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युवा समझपूर्वक जीवन जी कर ही पा सकते हैं सफलता, संतुलन और शांति– संजीव क्वात्रा का संदेश

संजीव क्वात्रा ने कहा कि युवा पीढ़ी को महत्वाकांक्षा की दौड़ के साथ-साथ आत्म चिंतन, मानसिक संतुलन और मूल्यों की समझ के साथ जीवन जीने की कला सीखनी चाहिए.

जहां चारों तरफ तनाव, स्पर्धा तथा कभी न खत्म होने वाली दौड़ का युग है ऐसे समय में जाने-माने मोटिवेशनल स्पीकर और इन्डस्ट्री एक्सपर्ट संजीव क्वात्रा ने सही समय पर देश के युवाओं को आत्मचिंतन करने का आह्वान किया है. एक गहन विचार को रखते हुए उन्होंने कहा है कि आज का भारतीय समाज, और खास कर युवा पीढ़ी, जिन समस्याओं से जूझ रही है, वह मूल्यों के पतन के कारण नहीं परंतु उनमें बदलाव, उनके गलत उपयोग व उनकी गलत समझ के कारण है. यदि आप कह रहे हैं कि मूल्यों का पतन हो रहा है, तो वह मूल्य हो ही नहीं सकते, क्योंकि मूल्यों का तो उर्ध्वगमन होता है अधोगमन नहीं.

मूल्यों का पतन नहीं हुआ, दृष्टिकोण में बदलाव आया है
हमारे यहां कईं बार पश्चिमी समाज को सांस्कृतिक पतन का कारण माना जाता है. जबकि वे पश्चिमी समाजों की आलोचना करने के बजाय उसकी कुछ सकारात्मक आदतों की सराहना करते हैं जैसे शांति, सुघड़ता व स्वप्रेम. वहां के लोग एकांत का सम्मान करते हैं, प्रकृति से जुड़ाव रखते हैं, समय पर छुट्टियां लेकर आराम करते है. किताबें पढ़ने की संस्कृति वहां बरकरार है. यह सब बातें मानसिक शांति व इमोशनल वेल बिईंग को बढ़ावा देती हैं.

जबकि भारत की बात करें तो हम हमारी परंपरा व मूल्यों से दूर हो गए हैं. संजीव जी कहते हैं कि हम उपभोग की संस्कृति में फंस गए हैं. हमारी दौड़ सिर्फ ज्यादा कमाई और अधिक से अधिक काम करने तक सीमित हो गई है. हमारे शहरी जीवन में ठहराव, चिंतन व खुद के विकास के लिए कोई जगह नहीं रह गई है. हमारा जीवित रहने का लक्ष्य सिर्फ और सिर्फ काम-काम और काम रह गया है.

लालच, विकास और धन की दिशाहीन दौड़
संजीव क्वात्रा एक मूल प्रश्न को उठाते हुए कहते हैं कि धन कमाना गलत नहीं है लेकिन जब यह शांति छीन ले तो ज़हर बन जाता है. आज की युवा पीढ़ी को चेताते हुए कहते हैं कि महत्वाकांक्षा और लालच में बहुत महीन अंतर है  और आज का समाज उस सीमा को लांघ चुका है.

वे एक उदाहरण देकर कहते हैं कि जैसे हमारा शरीर सीमित भोजन ही पचा सकता है, वैसे ही धन की भी एक स्वाभाविक सीमा होनी चाहिए. लेकिन आज यह दौड़ सिर्फ एक आंकडों का खेल बन कर रह गई है, जिसमें ना कोई संतोष है, ना जिसका कोई अंत.

क्वात्रा स्पष्ट करते हैं कि धन कमाना गलत नहीं, लेकिन जब यह तनाव, चिंता और रिश्तों की बलि मांगने लगे तब यह जीवन को खोखला बना देता है. उनका सुझाव है कि हमारा जीवन ऐसा हो जिसमें - हम आर्थिक रूप से सुरक्षित होने के साथ अंदर से शांत हों और हमारे संबंध मजबूत हों. कमाई हमारे लिये सिर्फ एक साधन बने, साध्य नहीं. वे युवाओं को प्रेरित करते हैं कि वे अपने जीवन को सिर्फ बैंक बैलेंस से नहीं, बल्कि संतोष, सेहत और संबंधों से भी मापें.

युवावस्था में संतुलन की कला

छात्रों और यंग प्रोफेशनल्स को सीधा संबोधित करते हुए संजीव क्वात्रा इस बात पर ज़ोर देते हैं कि युवावस्था में सिर्फ करियर बनाना काफी नहीं है, बल्कि यह चरित्र निर्माण का भी महत्वपूर्ण समय है. वे चेतावनी देते हुए कहते हैं कि पैसा सफलता का मापदंड नहीं है. पैसा तो एक साधन है कोई लक्ष्य नहीं.

इस उम्र में यदि धन के पीछे भागना ही प्रमुख लक्ष्य बन जाए, तो वह बौद्धिक स्पष्टता और भावनात्मक मजबूती को कमजोर कर सकता है.

वे युवाओं को कहते है कि किसी भी काम में परिणाम के बदलें अर्थ को खोजें. हमेशा मोबाइल पर स्क्रॉलिंग के बदले किताबें, खेलकूद और अपने शौक को ज्यादा महत्त्व दें. लैपटॉप को वे शिक्षा का बेहतर साधन मानते हैं, जबकि मोबाइल को भटकाव का एक जरिया. उनका संदेश है  संसाधनों का उपयोग समझपूर्वक करें, अंधाधुंध नहीं.

समय ही जीवन है: इसका ध्यानपूर्वक उपयोग करना सीखें
उनका कहना है कि जीवन में संतुलन नहीं होने का एक बड़ा कारण समय का ग़लत प्रबंधन है. वे कहते हैं कि समय ही जीवन है और समय बर्बाद करना मतलब जीवन बर्बाद करना. वे टेलीविजन और सोशल मीडिया से अत्यधिक मनोरंजन की आलोचना करते हैं. उनका कहना है कि इससे आपको लगता है कि आनंद की प्राप्ति होती है परंतु वे हकीकत में आपके समय की चोरी करते हैं.

उनका कहना है कि सही टाइम मैनेजमेंट सिर्फ टाइम टेबल बनाना नहीं, बल्कि इस बात का निर्णय करना है कि किस कार्य को कितना समय देना चाहिए और उसको करने से सच में कुछ जुड़ रहा है या केवल समय कट रहा है.

लक्ष्य आवश्यक है परंतु तनाव नहीं
क्वात्रा युवाओं में फैल रहे तनाव को बड़ी गंभीरता से लेते हैं. यह तनाव ज्यादातर माता पिता के दबाव और सामाजिक अपेक्षाओं से उत्पन्न होता हैं. वे मानते हैं कि जीवन में लक्ष्य आवश्यक हैं, परंतु उन्हें पकड़कर बैठे रहना हानिकारक है.

वे एक सरल दृष्टांत देते हैं कि अगर आपको 500 किलोमीटर की यात्रा करनी है तो आप एक बार में पूरा रास्ता तय नहीं करते. पहले 100-150 किलोमीटर

(Disclaimer: एबीपी नेटवर्क प्राइवेट लिमिटेड और/या एबीपी लाइव किसी भी तरह से इस लेख की सामग्री और/या इसमें व्यक्त विचारों का समर्थन नहीं करता है. पाठक को विवेक की सलाह दी जाती है.)

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