दिल्ली में कथित शराब घोटाले के मामले में दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को ईडी द्वारा तीसरी बार नोटिस भेजा गया लेकिन वह ईडी के सामने पेश नहीं हुए. केजरीवाल ने तीसरी बार ईडी के समन को नजरअंदाज किया है. ईडी ने शराब नीति मामले से जुड़े मनी लान्ड्रिंग मामले में पूछताछ के लिए केजरीवाल को बुलाया था. केजरीवाल ने ईडी को अपना जवाब भेजा है कि वो जांच में पूरा सहयोग करेंगे. वहीं AAP के नेताओं का कहना है कि अरविंद केजरीवाल को गिरफ्तार करने की साजिश की जा रही है. शराब नीति घोटाले के मामले में पूर्व डिप्टी सीएम मनीष सिसोदिया और AAP सांसद संजय सिंह पहले से ही जेल में है. 


जांच एजेंसी कर सकती है गिरफ्तार


अरविंद केजरीवाल देश के संघीय ढांचे के अनुसार दिल्ली के मुख्यमंत्री हैं. दिल्ली एक केन्द्र शासित प्रदेश है और  ईडी, सीबीआई, इनकम टैक्स संवैधानिक संस्थाए हैं, जांच एजेंसियां हैं. इनके बुलावे पर नहीं जाना खुद अपने ऊपर प्रश्न लगाने जैसा है. कानून पर भरोसा प्रत्येक संवैधानिक पर बैठे हुए व्यक्ति को करना  चाहिए, रखना चाहिए. उसका व्यवहार ऐसा आम जनमानस में होना चाहिए. यदि दिल्ली के किसी आम नागरिक के पास किसी भी ऐसी संवैधानिक जांच एजेंसी का नोटिस आता है, दिल्ली पुलिस सीआरपीसी का नोटिस देती है, कोई और जांच एजेंसी नोटिस देती तो क्या दिल्ली के एक आम नागरिक को उस जांच एजेंसी के सामने पेश होकर अपने तथ्य, अपने सबूत, अपनी जानकारी, अपनी सफाई के लिए, अपने बचाव के लिए तथ्यों को रखना नहीं चाहिए? निश्निच तौर पर तथ्यों को रखना चाहिए ऐसा हमारा कानून कहता है, सीआरपीसी कहती है, संवैधानिक नियम कहते हैं.



नोटिस का मतलब है हम आपको बुला रहे है आप आइए. इसका मतलब ये नहीं है  कि हम नहीं आएंगे आप हमें गिरफ्तार कीजिए. इसका मतलब आपको यह पता है कि आपके पास कोई डिफेंस नहीं है, बचाव नहीं है. आपके पास अपने बचाव में कहने के लिए कुछ नहीं है तो यह बात सिद्ध हो रही है.  ऐसे में जांच एजेंसी आपको बुलाती नहीं रहेगी. जांच एजेंसी को मजबूर होकर गिरफ्तारी जैसे कठोर कदम उठाना पड़ता है.


कानून का पालन सभी करें


इससे भी लोकतांत्रिक ढ़ाचे को, संघीय ढांचे को कहीं न कहीं नुकसान पहुंचता है. दिल्ली की चुनी हुई सरकार के  मुख्यमंत्री पर कार्यवाही के लिए यदि ईडी को बाध्य होना पड़े तो भी स्थिति अच्छी नहीं रहती है. इसलिए अच्छी स्थिति बनी रहे, संवैधानिक स्थिति बनी रहे, कानून का पालन सभी को करना चाहिए, करते हुए दिखना भी चाहिए, ये मैसेज सभी को जाता है. लोग कहते हैं बड़े लोगों के साथ न्याय की परिभाषा बदल जाती है. ये इस बात के उदाहरण को मजबूती देगा कि बड़े लोग कानून का पालन नहीं करते है. आम गरीब लोग, दलित, शोषित, पीड़ित ग्रामीण लोग, मजदूर को अगर नोटिस मिला होता तो शायद वो सीधे पहुंच जाते. कहीं न कहीं जो भेद पैदा हो रहा है वो भी हमारे देश के संघीय ढांचे के संवैधानिक ढांचे के अनुरूप नहीं है, अनुकूल नहीं है.


