समाजवादी पार्टी के मुखिया अखिलेश यादव ने रामचरित मानस पर विवादित बयान देने वाले नेता स्वामी प्रसाद मौर्य को पार्टी का महासचिव बनाकर प्रमोशन दे दिया है. यूपी की राजनीति में ये इस बात का संदेश है कि पार्टी अब पिछड़ों को लामबंद करने की रणनीति पर आगे बढ़ रही है. शायद यही वजह है कि जिस विवादित बयान को लेकर मौर्य से जवाब तलब किया जाना चाहिए था, उसकी बजाय उन्हें अहम पद पर बैठाकर तोहफा दिया गया है.


अखिलेश ने मौर्य के साथ ही अपने चाचा शिवपाल यादव और मुस्लिम नेता आज़म खान को भी महासचिव बनाकर पार्टी से नाराज चल रहे मुस्लिम वोटों को भी साधने की कोशिश की है, लेकिन बड़ा सवाल ये है कि अखिलेश की ये तिकड़ी 2024 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी की सोशल इंजीनियरिंग के फार्मूले को क्या तोड़ पायेगी?


यूपी की राजनीति में स्वामी प्रसाद मौर्य को पिछड़ों का बड़ा चेहरा माना जाता है, लेकिन बीते साल हुए विधानसभा चुनाव में वे सपा के लिये कोई बहुत बड़ा कमाल नहीं कर पाये थे. सियासी जानकर मानते हैं कि मौर्य जानबूझकर ऐसे विवादित बयान दे रहे हैं ताकि पिछड़े वर्ग का जो तबका सपा से छिटक कर बीजेपी के साथ चला गया है, उसे दोबारा पार्टी के साथ जोड़ा जा सके. हालांकि मौर्य को अहम जिम्मेदारी दिए जाने पर यूपी के डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य ने तंज कसते हुए सपा के इस फैसले को 'ताबूत की आखिरी कील' करार दिया है.


उन्होंने अपने ट्वीट में लिखा, "मानसिक रूप से विक्षिप्त हो चुकी समाजवादी पार्टी ने अपना हिंदू विरोधी चरित्र उजागर कर दिया है. श्रीरामचरितमानस मानस को अपमानित करने वाले को सपा बहादुर श्री अखिलेश यादव ने राष्ट्रीय महासचिव बनाकर खुद सपा के ताबूत में आख़िरी कील ठोक दी है. विनाशक काले विपरीत बुद्धि." लेकिन स्वामी प्रसाद मौर्य धार्मिक ग्रंथ का अपमान करने वाले बयानों से बाज आते हुए नहीं दिखते. पार्टी में नया ओहदा मिलने के बाद लगता है कि उनकी जुबान अब और बेलगाम हो गई है. रविवार को तो उन्होंने ये तक कह डाला कि रामचरित मानस धार्मिक ग्रंथ ही नहीं है.


समाचार एजेंसी एएनआई से बातचीत में मौर्य ने कहा, "गाली कभी धर्म का हिस्सा नहीं हो सकता. अपमान करना किसी धर्म का उद्देश्य नहीं होता. जिन पाखंडियों ने धर्म के नाम पर पिछड़ों, महिलाओं को अपमानित किया, नीच कहा, वो अधर्मी हैं. किसने कहा कि रामचरितमानस धार्मिक ग्रंथ है? तुलसीदास ने तो ऐसा नहीं कहा." मौर्य के बयानों का साफ संदेश है कि वे पिछड़ों के साथ ही दलितों को भी रामचरित मानस के खिलाफ भड़काने की राजनीति कर रहे हैं. उन्होंने रविवार को ये भी कहा कि, "धर्म की दुहाई देकर आदिवासियों, दलितों-पिछड़ों व महिलाओं को अपमानित किए जाने की साजिश का विरोध करता रहूंगा, जिस तरह कुत्तों के भौंकने से हाथी अपनी चाल नहीं बदलता, उसी प्रकार इनको सम्मान दिलाने तक मैं भी अपनी बात नहीं बदलूंगा."


जाहिर है कि वे रामचरित मानस की कुछ चौपाइयों को आधार बनाते हुए एक ही धर्म के लोगों को बांटने की कोशिश कर रहे हैं, लेकिन सवाल उठता है कि इससे सपा को फायदा मिलेगा या फिर दलित व पिछड़ा हिंदू भी उसके खिलाफ हो जायेगा?


दरअसल, रामचरित मानस पर मौर्य के विवादित बयान को लेकर बीजेपी नेता सपा पर चौतरफा हमला कर रहे हैं, तो वहीं साधु-संतों ने भी इस पर सख्त आपत्ति दर्ज कराई है. इस मामले में मौर्य के खिलाफ कई केस भी दर्ज कराए गए हैं. बीजेपी लगातार सवाल पूछ रही है कि क्या मौर्य का बयान उनका निजी बयान है या फिर सपा का उन्हें समर्थन है. हालांकि चाचा शिवपाल ने इसे उनका निजी बयान बताते हुए पल्ला झाड़ लिया था, लेकिन अब पार्टी के अंदर उन्हें दिए गए इस प्रमोशन से साफ हो गया है कि अखिलेश यादव की इस मामले पर उनके साथ मौन स्वीकृति है.  


उत्तर प्रदेश बीजेपी के प्रवक्ता राकेश त्रिपाठी के मुताबिक स्वामी प्रसाद मौर्य को रामचरित मानस के अपमान का पुरस्कार मिला है. सपा चाहती है कि उत्तर प्रदेश में सांप्रदायिक सौहार्द बिगड़े और वह यूपी में जातीय संघर्ष उत्पन्न करना चाहती है, लेकिन उसे अपने मंसूबों में कामयाब नहीं होने दिया जायेगा. इस फैसले से अखिलेश यादव का हिंदू विरोधी और जातिवादी चेहरा सामने आ गया है. 


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