हमारे पड़ोसी मुल्क पाकिस्तान में इस वक़्त जबरदस्त सियासी अफ़रताफरी मची हुई है. सिर्फ इसलिये नहीं कि जल्द आम चुनाव कराने की मांग को लेकर पूर्व प्रधानमंत्री इमरान खान सरकार के ख़िलाफ़ लांग मार्च निकाल रहे हैं औऱ इस बीच उन पर कातिलाना हमला भी हो चुका है. लेकिन फौज से लेकर सरकार में बेचैनी का माहौल इस बात को लेकर है कि मुल्क का नया आर्मी चीफ आखिर कौन होगा? 


बेशक पाकिस्तान में भी भारत की तरह ही लोकतंत्र है लेकिन इतिहास बताता है कि वहां के सेना प्रमुख के पास इतनी ताकत होती है कि वो राजनीतिक अस्थिरता का खतरा भांपते ही चुनी हुई सरकार का तख्तापलट करने में ज्यादा देर नहीं लगाता है.


दरअसल, पाकिस्तान में आर्मी चीफ का ओहदा बेहद अहम होता है, जो अपने मुल्क के अलावा भारत में आतंक फैलाने के लिए आतंकियों को हर तरह की मदद मुहैया कराने वाली ख़ुफ़िया एजेंसी आईएसआई का भी एक तरह से सर्वोच्च कमांडर होता है. यानी भारत समेत किसी भी मुल्क में किसी आतंकी कार्रवाई को कब और कैसे अमल में लाना है, उसे सेना प्रमुख की हरी झंडी मिले बगैर अंजाम नहीं दिया जा सकता है.


मौजूदा सेना प्रमुख जनरल क़मर जावेद बाजवा की तैनाती साल 2016 में हुई थी लेकिन साल 2019 में इमरान ख़ान ने उनके सेवाकाल को तीन साल का विस्तार दे दिया था क्योंकि इमरान को सत्ता दिलाने में उनकी भी अहम भूमिका रही थी. ये अलग बात है कि नेशनल असेंबली में अविश्वास प्रस्ताव हारने के बाद से इमरान खान और जनरल बाजवा के बीच ऐसा छत्तीस का आंकड़ा हो गया है, जिसे कुत्ते-बिल्ली वाला बैर ही समझा जाता है. वहीं बाजवा अब 29 नवम्बर को रिटायर हो रहे हैं, इसलिये पाकिस्तान में आम चुनाव का ऐलान होने से भी ज्यादा विपक्षी दलों समेत लोगों की नजरें इस पर लगी हुई हैं कि अगला आर्मी चीफ कौन होगा और किस राजनीतिक दल का फेवर करने वाला साबित होगा.


हालांकि पाकिस्तान के गृहमंत्री राणा सनाउल्लाह ने शनिवार को दावा किया है कि प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ की ओर से एक या दो दिन में नए आर्मी चीफ का एलान कर दिया जाएगा. उनके मुताबिक पीएम शरीफ ने नए आर्मी चीफ की नियुक्ति के लिए सारी प्रक्रिया को पूरा कर लिया है और अगले दो दिनों में इसे कागजी रूप दे दिया जाएगा. पाकिस्तानी मीडिया की रिपोर्ट्स के मुताबिक नया सेनाध्यक्ष बनने की दौड़ में फिलहाल छह जनरलों का नाम शामिल है. लेकिन वरिष्ठता के आधार पर बाजवा के बाद जिस लेफ़्टिनेंट जनरल सैयद असीम मुनीर का नाम है, वे खुद ही बाजवा से दो दिन पहले यानी 27 नवंबर को रिटायर हो रहे हैं.


लिहाज़ा, तकनीकी आधार पर तो वो इस रेस से बाहर हो सकते हैं. लेकिन प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ अगर उन पर मेहरबान होते हुए उन्हें अगला सेनाध्यक्ष बनाने का फैसला करते हैं, तो उसी दिन वो जनरल के पद पर पदोन्नत हो जाएंगे और सेना में अगले तीन साल का कार्यकाल विस्तार भी पा जाएंगे.


