पिछले कुछ अरसे से देश में जिस तरह का माहौल बन रहा है उसकी हक़ीक़त को बयान करते हुए मुसलमानों के सबसे प्रभावशाली धार्मिक नेता मौलाना महमूद मदनी ने सरकार से बेहद भावुक अपील की है. उनका कहना है कि मुसलमानों को अपने ही देश में अजनबी बना दिया गया है और आज हालत ये हो गई है कि एक आम मुस्लिम का रास्ते पर चलना तक दुश्वार हो गया है. 


देश की राजधानी समेत कुछ बड़े शहरों को अगर छोड़ दें तो कमोबेश ये नजारा हर शहर में देखने को मिल जायेगा जहां बहुसंख्यक आबादी मुसलमानों को हिक़ारत की नजर से देखने लगी है. लेकिन सवाल है कि मौलाना मदनी ने जो शिकवा जाहिर किया है उस पर सरकार कुछ गौर करेगी या फिर नफ़रत के इस माहौल को ऐसे ही आगे बढ़ने दिया जाएगा?


ज्ञानवापी मस्जिद विवाद को लेकर जमीयत-उलमा-ए-हिंद ने शनिवार को सहारनपुर के देवबंद में एक सभा आयोजित की थी जिसमें सैकड़ों इस्लामिक विद्वानों समेत आम मुस्लिमों ने बड़ी संख्या में हिस्सा लिया. जमीयत के अध्यक्ष मौलाना महमूद मदनी ने लंबी तकरीर दी लेकिन इस दौरान वे अपने दर्द को नहीं रोक पाए और बेहद भावुक अंदाज़ में उन्होंने कहा कि मुसलमानों का सड़क पर चलना तक मुश्किल हो गया है. हमें हमारे ही देश में अजनबी बना दिया गया है लेकिन जो एक्शन प्लान वो लोग तैयार कर रहे हैं उस पर हमें नहीं चलना है. उन्होंने कहा कि हम आग को आग से नहीं बुझा सकते हैं. नफरत को प्यार से हराना होगा.
 
मौलाना मदनी की पूरी तकरीर को गौर से सुना जाए तो उन्होंने एक जिम्मेदार मुस्लिम नेता होने के नाते बेहद समझदारी से अपनी शिकायत सरकार के समक्ष जाहिर की है. उन्होंने मुसलमानों को भड़काने जैसा कोई बयान देने की बजाय अहिंसक तरीके से अपना विरोध जताने की बात कही है लेकिन साथ ही ये भरोसा भी दिलाया है कि मुसलमान अपने मुल्क पर कोई आंच नहीं आने देंगे. मौलाना मदनी ने कहा कि, ऐसे मुश्किल हालात में हम आज यहां मौजूद हैं लेकिन ये सिर्फ हमारा जिगर जानता है कि हमारी क्या मुश्किलें हैं. मुश्किल को झेलने के लिए हौसला और ताकत चाहिए. जिस तरह की चीजें हो रही हैं उसके लिए मुस्लिमों को जेल भरने के लिए तैयार रहना चाहिए. जेल भरो आंदोलन सरकार के खिलाफ विरोध करने का एक अहिंसक तरीका है जो महात्मा गांधी ने अंग्रेजों के खिलाफ 1942 में शुरू किया था. उस लिहाज़ से देखें तो मुस्लिमों को अपनी आवाज उठाने के लिए अब गांधी के रास्ते पर चलने के लिए मानसिक रूप से तैयार किया जा रहा है. 


देश में फैलाई जा रही धार्मिक कट्टरता के खिलाफ अपनी आवाज उठाने का लोकतंत्र में सबको समान हक है और इसे धार्मिक उन्माद के साथ जोड़कर नहीं देखा जा सकता. मदनी ने ये भी कहा कि अगर जमीयत-उलमा-ए-हिंद का ये फैसला है कि हम जुल्म को सह लेंगे पर अपने मुल्क पर आंच नहीं आने देंगे तो ये फैसला कमजोरी की वजह से नहीं है बल्कि जमीयत-उलमा की ताकत की वजह है. ये ताकत हमें कुरान ने दी है. हम हर चीज से समझौता कर सकते हैं पर अपने ईमान से समझौता नहीं कर सकते. हमारा ईमान हमें उस रास्ते पर ले जाता है कि हमें मायूस नहीं होना है. हम हर चीज से समझौता कर सकते हैं, पर देश से नहीं. इस बात को हर किसी को समझने की जरूरत है.


देश में हाल में हुई कुछ साम्प्रदायिक घटनाओं का परोक्ष रूप से हवाला देते हुए मदनी ने ये भी कहा कि "देश में बहुमत उन लोगों का नहीं है जो नफरत के पुजारी हैं और अगर हम उनके उकसावे में आकर उसी लहजे में जवाब देंगे तो वे अपने मकसद में कामयाब हो जाएंगे. देश में नफरत की दुकान चलाने वाले मुल्क के दुश्मन हैं, गद्दार हैं. नफरत का जवाब कभी भी नफरत से नहीं दिया जाता बल्कि मोहब्बत से दिया जाता है. अब बड़ा सवाल ये है कि समाज में नफ़रत फैलाने वाले कितने लोगों को मोहब्बत का ये पैगाम समझ में आयेगा?


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