प्रशांत किशोर ममता के सलाहकार हैं, वह ममता को तीसरी बार मुख्यमंत्री बनाने की रणनीति पर काम कर रहे हैं. लेकिन प्रशांत किशोर चुनाव के तीन चरण के बाद भूल जाते हैं कि दीवारों के भी कान हुआ करते हैं. कुछ पत्रकार साथियों के साथ बातचीत में पीके ने कुछ ऐसी बातें कहीं जिनसे ममता को सियासी नुकसान हो सकता है या फिर यूं कहा जाए कि बीजेपी को चुनावी फायदा हो सकता है. 


''प्रधानमंत्री मोदी भगवान जैसे हैं, दलित वोट करीब करीब एकमुश्त बीजेपी को मिल रहा है, मतुआ वोट तीन चौथाई बीजेपी के पास जा रहा है, पचास से पचपन फीसद हिंदू वोट बीजेपी को मिल रहा है. हिंदी बोलने वाले बीजेपी पर और मोदी पर ज्यादा विश्वास कर रहे हैं, लेफ्ट को मिलने वाला दो तिहाई वोट भी मानकर चल रहा है कि बंगाल में बीजेपी आ रही है." ऐसी कुछ बातें हैं जो पीके ने कही. बीजेपी ने इस का आडियो जारी किया है जो बुरी तरह से संपादित किया हुआ है. यानि  बीजेपी ने अपने हिसाब से चुनिंदा अंशों को ही सामने रखा है. 


 अब इसमें गलत क्या है. आप किसी राजनीतिक दुश्मन को हथियार सौंप दे और फिर उम्मीद करें कि वह इसका इस्तेमाल आपके खिलाफ नहीं करेगा ऐसा कैसे हो सकता है. जहां तक संपादित अंशों की बात है तो बीजेपी उन्हीं हिस्सों को सामने लाएगी जो उसे लगता है कि उसके पक्ष में जा सकती है. अब पीके चुनौति दे रहे हैं कि बीजेपी पूरा भाषण सामने लाए. अब यह काम बीजेपी क्यों करेगी? अगर पीके को लगता है कि पूरा भाषण सामने आने पर दूध का दूध पानी का पानी हो सकेगा तो वह खुद या अपने किसी दोस्त की मदद से पूरा भाषण सामने क्यों नहीं लाते. इसके लिए उन्हें किसने रोका है?


अब सवाल उठता है कि आखिर पीके ने जो कहा उससे क्या वास्तव में बीजेपी को फायदा होगा? क्या ऐसा पहली बार किसी ने कहा है. क्या यह बातें राजनीतिक गलियारों से लेकर वोटरों के मुहल्लों में चर्चा का विषय़ नहीं बनती रही हैं. क्या पीके परसेप्शन की लड़ाई को जानबूझकर हवा दे रहे हैं. क्या अब जब ममता के समर्थकों को लगेगा कि दीदी चुनाव हार भी सकती है तो वह ज्यादा बड़ी तादाद में वोट देने नहीं निकलेंगे? क्या पीके ने जो कुछ कहा वह सोचसमझ कर कहा...वह सब यह जानते हुए कहा कि आडियो लीक भी हो सकता है. यह सारे कुछ सवाल हैं जो हवा में तैर रहे हैं. इनके जवाब तलाशने की कोशिश करते हैं. 


जानकारों का कहना है कि पीके ने जो कुछ कहा उसमें कुछ भी नया नहीं है. लेकिन चूंकि पीके कह रहे हैं इसलिए सबकुछ नया भी है और ममता को नुकसान पहुंचाने वाला भी है. खासतौर से फेंससिटर यानि वह लोग जो अंतिम समय में ही फैसला करते हैं कि वोट किसे देना है. आमतौर पर ऐसे लोगों की संख्या सात आठ फीसद के आसपास रहती है. अब अगर इसमें से आधे बीजेपी के साथ आ जाते हैं तो ममता के लिए वास्तव में मुश्किल खड़ी हो सकती है. पीके कह रहे हैं कि लेफ्ट के दस पन्द्रह फीसद वोटरों में से करीब दो तिहाई  भी मानते हैं कि बीजेपी सत्ता में आ रही है. अब पीके को लगता है कि ( यह बात काफी हद तक सही भी है ) यह लोग बीजेपी को ही वोट देंगे ऐसा नहीं है.  ये लोग चाहते हैं कि ममता हारें, अब चूंकि लेफ्ट ममता को हराने की हालत में नहीं है लिहाजा इन्हे लगता है कि बीजेपी ममता को हरा दे. जो माहौल बीजेपी बना रही है उससे लेफ्ट के इन लोगों को लग रहा है कि बीजेपी सत्ता में आ सकती है. लेकिन अगर थोड़ा बहुत वोट भी बीजेपी की झोली में जाता है तो इसका सीधा नुकसान ममता  को ही होगा लेफ्ट को नहीं.


पीके कह रहे हैं कि दलित 27 फीसद है जिनका झुकाव बीजेपी की तरफ है. मतुआ 75 फीसद बीजेपी के साथ हैं. साथ ही आगे वह यह भी कहते हुए बताए जाते हैं ( जिसे संपादित कर दियागया ) कि मतुआ वोटों को टीएमसी के तरफ लाने के प्रयास चल रहे हैं. अब बंगाल में तीस फीसद मुस्लिम हैं जो ममता की तरफ बताए जाते हैं. ऐसे में ममता दस पन्द्रह फीसद वोटों के साथ अपनी शुरुआत कर रही है. लेकिन दलित अगर बीजेपी की तरफ जा रहे हैं तो बीजेपी भी दस पन्द्रह फीसद वोटों के साथ शुरुआत कर रही है.


इसका मतलब सीधा यही है कि दोनों दलों के बीच बहुत ही कांटे का मुकाबला हो सकता है. अगर एक करोड़ हिंदी भाषी लोगों का रुझान भी मोदी की तरफ है तो शहरी इलाकों में बीजेपी मजबूत होनी चाहिए. अब इसका तोड़ क्या ममता ग्रामीण इलाकों  के जरिए निकाल पाएंगी यह बड़ा सवाल है. कुल मिलाकर बंगाल में पूरा चुनाव ममता बनाम मोदी होता जा रहा है. ऐसा ममता नहीं चाहती थी, वह चाहती थी कि चुनाव ममता बनाम अन्य हो जाए और वह खुद विक्टिम कार्ड खेलते हुए महिला और मुस्लिम वोटरों के सहारे सत्ता में आ जाए. लेकिन कहानी क्या कुछ बदलती नजर आ रही है. 


यह दो मई को ही पता चल पाएगा लेकिन बीजेपी गेम में पूरी तरह से आती दिख रही है. सारा मामला दो ढाई फीसद वोटों पर आ टिका लगता है. हम इसलिए कह रहे हैं कि पहले चरण से पहले आए एबीपी न्यूज सी वोटर ओपिनियन पोल में बीजेपी को करीब 38 और ममता को करीब 42 फीसद वोट मिलते बताए गये थे. हालांकि सीटों की अंतर करीब पचास का था. बीजेपी को 112 और ममता को 160 सीटें मिलती बताई गयी थी. चार चरणों के बाद हालात कुछ बदले हैं. लेकिन ममता थोड़ा आगे अभी भी बताई जा रही है. बचे चार चरणों में इस गैप को मोदी कितना भर पाते हैं यह देखना दिलचस्प रहेगा.