भोपाल में मेरे घर से पांच मिनिट की दूरी पर ही है व्यापम चौराहा. नाम से चौंकिये नहीं ये चौराहा इसी बदनाम नाम से जाना जाता है. चौराहे से उपर चढते ही व्यापम का दफतर है जिसका नाम बदनामी मिटाने के लिए तीन बार बदल गया है, मगर इस चौराहे पर जो बस स्टॉप है उस पर व्यापम ही लिखा है तो इसे लोग व्यापम चौराहा ही कहते हैं. ये दाग अच्छे हैं कि तर्ज पर नगर निगम इस बस स्टॉप का नाम भी नहीं बदलती तो हम भी यही कहते हैं. बुलबुल को स्कूल की बस में बैठाकर व्यापम चौराहे पर पहुंचा ही था कि देखा कि चौराहा कुछ बदला-बदला सा नजर आ रहा था.
चौराहे पटे पड़े हैं होर्डिंग्स से
चौराहे पर चार रास्तों पर लगे रेड लाइट के खंभे इन दिनों सरकारी होर्डिंग्स टिकाने के ठिकाने बन गये हैं तो पहले खंभे पर गहरे नीले का होर्डिंग खंभे से बांधकर रखा गया था. भोपाल मेट्रो का ट्रायल रन फ्लैग ऑफ का होर्डिंग्स था ये जिसमें एक तरफ मोदी जी तो दूसरी छोर पर शिवराज जी के फोटो थे. इंदौर के बाद भोपाल में होने वाले मेटो के ट्रायल रन को शिवराज जी जो हरी झंडी दिखाने वाले थे उसकी जानकारी देने के लिये ये होर्डिग रखा था. मगर ये क्या उसके ठीक सामने वाली खंभे पर गुलाबी रंग मे रंगा होर्डिंग्स तना था ये महिला स्व सहायता समूह सम्मेलन का होर्डिंग था जिसे शिवराज जी संबोधित करने वाले थे और ये जंबूरी मैदान में होने वाला कार्यक्रम था.
लाडली बहना से शिवराज के परिवार तक
होर्डिंग की बात करें तो इन चार के अलावा एक और होर्डिंग जो चारों तरफ से सड़क पर रखा दिख रहा था वो एक अखबार के कार्यक्रम का था जिसमें मुख्यमंत्री शिरकत करने वाले थे दो केंद्रीय मंत्रियों के साथ. आमतौर पर चौराहे पर एक या दो होर्डिंग्स ही कभी कभार दिखते हैं मगर एक साथ हर तरफ इतने होर्डिंग्स देखकर पत्रकार मन चौंका और थोडा और आगे बढा तो इस चौराहे पर ही एक तरफ रोड से सटकर बनी वो इमारत देखी जिसकी तीन तरफ की दीवारों पर सरकारी विज्ञापन विशाल रूप में हमेशा तने रहते हैं. तो स्वाभाविक हैं यहां भी एक तरफ लाडली बहना के हजार रूप्ये मिलने से चहकती बहना का फोटो था तो दूसरी दीवार पर पंख लगाकर बेरोजगारी दूर करने वाली योजना का होर्डिंग था तो तीसरी तरफ मैं हूं शिवराज का परिवार स्लोगन वाली योजना का विज्ञापन था. इन तीनों तरफ की दीवारों पर विशाल विज्ञापनों में मुख्यमंत्री और प्रधानमंत्री के मुस्कुराते फोटो लगे हुये थे.व्यापम चौराहे पर व्यापम दफतर की चढ़ाई चढ़ते ही नजर गयी उपर लगी विशाल गेन्ट्री पर जिसमें एक तरफ रास्तों के दिशा निर्देश होते हैं तो उसके बगल में विज्ञापनों के लिये बनी खाली जगह पर हंसती मुस्कुराती लाडली बहना योजना और मोदी शिवराज दिख रहे थे.
विज्ञापन की कॉरपेट बॉम्बिंग
सिर्फ एक चौराहे पर योजनाओं की इस कारपेट बॉम्बिंग के बीच थोडे आगे चले ही थे कि सामने दिखा एक बस स्टॉप मगर यहां भी वही योजनाएं और वही विज्ञापन ऊपर नीचे दायें और बायें अंदर बाहर. बस स्टॉप का छोटा सा कोना भी नहीं छूटा था जहां पर शिवराज सरकार के विज्ञापन की छाप ना दिख रही हो. इस बार के इस विज्ञापन में लाडली बहना नहीं बॉक्सिंग ग्लव्स पहनकर लाडला खिलाडी खडा था जिसका स्लोगन वही था-मैं हूं शिवराज का परिवार. हमारे लोकप्रिय मुख्यमंत्री का परिवार बढा है इसमें कोई दो मत नहीं उनकी योजनाएं समाज के सभी वर्गों के लिये बनीं है. और जिन तक ये योजनाएं पहुंची हैं वो सरकार और शिवराज के शुक्रगुजार जरूर होंगे मगर भोपाल के तकरीबन हर चौराहे पर कदम कदम पर हो रहा ये प्रचार सवाल खड़े करता हैं कि ये योजनाएं समाज के विकास के लिये हैं या इस कदर महंगे प्रचार के लिये. जिस राज्य पर तकरीबन साढ़े तीन लाख करोड का कर्जा हो वहां ऐसा बेतहाशा प्रचार जाने क्या सोच कर किया जा रहा है ?(ये सिर्फ भोपाल के एक चौराहे की कथा है, भोपाल के अखबारों में रोज आने वाले पूरे पन्ने के विज्ञापनों की कथा फिर कभी)
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