पुरानी कहावत है कि "घर में नहीं दाने और अम्मा चली भुनाने." फिलहाल ये कहावत पाकिस्तान पर बिल्कुल सही फिट होती नजर आ रही है. वह इसलिये कि जो मुल्क खुद कई अरबों डॉलर के कर्ज में डूबा हुआ हो और अभी भी चीन के आगे खाली कटोरा लेकर भीख मांग रहा हो, उसी पाकिस्तान ने भारत के नजदीकी पड़ोसी देश श्रीलंका को 20 करोड़ डॉलर कर्ज देने का एलान किया है. पाकिस्तान का अवाम समझ ही नहीं पा रहा कि उनके प्रधानमंत्री इमरान खान को आखिर ये क्या हुआ है कि वे कर्ज़ लेकर किसी और मुल्क को देसी घी की ख़ैरात बांटने निकल पड़े हैं. लेकिन भारत के कूटनीतिक विशेषज्ञों को अच्छी तरह से समझ आ रहा है कि पाकिस्तान ऐसा क्यों और किसकी शह पर कर रहा है.
दरअसल, चीन ने पाकिस्तान और श्रीलंका समेत तकरीबन 40 छोटे अफ्रीकी देशों को अपने कर्ज़ के मकड़जाल में फांस रखा है और कर्ज न चुका पाने की हालत में वो इन देशों की अहम संपत्तियों को हथियाने की रणनीति पर आगे चल रहा है. अगर कूटनीति की भाषा में कहें, तो चीन छोटे व गरीब देशों को कर्ज देकर अपना गुलाम बनाना चाहता है. इसमें कोई शक नहीं कि कोरोना काल से ही श्रीलंका सरकार ने अपने कुछ गलत फैसलों के चलते देश को आर्थिक आपातकाल की तरफ धकेल दिया है.वहां पिछले साल नवंबर से ही आर्थिक आपातकाल लागू है.
लेकिन सोचने वाली बात ये है कि जो पाकिस्तान इंटरनेशनल मॉनिटरिंग फंड यानी IMF और चीन के कर्ज के नीचे खुद इतनी बुरी तरह से दबा हुआ है, वह श्रीलंका की मदद करके भारत को आखिर क्या संदेश देना चाह रहा है या फिर चीन ही उसे आगे करके अपने नापाक मंसूबों का कोई संदेश हमें देना चाहता है? हक़ीक़त तो ये है कि खुद पाकिस्तान पर कई अरबों डॉलर का कर्ज है. कोरोना को अपनी मुफ़लिसी की वजह बताते हुए उसने IMF से भी कर्ज देने की गुहार लगाई थी. तकरीबन छह महीने तक नाक रगड़ने के बाद तीन दिन पहले ही IMF ने उसे 1 अरब डॉलर का कर्ज देने का भरोसा दिलाया है. कुछ रिपोर्ट्स के मुताबिक पाकिस्तान पर घरेलू और विदेशी कर्ज 50 हजार अरब रुपए से भी ज्यादा का है. पिछले साल ही IMF ने कर्ज के मसले पर पाकिस्तान को चेतावनी भी दी थी.
वैसे अपने लिए क़र्ज़ की भीख मांगने निकले इमरान खान का पाकिस्तान अब तक चीन से करीब 11 अरब डॉलर का कर्ज ले चुका है. चीन ने पैसे देने के साथ ही पाकिस्तान के बलूचिस्तान में भारी निवेश भी किया है, जो भौगोलिक और सामरिक लिहाज से उसके लिए बेहद अहम है. बीते साल दिसंबर में ही पाकिस्तान ने सऊदी अरब से 3 अरब डॉलर का कैश रिजर्व हासिल किया था, वो भी उसे ढेरों मिन्नतें करने के बाद ही मिल पाया था.
