बरसों पहले मशहूर शायर बशीर बद्र ने लिखा था- "कोई हाथ भी न मिलायेगा जो गले मिलोगे तपाक से, ये नये मिज़ाज़ का शहर है जरा संभलके मिला करो." हालांकि ये शेर उन्होंने यूपी के एक शहर में साम्प्रदायिक दंगे भड़कने के बाद लिखा था लेकिन ये भी सही है कि एक शायर की कलम किसी शहर या देश की सरहदों की मोहताज नहीं होती और अक्सर वो आने वाली हक़ीक़त को ही अपने अल्फ़ाज़ के जरिये  बयान करती है.


तकरीबन सवा सात साल पहले चीन के जिस राष्ट्रपति शी जिनपिंग को साबरमती के किनारे झूले झुलाते हुए भारत-चीन की दोस्ती का एक नया अध्याय लिखने की कोशिश की जा रही थी, वह तो पूरा नही हो पाया. लेकिन  इतिहास में खूनी क्रान्ति के सबसे बड़े दागदार मुल्क ने चंद बरस बाद ही भारत को अपनी हरकतों के जरिये ये अहसास करा दिया कि वह दोस्ती में नहीं बल्कि दुनिया में अपनी बादशाहत कायम करने में यकीन रखता है और इसके लिए वो अपने पड़ोसी मुल्कों की जमीन हड़पने से जरा भी नहीं डरता है.


वहीं चीन अब संभावित युद्ध करने के लिए तैयार हो रहा है और उसने अपनी सेना में तीन लाख सैनिकों की भर्ती करने का ऐलान कर दिया है. उसकी ये तैयारी भारत के लिए इसलिये सबसे ज्यादा चिंता का विषय है कि वो हमारा सबसे नजदीकी पड़ोसी देश है. दिवंगत प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने लोकसभा में भाषण देते हुए एक बार कहा था कि "हम सब कुछ बदल सकते हैं लेकिन अपने पड़ोसी नहीं, इसलिये उसके साथ रिश्ते कैसे रखने हैं, ये भी हमें ही तय करना होगा."


वैसे इसे तो कोई भी झुठला नहीं सकता कि चीन का पुराना इतिहास तो हमारे साथ दुश्मनी वाला रहा ही है. लेकिन पिछले दो साल से लद्दाख से लेकर अरुणाचल प्रदेश तक में चल रही चीनी सेना की हरकतें भारत को ये यकीन दिलाने के लिए जरुरत से ज्यादा पर्याप्त होनी चाहिये कि चीन को अपना दुश्मन मानते हुए उससे निपटने की वैसी ही तैयारी हमारी तरफ से भी पुख्ता तौर पर की जाए.


हालांकि, चीन खुद को एक लोकतांत्रिक देश होने का दावा करता है लेकिन वहां मीडिया को वो आज़ादी नहीं मिली है, जो भारत में है. इसलिये वहां की सरकारी समाचार एजेंसी या सरकारी अखबार के हवाले से जो खबरें आती हैं, उस पर ही विश्वास करना दुनिया के सारे मुल्कों की मजबूरी भी होती है. सरकारी समाचार एजेंसी 'शिन्हुआ' की खबर के मुताबिक, शी जिनपिंग ने कहा है कि पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (पीएलए) के 2027 में होने वाले शताब्दी वर्ष के लिए निर्धारित लक्ष्यों को पूरा करने के वास्ते ठोस समर्थन देने के लिए नई प्रतिभाओं की जरूरत है.यानी चीन की सेना को अब ऐसे नए लड़ाकों की जरुरत है, जो अपने देश के लिए सब कुछ न्योछावर करने के लिए तैयार हों.


राष्ट्रपति जिनपिंग का ये बयान इशारा देता है कि उनके दिमाग मे कोई बड़ा युद्ध छेड़ने की खुराफात चल रही है. हालांकि ये कोई नहीं जानता कि वे अपने इस नापाक इरादे की शुरुआत किस देश से करेंगे. जिनपिंग ने कहा है कि 'लड़ने व जीतने की क्षमताओं को मजबूत करना सैन्य प्रतिभा का पहला बिंदु और आखिरी लक्ष्य होना चाहिए.' इस बयान के जो गहरे मायने हैं, वही भारत की चिंता को और भी ज्यादा बढ़ाने वाले हैं.


लेक़िन चीन की हक़ीक़त का एक पहलू ये भी है कि वहां आम नागरिकों को जबरन सेना में भर्ती किया जाता है. एक रिपोर्ट के मुताबिक वहां पर हर नागरिक के लिए दो साल की सैन्य सेवाएं देना अनिवार्य हैं. यानी चीन का कोई युवा चाहता हो या ना चाहता हो, उसे दो साल के लिए सेना में भर्ती होना ही पड़ता है. बताते हैं कि चीन की सेना में करीब 35 प्रतिशत ऐसे युवा होते हैं, जिन्हें मजबूर करके सैनिक बनाया जाता है.


चीनी राष्ट्रपति के इस ऐलान को देखते हुए अगर दोनों देशों के रक्षा-बजट की तुलना करें, तो भारत के रक्षा बजट के मुकाबले चीन का बजट तीन गुणा से भी ज्यादा है. चीन का सालाना रक्षा बजट 209 अरब डॉलर का है. जबकि साल 2021 में हमारे देश की वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने 4.78 लाख करोड़ के रक्षा बजट की घोषणा की है. पिछली बार यह 4.71 लाख करोड़ रुपए का था. यानी भारत ने अपने रक्षा बजट में महज़ सात लाख करोड़ रुपये का ही इज़ाफ़ा किया. जबकि चीन पिछले छह साल से लगातार अपना रक्षा बजट बढ़ाता आ रहा है और उसने साल 2020 के मुकाबले इस साल अपने इस बजट में 6.8 फीसदी की बढ़ोतरी की थी, जो बेहद अहम व चिंताजनक है.


यही नहीं, चीन ने अपनी सशस्त्र सेनाओं में कुशल युवाओं को आकर्षित करने के लिए उनके वेतन में 40 फीसदी बढ़ोतरी की भी घोषणा की है. चीन की कम्युनिस्ट पार्टी ने पिछले साल एक सम्मेलन में ये ऐलान भी किया था कि वो 2027 तक अमेरिका के बराबर ही अपनी सेना को पूरी तरह से आधुनिक बना लेगा. अमेरिका के बाद रक्षा क्षेत्र पर चीन सबसे जयादा खर्च करने वाला देश है. हालांकि वो अमेरिका से अब भी बहुत पीछे है क्योंकि साल 2021 के लिए अमेरिका ने अपना रक्षा बजट 740.5 अरब डॉलर रखा है. यानी चीन के मुकाबले उसका बजट तीन गुणा से भी अधिक है.


अब बड़ा सवाल ये है कि भारत की जमीन को हड़पने के लिए अपनी गिद्ध निगाह गड़ाये इस पड़ोसी से मुकाबला करने के लिए आखिर हम अपनी सेनाओं को कितना ताकतवर बना रहे हैं?



नोट- उपरोक्त दिए गए विचार व आंकड़े लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. ये जरूरी नहीं कि एबीपी न्यूज़ ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.