महाराष्ट्र की सियासत में इन दिनों तलवारें चल रहीं हैं. इन तलवारों से कोई किसी का गला तो नहीं काट रहा लेकिन इन्होंने पुलिस का काम बढ़ा दिया है. तलवारें निकालने वाले राजनेताओं के खिलाफ आपराधिक मामले दर्ज हो रहे हैं. तलवारें सियासी मंचों पर हमेशा लहराई जातीं रहीं हैं, लेकिन महाराष्ट्र की राजनीति में ये अलग भूमिका निभा रही हैं.


बीते रविवार को एमएनएस प्रमुख राज ठाकरे ने मुंबई से सटे ठाणे में एक रैली की. इस रैली के दौरान उन्हें एक तलवार भेंट की गयी, जिसे उन्होंने मंच पर से ऐसे लहराया जैसे कोई सेनापति अपनी फौज से जंग के लिये तैयर होने को कह रहा हो. तलवार लहरा कर ठाकरे ने भीड़ की तालियां तो बटोर लीं, लेकिन कुछ देर बाद ही ठाणे पुलिस ने उनके और ठाणे में उनकी पार्टी के पदाधिकारियों के खिलाफ आर्मस एक्ट के तहत मामला दर्ज कर लिया. याद दिला दें कि आर्म्स एक्ट वही कानून है जिसके तहत दाऊद इब्राहिम गिरोह से रिवॉल्वर लेने के आरोप में टाडा अदालत ने फिल्मस्टार संजय दत्त को 6 साल जेल की सजा सुनायी थी.


दरअसल राज ठाकरे के खिलाफ दर्ज किये गये मामले को सियासी खुन्नस के तौर पर देखा जा रहा है. जो राज ठाकरे साल 2019 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी और पीएम मोदी पर निशाना साध रहे थे, वे अब बीजेपी के साथ नजर आ रहे हैं. उनके निशाने पर अब एनसीपी और शिव सेना है.


राज ठाकरे बीजेपी की ओर से शुरू किये गये इस कथानक को बल दे रहे हैं कि शिवसेना अब कट्टर हिंदुत्ववादी पार्टी नहीं रही और उसने फर्जी सेकुलरवादियों के साथ हाथ मिला लिया है. हिंदुत्व को लेकर शिवसेना के नरम पड़ने के बाद अब राज ठाकरे उस जगह को भरने की कोशिश कर रहे हैं. साल 2020 में ही उन्होंने मराठी मुद्दे से आगे बढ़कर हिंदुत्व को अपना लिया था. अब अपनी कट्टर हिंदुत्ववादी छवि को और ज्यादा उभारने के लिये राज ठाकरे ने मस्जिदों पर लाऊडस्पीकर के विरोध का मुद्दा लिया है. उन्होंने ठाकरे सरकार को अल्टीमेटम दे डाला कि अगर 3 मई तक मस्जिदों से लाऊडस्पीकर नहीं हटाये गये तो उनके कार्यकर्ता मस्जिदों के सामने लाऊडस्पीकर पर हनुमान चालीसा का पाठ करेंगे. राज ठाकरे के इस ऐलान ने उद्धव ठाकरे की नींद उड़ा दी है. इससे राज्य में सांप्रदायिक तनाव पैदा हो सकता है.


ये समझना कोई रॉकेट साइंस नहीं कि ये सबकुछ जल्द होने जा रहे बीएमसी चुनाव की तैयारी का हिस्सा है. इस चुनाव के जरिये जहां एक ओर से राज ठाकरे जहां अपनी खत्म सी हो चुकी एमएनएस में नयी जान फूंकने की उम्मीद देख रहे हैं तो वहीं उन्हें बीजेपी से भी सीधा या परोक्ष साथ मिल जायेगा. चूंकि राज ठाकरे पर प्रांतियों के खिलाफ ज़हर उगलते थे इसलिये यूपी, बिहार में वोट टूटने के डर से बीजेपी राज ठाकरे से दूर ही रहती थी. लेकिन अब राज ठाकरे उत्तर भारतियों के खिलाफ नहीं बोलते. इसलिये बीजेपी की एमएनएस से एलर्जी ख़त्म हो गयी है. बीजेपी को भी शिवसेना को टक्कर देने की खातिर और उसके वोट काटने के लिये एक स्थानीय पार्टी की जरूरत थी, जो एमएनएस की शक्ल में मिल गयी. लेकिन मंच पर सिर्फ तलवार लहरा देने से आपराधिक मामला दर्ज कर लेना कितना जायजा है सियासी हलको में अब इसपर बहस छिड़ी है.


राजनीतिक मंचों पर इसके पहले भी तलवारें लहरायीं गयीं है. अब से दशक भर पहले दिवंगत शिव सेना प्रमुख बाल ठाकरे ने जब अपने पोते आदित्य ठाकरे को शिवाजी पार्क में एक सभा के दौरान राजनीति में लांच किया तब आदित्य ने भी तो तलवार लहरायी थी. खुद बाल ठाकरे कई राजनीतिक सभाओं के दौरान भेंट में मिलने वाली तलवारें लहरा चुके हैं. ठाकरे के अलावा एनसीपी प्रमुख शरद पवार को ही लें. परभणी और नवी मुंबई के एक कार्यक्रम के दौरान वे तलवार लहराते देखे गये. एआईएमएआईएम के नेता वारिस पठान की भी तलवार के साथ तस्वीरें आ चुकीं हैं. इसी साल फरवरी में बीजेपी के नेता मोहित कंबोज ने एक कार्यक्रम में तलवार लहरायी थी. उनके खिलाफ भी आर्म्स एक्ट के तहत मामला दर्ज हो गया. महाराष्ट्र में समाजवादी पार्टी के प्रमुख अबू आजमी भी तलवार लहरा चुके हैं. पुलिस ने आजमी के खिलाफ आर्म्स एक्ट के तहत मामला दर्ज कर लिया और तलवार जब्त कर ली.


वैसे जो लोग ये आरोप लगा रहे हैं कि ठाकरे सरकार तलवार दिखाने पर विपक्षी पार्टियों के नेताओं के खिलाफ मामला दर्ज कर रही है. उन्हें जवाब देने के लिये ठाकरे सरकार के पास एक मिसाल है. महाराष्ट्र सरकार में कांग्रेस से दो मंत्री वर्षा गायकवाड़ और असलम शेख भी हाल ही में एक कार्यक्रम के दौरान तलवार लहराते देखे गये. सरकार में रहते हुए भी दोनों के खिलाफ आर्म्स एक्ट के तहत मामला दर्ज कर लिया गया. तलवार हमेशा से ताकत का और अधिकार का प्रतीक रहीं हैं. दशकों से सियासी मंचों पर इनका प्रदर्शन होते आया है लेकिन अब राजनेताओं के लिये ऐसा करना मुसीबत को बुलावा देना हो गया है. पुरानी कहावत है जिसकी लाठी उसकी भैंस. अब वही कहावत एक और लाईन जुड़ती है – जिसकी तलवार उस पर केस.


(नोट- उपरोक्त दिए गए विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. ये जरूरी नहीं कि एबीपी न्यूज ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.)