जम्मू कश्मीर से आर्टिकल 370 निरस्त होने के बाद से ही कश्मीरी पंडित फिर से आतंकियों के निशाने पर आ गए हैं. हालांकि घाटी में फ़िलहाल कश्मीरी पंडितों के महज 800 परिवार ही रहते हैं, लेकिन आतंकियों को लगता है कि 370 हटने के बाद वे फिर से घाटी में आकर बसना शुरु कर देंगे. सरकार की भी यही कोशिश है कि वे तीन दशक के बाद दोबारा अपनी सरजमीं पर आकर काम-धंधा शुरु करें. अगर ऐसा होता है तो ऐसी सूरत में जिन्होंने उनकी कई करोड़ों की सम्पतियों पर अवैध कब्जा जमाया हुआ है, उसे लौटाना पड़ेगा. यही वजह है कि उनमें खौफ़ का माहौल पैदा करने के लिए ही आतंकी लगातार कश्मीरी पंडितों को निशाना बना रहे हैं.


गुरुवार को भी एक कश्मीरी पंडित सरकारी कर्मचारी राहुल भट्ट की आतंकियों ने ऑफिस में घुसकर हत्या कर दी थी. आतंकवादियों ने चडूरा शहर में तहसील कार्यालय के भीतर घुस कर राहुल भट्ट को गोली मारकर घाटी से बाहर रह रहे पंडितों को यही संदेश देने की कोशिश की है कि वे दोबारा घाटी में बसने का ख्वाब न देखें. हालांकि हत्या में शामिल तीनों आतंकियों को सुरक्षा बलों ने मार गिराया है, लेकिन सच तो ये है कि जब तक ऐसी एक भी हत्या होती रहेगी, कश्मीरी पंडितों की दहशत खत्म नहीं होगी और वे चाहकर भी घाटी में बसने के बारे में सोच भी नहीं सकते.


बीती 6 अप्रैल को राज्यसभा में प्रश्नकाल के दौरान, गृह राज्य मंत्री नित्यानंद राय ने एक लिखित जवाब में बताया था कि जम्मू-कश्मीर में आर्टिकल 370 के निरस्त होने के बाद 2105 प्रवासी नौकरी के लिए घाटी वापस लौट आए हैं. ये नौकरियां प्रधानमंत्री विकास पैकेज के तहत प्रदान की गई हैं. उन्होंने ये भी बताया था कि 5 अगस्त 2019 से 24 मार्च 2022 तक जम्मू-कश्मीर में आतंकवादियों द्वारा 4 कश्मीरी पंडित और 10 अन्य हिंदू मारे गए हैं. उनके मुताबिक जम्मू-कश्मीर में 2020-21 में नियुक्तियों की संख्या 841 थी, जो 2021-22 में बढ़कर 1264 हो गई है.


उसी प्रश्नकाल में शिवसेना सांसद प्रियंका चतुर्वेदी ने पूछा था कि कश्मीरी पंडितों के लिए 3000 नौकरियां देने का वादा किया गया था, अब तक कितने लोगों को नौकरियां दी गईं? साथ ही उन्होंने सवाल किया कि मंत्रालय ने अपने जवाब में कश्मीरी पंडितों को कश्मीरी माइग्रेंट्स (प्रवासी) कहा है, कश्मीरी पंडितों को दिया गया माइग्रेंट्स का ये लेबल आख़िर कब खत्म होगा? उसके जवाब में गृह राज्य मंत्री ने कहा था कि मैं तो इसे और संशोधित करना चाहता हूं. मैं तो इसे हिंदू कश्मीरी पंडित कह रहा हूं. उनके मुताबिक जो लोग वहां जाना चाहते हैं, उनके लिए हम वहां आवास बना रहे हैं. 


बीजेपी सांसद राकेश सिन्हा के सवाल पर नित्यानंद राय ने कहा था कि कि जम्मू-कश्मीर में औद्योगिक विकास के क्षेत्र में 51 हजार करोड़ रुपए के निवेश के प्रस्ताव आए हैं, जो वहां के नौजवानों को रोजगार देने में बहुत ही सार्थक हैं. इससे करीब साढ़े 4 लाख लोगों को रोजगार मिलने की संभावना है. 


इस तस्वीर का दूसरा पहलू ही कश्मीरी पंडितों को घाटी में जाने से रोकता है. कश्मीरी पंडित संघर्ष समिति के अध्यक्ष संजय टिक्कू के अनुसार, 1990 तक जम्मू-कश्मीर में चरमपंथ के फैलने के बाद से कम से कम 399 कश्मीरी पंडित मारे गए, लेकिन 1990 के बाद के इन 20 सालों में कुल 650 कश्मीरी अपनी जान गंवा चुके हैं. टिक्कू का यह भी मानना है कि अकेले 1990 में ही 302 कश्मीरी पंडितों की हत्या कर दी गई थी.


टिक्कू अभी भी घाटी में रहते हैं और उनके अनुसार 808 परिवारों के कुल 3,456 कश्मीरी पंडित अभी भी कश्मीर में रहते हैं, लेकिन सरकार ने अब तक उनके लिए कुछ नहीं किया. ऐसी सूरत में दोबारा घाटी में बसने की भला कौन सोचेगा?


(नोट- उपरोक्त दिए गए विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. ये जरूरी नहीं कि एबीपी न्यूज ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.)