिम्मेदार नहीं है.
किराये का 100 गुना होगी देनदारी
अगर आग, चोरी, डकैती, इमारत ढहने या उसके कर्मचारियों की ओर से की गई धोखाधड़ी जैसी घटनाओं की स्थिति में बैंक की देनदारी सुरक्षित जमा लॉकर में सालाना किराये का केवल 100 गुना के बराबर होगी. यहां भी आपको मिलने वाला मुआवजा बहुत कम है. मान लीजिए अगर सालाना लॉकर शुल्क एक हजार रुपये है तो बैंक केवल एक लाख रुपये देगा, चाहे आपके लॉकर में कितनी भी मूल्यवान संपत्ति हो.
अधिक सावधानी बरतते हैं बैंक
ग्राहकों की संपत्ति को सुरक्षित रखने के लिए बैंक ज्यादा सावधानी बरतने हैं. हालांकि भूकंप, बाढ़ और अन्य प्राकृतिक आपदाओं के कारण लॉकर सामग्री की क्षति या हानि के मामले में बैंक की कोई जिम्मेदारी नहीं है. एक्सपर्ट के मुताबिक, बैंक की लापरवाही के कारण बैंक दायित्व वहन करता है.
क्यों नहीं होती बैंकों की नुकसान की जिम्मेदारी
बैंक में जमा संपत्ति के पूरे नुकसान की भरपाई की जिम्मेदारी क्यों नहीं होती, इसके पीछे का कारण यह भी है कि बैंकों को खुद नहीं पता होता है कि लॉकर में क्या रखा है और न ही उसकी कीमत पता होती है. ग्राहक अपने लॉकर की कीमत का खुलासा करने के लिए बाध्य भी नहीं होते. ऐसे में मुआवजे के लिए उसकी कीमत लगाना असंभव हो जाता है.
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