नया आर्मी चीफ बनने की रेस में दूसरा बड़ा नाम लेफ़्टिनेंट जनरल साहिर शमशाद मिर्ज़ा का है. वे फ़िलहाल रावलपिंडी के कॉर्प्स कमांडर के पद पर तैनात हैं. इससे पहले वो पहले चीफ़ ऑफ़ जनरल स्टाफ़ और जनरल मिलिट्री ऑपरेशंस के डायरेक्टर के तौर पर भी तैनात रह चुके है. पाकिस्तानी सेना में सेनाध्यक्ष के बाद ये दोनों ही पद बहुत पॉवरफ़ुल माने जाते हैं. पाकिस्तानी तालिबान और अन्य चरमपंथी ग्रुपों के ख़िलाफ़ कई सैन्य अभियानों की ज़िम्मेदारी भी वे निभा चुके हैं. इसके अलावा वे उस क्वाड्रिलेटरल कोआर्डिनेशन ग्रुप में भी रहे हैं जिसने अफ़ग़ानिस्तान में समझौता कराया था. इस लिहाज से अगर मेरिट को ही पैमाना माना जाये तो वे इसमें खरे उतरते हैं. लेकिन मौजूदा सियासी माहौल में वे कितना फिट बैठते हैं और सियासी आका किस हद तक उन पर भरोसा करते हैं, सारा दारोमदार इसी पर टिका हुआ है. 


हालांकि मुल्क के कुछ विश्लेषकों का भी यही कहना है कि इस पद की दौड़ में वे सबसे आगे हैं. इस दौड़ में तीसरा अहम नाम लेफ्टिनेंट जनरल अज़हर अब्बास का है जो बलोच रेजीमेंट से ताल्लुक रखते हैं. फिलहाल वे पाकिस्तानी सेना के 35वें चीफ़ आफ़ जनरल स्टाफ हैं. उन पर तमाम ऑपरेशन और ख़ुफ़िया मामलों से संबंधित ज़िम्मेदारी है. लेकिन उनका एक बड़ा प्लस पॉइंट ये है कि पाक सेना में फिलहाल जितने भी आला अफ़सर हैं, उनमें इकलौते अब्बास ही ऐसे हैं जिन्हें भारतीय मामलों का सबसे ज्यादा अनुभवी माना जाता है. शायद इसकी एक वजह ये भी है कि वे इससे पहले कश्मीर केंद्रित एक्स कॉर्प्स की ज़िम्मेदारी संभाल चुके हैं. इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि कश्मीर में आतंक फैलाने के लिए सीमा पार से आने वाले उग्रवादियों को मदद मुहैया कराने में उनकी क्या अहम भूमिका रही होगी.


हालांकि पाकिस्तानी सेना पर पिछले कई दशकों से ये आरोप लगता रहा है कि वह अपने हिसाब से बड़े राजनेताओं को न सिर्फ दरकिनार करती है बल्कि चुनावों में दखल देकर उसके नतीजे भी प्रभावित करती है. सच तो ये है कि अमेरिका की तरह पाकिस्तान में भी फौज एक स्टेकहोल्डर है. इसीलिये उससे न्यूट्रल होने की उम्मीद करना ही बेकार है. पूर्व प्रधानमंत्री नवाज़ शरीफ़ ने एक बार कहा था- "मैंने जनरल परवेज़ मुशर्रफ़ को आर्मी चीफ  तैनात करने का फ़ैसला जल्दबाज़ी में किया था, मुझे ग़लत सलाह दी गई थी." इसलिये बड़ा सवाल ये है कि उनके भाई और मुल्क के पीएम शहबाज शरीफ़ भी क्या अब वही गलती दोहरायेंगे?


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