लेकिन अब इमरान खान एक बार फिर से कर्ज की भीख मांगने के लिए चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग की चौखट पर पहुंच गए हैं. बहाना तो बीजिंग में हो रहे विंटर ओलिंपिक गेम्स के उद्घाटन समारोह में शिरकत करने का है लेकिन मकसद है कि चीन उन्हें 3 अरब डॉलर का कर्ज दे दे. अंतरराष्ट्रीय मामलों के जानकार मानते हैं कि पूरी उम्मीद है कि चीन उसकी ये ख्वाहिश भी पूरी कर देगा, क्योंकि वह भारत के खिलाफ पाकिस्तान को एक बड़े हथियार के रुप में इस्तेमाल करना चाहता है और अब वो हमें दूसरे फ्रंट यानी श्रीलंका की तरफ से भी घेरने की तैयारी में है. इसलिये समझ सकते हैं कि चीन से कर्ज मिलने की हां होने के बाद ही इमरान ने श्रीलंका को इतनी बड़ी मदद देने का एलान किया है. उनके मुताबिक चीन की चालबाजी को समझना होगा, क्योंकि वह पहले ही श्रीलंका को करीब 5 अरब डॉलर का कर्ज दे चुका है, लिहाज़ा अब वह पाकिस्तान के जरिये श्रीलंका की आर्थिक मदद करके भारत के खिलाफ दुश्मनी के बीज बो रहा है, ताकि हमें भी भ्रम में उलझाए रखे और अन्तराष्ट्रीय मंच पर भी खुद को पाक-साफ साबित कर सके. बुरी तरह से कर्ज़ में डूबे पाक पीएम इमरान खान अगर श्रीलंका को 20 करोड़ डॉलर का कर्ज देने का ऐलान करते हैं तो इसका मतलब साफ है कि चीन के कहने पर और वहां से मिलने वाले पैसों में से ही वह श्रीलंका के लिए ये हिस्सा निकालेंगे.
दरअसल श्रीलंका भी हमारा सबसे करीबी पड़ोसी है और भारत के साथ उसका नाता दशकों से नहीं बल्कि मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम के युग से है.दोनों देशों के कूटनीतिक रिश्ते भी अब तक बेहतर ही रहे हैं लेकिन पिछले कुछ सालों में उसने इतनी आर्थिक मार झेली है, जिसे हमसे पहले चीन ने ताड़ लिया और ताबड़तोड़ उसकी मदद करके काफी हद तक उसे अपने पाले में ले लिया. अब वो चाहते हुए भी खुलकर भारत का साथ देने से इसलिये कतरायेगा क्योंकि वो चीन के अहसान के नीचे दबा हुआ है. एक रिपोर्ट के मुताबिक चीन ने श्रीलंका को 4.6 अरब डॉलर का कर्ज दिया हुआ है. दावा यह भी किया गया है कि श्रीलंका पर जितना कर्ज है उसमें 18 फीसदी हिस्सेदारी अकेले चीन की है. विश्व बैंक की एक रिपोर्ट बताती है कि साल 2019 में श्रीलंका पर कर्ज बढ़कर सकल राष्ट्रीय आय का 69 फीसदी हो गया था.
बेहद छोटा देश होने के बावजूद श्रीलंका अपने प्राकृतिक सौंदर्य की खातिर दुनिया भर के पर्यटकों को हमेशा से अपनी ओर खींचता रहा है और उसी पर्यटन के बल पर उसे एक खुशहाल देश माना जाता रहा. लेकिन इसे कोरोना का असर भी कह सकते हैं और वहां की सरकार के कुछ कड़े फैसले भी कि आज वह कंगाली की कगार पर आ पहुंचा है. एक मोटे अनुमान के मुताबिक सवा साल पहले तक श्रीलंका का विदेशी मुद्रा भंडार 5 अरब डॉलर से ज्यादा था, जो अब घटकर महज़ एक अरब डॉलर तक आ पहुंचा है. बताते हैं कि वहां एक अमेरिकी डॉलर का मूल्य 200 श्रीलंकाई रुपए से भी ज्यादा हो गया है. वहां महंगाई ने सारे रिकॉर्ड तोड़ दिए हैं.
श्रीलंका की बदहाली के पीछे वहां की सरकार के कुछ फैसलों को भी जिम्मेदार ठहराया जा रहा है. सरकार ने पूरे देश में ऑर्गेनिक खेती को अनिवार्य बना दिया,जिसके कारण वहां कीटनाशकों और उर्वरक पर रोक लगा दी गई. नतीजा ये हुआ कि चीन ने अपने सबसे घटिया ऑर्गेनिक खाद की सप्लाई शुरू कर दी जिसके कारण फसलों को कीड़े खाने लगे और उचित उर्वरक की कमी के कारण उत्पादन बेहद कम हो गया. इसके अलावा सरकार ने विदेशों से पाम ऑयल के आयात पर भी रोक लगा दी. जाहिर है कि वहां महंगाई तो बढ़नी ही थी. लेकिन श्रीलंका के खजाने में अब इतना पैसा नहीं बचा कि वो चीन का कर्ज चुका सके, इसलिये उसे पाकिस्तान के 20 करोड़ डॉलर की इमदाद भी किसी नियामत से कम भला क्यों लगेगी?
नोट- उपरोक्त दिए गए विचार व आंकड़े लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. ये जरूरी नहीं कि एबीपी न्यूज ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.