उत्तर प्रदेश (Uttar Pradesh) के चुनावी (Election) मौसम की फिज़ा लगातार करवट बदल रही है और आगे क्या-क्या नया रंग दिखाने वाली है, इसका अंदाजा लगाना फिलहाल मुश्किल है. दो दिन में योगी सरकार (Yogi Government ) के दो मंत्रियों के इस्तीफे को बीजेपी (BJP) के नेता भले ही मामूली घटना बताने की कोशिश करते रहें लेकिन सही मायने में उसके लिए ये तगड़ा झटका है जिसकी उम्मीद पार्टी के बड़े नेताओं को भी नहीं थी.


स्वामी प्रसाद मौर्य (Swami Prasad Maurya) के बाद पिछड़ा वर्ग के एक और बड़ा चेहरा समझे जाने वाले दारा सिंह चौहान (dara singh chauhan) ने मंत्रीपद से इस्तीफा देकर बीजेपी का खेल बिगाड़ने को लेकर लगाई गई आग में घी डालने का काम कर दिया है.हालांकि इसमें आखिरी आहुति किसकी होती है,ये तो 10 मार्च को ही पता चलेगा लेकिन फ़िलहाल सपा प्रमुख अखिलेश यादव की बांछें जरुर खिल गई हैं.क्योंकि इस्तीफा देने वाले नेता उनकी सायकिल की सवारी करने वाले हैं.


हालांकि, दारासिंह भी मौर्य की तरह ही खुद को राजनीति के मौसम विज्ञानी होने का दावा करते रहे हैं और वैसे उन्हें इसका अनुभव भी है.मायावती की बीएसपी से अपना सियासी सफर शुरु करने वाले चौहान यूपी विधान परिषद का सदस्य बनने के बाद हाथी की सवारी से ही राज्यसभा भी पहुंचे थे. बाद में,जब मायावती के सितारे गर्दिश में आने शुरु हुए,तो उन्होंने बहनजी का साथ छोड़ने में जरा भी देर नहीं लगाई.अखिलेश की सायकल पर सवार होकर वे घोसी सीट से सपा के टिकट पर ही लोकसभा भी पहुंच गए.


लेकिन, 2014 के लोकसभा चुनाव की मोदी लहर में जब वे चुनाव हार गए तो उन्हें जल्द ही ये अहसास हो गया कि सपा में अब कोई भविष्य नहीं है. लिहाज़ा, साल 2017 के विधानसभा चुनाव में उन्होंने बीजेपी का दामन तो थामा ही लेकिन सियासी सौदेबाजी करके मंत्रीपद भी पा लिया.


चूंकि, अब उन्हें अंदाज हो गया था कि इस बार पार्टी उनका टिकट काट रही है, लिहाज़ा वे इस्तीफा देकर शहीद बनने की मुद्रा में आ गए. जबकि मकसद फिर 'घर वापसी' का है क्योंकि मौर्य की तरह उन्हें भी ये भ्रम है कि अगली सरकार अखिलेश की बननी है, जिसमें उनका मंत्रीपद पक्का रहेगा.


वैसे पिछले महीने भर से यूपी के नेताओं को सपने में कृष्ण भगवान बहुत दिखाई दे रहे हैं और इसमें भी अखिलेश अव्वल नंबर पर हैं, जो दावा करते हैं कि उन्हें भगवान ने संदेश दिया है कि यूपी में अगली सरकार यादवों की ही होगी. दारासिंह मऊ ज़िले की जिस सीट से विधायक हैं, उसका नाम मधुबन है. इतिहास की मिथकों के मुताबिक कृष्ण भक्ति में डूबी राधा मधुबन में ही नाची थी और वही उनकी रासलीला का सबसे बड़ा केंद्र था. लिहाज़ा दारासिंह का सपा में जाना अखिलेश यादव की चुनाव लीला को कितना रोचक बनाता है, ये देखने वाली बात होगी.


लेकिन, इस बीच आज कानून ने अपना काम करते हुए यूपी के सियासी मौसम को गरमा दिया है. कल स्वामी प्रसाद मौर्य ने मंत्रीपद से इस्तीफा दिया था तो आज उनके खिलाफ गिरफ्तारी वारंट जारी हो गया. उन्हें पडरौना-एमपीएमलए कोर्ट ने 24 जनवरी को पेश होने के आदेश दिए गए हैं. हालांकि, मौर्य के खिलाफ धार्मिक भड़काने का ये मामला 7 साल पुराना साल 2014 का है, जब वो बहुजन समाज पार्टी में हुआ करते थे. तब उन्होंने हिन्दू-देवी देवताओं के खिलाफ आपत्तिजनक टिप्पणी की थी और अपने समर्थकों से पूजा नहीं करने के लिए कहा था. तभी से उनके खिलाफ ये मामला चल रहा है.


हालांकि, ये वारंट नया नहीं है, ये पहले से जारी था. उन्होंने साल 2016 से इस पर स्टे ले रखा था. 12 जनवरी को उन्हें अदालत में पेश होना था, लेकिन जब वो हाजिर नहीं हुए तो ये वॉरंट पूर्ववत जारी कर दिया गया. इस मामले पर अगली सुनवाई 24 जनवरी को होनी है. चूंकि इस्तीफा देने के अगले दिन ही ये वारंट जारी हुआ है, इसलिये इसकी टाइमिंग को लेकर सियासत तो होनी ही है. ये सही है कि कानून अपने हिसाब से काम करता है लेकिन सवाल उठता है कि ये वारंट दो दिन पहले भी तो जारी हो सकता था?


बहरहाल, स्वामी प्रसाद मौर्य ने बीजेपी नेताओं की अपील को ठुकराते हुए समाजवादी पार्टी में शामिल होने का एलान कर दिया है. उन्होंने कहा कि मैं 14 जनवरी को समाजवादी पार्टी में शामिल होऊंगा. मेरे पास किसी छोटे या बड़े राजनेता का फोन नहीं आया है. अगर वे समय पर सतर्क होते और सार्वजनिक मुद्दों पर काम करते, तो बीजेपी को इसका सामना नहीं करना पड़ता.



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