इसलिए ऐसे गरिमामय पदों पर बैठे हुए प्रत्येक व्यक्ति को देश के नागरिक होने के नाते, पढ़े लिखे व्यक्ति होने के नाते, जनप्रतिनिधि होने के नाते, लोकतांत्रिक प्रतिनिधि होने के नाते, कानून का पालन करना चाहिए. हम मदर ऑफ डेमोक्रेसी हैं. हम दुनिया में लोकतंत्र के जनक है. लोकतंत्र हमसे शुरू होता है और लोकतंत्र कहता है कि जनता की सरकार, जनता के द्वारा, जनता के लिए चुनी जाती है और यही मुख्यमंत्री का प्रारूप भी है. ऐसे में प्रदेश में दिल्ली के मुख्यमंत्री को निश्चित तौर पर ईडी के पास जाना चाहिए. एक बार को चलिए कि मान लिया, हो गया. काम में रहे होगें, व्यस्तताएं रही होगीं, चुनाव का महीना था. उसके बाद समय निकल गया दूसरी बार बुलाया गया फिर नहीं गए. उसके बाद कह दिया विपश्यना पर गए. जान है तो जहान है, समझना चाहिए स्वास्थ्य है तो जीवन है. जिन्दा रहेंगे तो आगे जांच में भाग लेंगे लेकिन अब क्या बात है? अब तो आना चाहिए, अब इन्वेस्टिगेसन ज्वाइन करना चाहिए. जो सच है वो बताना चाहिए. ऐसे पद पर बैठे व्यक्ति के द्वारा इतनी टालमटोल अच्छी नहीं लगती है.


चुनाव के ठीक पहले नोटिस 


तीन बार नोटिस भेजा जा चुका है. पीएम मोदी ने क्यों कहा कि one nation one election. क्यों देश के पूर्व राष्ट्रपति राम नाथ कोविंद  उस कमेटी की अध्यक्षता कर रहे है. इसलिए कि one nation one election. ये जो पांचो साल इलेक्शन, हर साल इलेक्शन वाले मोड में रहते हैं हमलोग, ये खत्म होगा. एक ही बार में. आम चुनाव, लोकसभा के चुनाव उसी के साथ विधानसभा के चुनाव, उसी के साथ नगर निकाय के, नगर निगम के, नगर पालिका और ग्रामपंचायत के चुनाव भी निबट जाएं. पिछली बार नोटिस गया तब इलेक्शन, इस बार गया तब इलेक्शन. अब 2024 का इलेक्शन. इलेक्शन का  बहाना बनाना ठीक नहीं है. अरविंद केजरीवाल अधिकारी भी रहे हैं जिन्होंने आईआरएस अधिकारी के रूप में अपनी सेवाएं दी है. आईआईटी के छात्र होने के रूप में भी वह रह चुके हैं, उन्होंने अपनी सेवाएं देश को दी है और देश ने उन सेवाओं के बदले उन्हें राजनीति में सर-आंखो पर बिठाया, पलकों पर बिठाया और लगातार तीसरी बार दिल्ली जैसे देश के राजधानी के महत्तवपूर्ण हिस्से का मुख्यमंत्री बनाया और वो दिल्ली से पंजाब तक पहुंचे, ये लोकतंत्र की अच्छाई है, ये लोकतंत्र का प्यार है.


नोटिस को किनारे करना उचित नहीं


लोकतंत्र का यही प्यार है कि जनता की सरकार, जनता के लिए, जनता के द्वारा चुनते है और केजरीवाल तो आईआईटी के छात्र  रहे, आइआरएस जैसे महत्वपूर्ण पद पर रहे है और जनता ने भी उन्हें खूब सराहा है, जनता ने उन्हें खूब प्यार दिया है. इतना प्यार दिया कि तीन बार दिल्ली के मुख्यमंत्री बने और साथ ही उनका विस्तार भी बढ़ा है. पंजाब जैसे राज्य में पूर्ण बहुमत में उनकी सरकार बनी. यदि ऊंचे पदों पर बैठे हुए व्यक्ति संवैधानिक जांच एजेंसियों के बुलावे को, नोटिस को धक्का देकर किनारे करेंगे तो थोड़ा भी उचित नहीं है. इससे आम जनता को भी अच्छी सीख नहीं मिलती है. अरेस्ट करना आखिरी विकल्प होता है. विपक्षी आरोप लगाएंगे, वो मौके की तालाश में है कि वे आरोप लगाएं गिरफ्तारी के. निश्चित तौर पर कान्ट्रोवर्सी पैदा होती है. जांच में सहयोग करना चाहिए.




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