कहते हैं कि इश्क़ और मुश्क किसी से छुपाए नहीं छुपते और जब मसला सियासत से जुड़ा हो, तो इनका असर भी और ज्यादा गहरा होता है. उत्तर प्रदेश की चुनावी राजनीति में पहले मुश्क यानी चंदन के इत्र ने एंट्री मारी और अब पुराने इश्क़ ने सियासी गणित गड़बड़ाना शुरु कर दिया है. सियासी इतिहास में शायद ऐसा पहली बार हुआ है, जब पिता का इश्क़ एक नेता बेटे के लिए सत्ता की सीढ़ी चढ़ने के मंसूबों पर पानी फेरने का बड़ा खतरा दिखने लगे.


हालांकि, सपा के संस्थापक मुलायम सिंह यादव का ये पुराना इश्क़ न तो खुद उनके लिए सत्ता पाने के रास्ते में कभी आड़े आया और न ही उनके बेटे अखिलेश यादव के लिए ही. लेकिन इस बार मामला थोड़ा पेचीदा इसलिये बन गया है कि अखिलेश की भाभी अपर्णा यादव ने परिवार से बगावत करके बीजेपी का दामन थाम लिया है. हालांकि वे अखिलेश की सगी भाभी नहीं हैं क्योंकि वे मुलायम की दूसरी पत्नी साधना गुप्ता के बेटे प्रतीक गुप्ता की पत्नी हैं लेकिन उस सच को तो स्वयं मुलायम भी नहीं झुठलाते कि अपर्णा उनकी सगी बहू हैं.


पुरानी कहावत है कि बीज बोता कोई और है और उसके फल कोई और खाता है. लेकिन राजनीति में इसका एक और मतलब निकलता है कि करता कोई है और भरता कोई और है. बताते हैं कि मुलायम जब अपनी जवानी बीता कर अधेड़ उम्र की दहलीज़ की तरफ बढ़ चुके थे, तब उन्हें एक शादीशुदा नर्स से इश्क हो गया, जिसका नाम है साधना गुप्ता. तब अखिलेश की उम्र महज़ नौ साल थी और इस उम्र में बच्चे को राजनीति या इश्क की समझ नहीं होती.


लेकिन खेलने की उस उम्र में अखिलेश भी भला ये कहां जानते थे कि आगे चलकर ठीक 40 साल बाद पिता का ये इश्क़ उनकी सियासत में ऐसा कांटा चुभोने लगेगा, जिसके दर्द का अहसास वे चाहकर भी किसी को बता नहीं पायेंगे. इसीलिये कल प्रेस कॉन्फ्रेंस में जब अखिलेश यादव से पूछा गया कि अपर्णा के बीजेपी में चले जाने पर वे क्या कहेंगे, तो उनसे कोई जवाब देते नहीं बन रहा था. वह सिर्फ इतना ही कह पाए- उनको शुभकामनाएं.


यूपी की सियासत के इस सबसे चर्चित इश्क़ की कहानी की शुरुआत हुई थी 40 साल पहले, यानी 1982 में. तब देश में कांग्रेस टूट रही थी और छोटे दलों का उदय होने लगा था. यूपी में  में पिछड़ा वर्ग, खासकर यादवों का दबदबा बढ़ रहा था. शायद इसलिए मुलायम के रुप में उन्हें अपना नेता मिल गया था.


बताते हैं कि तब यूपी की जनता के अलावा पार्टी के अन्य नेताओं के साथ ही नई उम्र की लड़कियां तक उस हंसमुख चेहरे पर फिदा थीं, जिसका नाम है- मुलायम सिंह यादव. तब उनकी मूंछें काली थीं और उम्र थी 43 साल. लाइफस्टाइल मैगजीन की एक रिसर्च की मानें, तो इंडिया के मर्द 35 से 45 साल में सबसे ज्यादा आकर्षक दिखते हैं.


तब समाजवादी पार्टी नहीं बनी थी और मुलायम राष्ट्रीय लोकदल में थे. यूपी के औरैया जिले के बिधूना के रहने वाले कमलापति की 23 साल की बेटी नर्सिंग की ट्रेनिंग कर रही थी लेकिन वो राजनीति में भी कुछ करना चाहती थी.आकर्षक चेहरे वाली वह लड़की कुछ राजनीतिक कार्यक्रमों में आई. बताते हैं कि उसी दरमियान मुलायम की आंखें उनसे टकराईं. उसी लड़की का नाम है- साधना गुप्ता. तब क्या हुआ और क्या नहीं, वो सारा वाकया सिर्फ एक ही शख्स जानता था, जिनका नाम था- अमर सिंह जो कि अब इस दुनिया में नहीं रहे.


मुलायम की इस प्रेम कहानी के कुछ पन्ने एक लेखिका सुनीता एरोन ने भी खोले थे. इन्होंने अखिलेश यादव की बायोग्राफी 'बदलाव की लहर' लिखी थी. इसमें कुछ पन्नों पर मुलायम की लव स्टोरी का जिक्र है. सुनीता एरोन के मुताबिक, "शुरुआत में साधना और मुलायम की आम मुलाकातें हुईं. मुलायम की मां की वजह से दोनों ज्यादा करीब आए. मुलायम की मां मूर्ती देवी बीमार रहती थीं. साधना ने लखनऊ के एक नर्सिंग होम और बाद में सैफई मेडिकल कॉलेज में इलाज के दौरान मूर्ति देवी की देखभाल की थी."


उसी किताब में ये खुलासा किया गया है कि मुलायम आखिर साधना से किस बात पर सबसे ज्यादा इम्प्रेस हुए थे कि इश्क़ रिश्ते में बदल गया. उसकी वजह थी एक इंजेक्शन. सुनीता एरोन लिखती हैं, "मेडिकल कॉलेज में एक नर्स मूर्ति देवी को गलत इंजेक्शन लगाने जा रही थी. उस समय साधना वहां मौजूद थीं और उन्होंने नर्स को ऐसा करने से रोक दिया. साधना की वजह से ही मूर्ति देवी की जिंदगी बची थी. मुलायम इसी बात से इम्प्रेस हुए और दोनों की रिलेशनशिप शुरू हो गई. तब अखिलेश यादव स्कूल में स्टूडेंट थे."


दरअसल, साधना खुद नर्स रही हैं और उन्होंने शुरुआती दिनों में कुछ दिनों तक नर्सिंग होम में काम भी किया है, इसलिए उन्हें इंजेक्‍शन की समझ थी कि उसके क्या साइड इफेक्ट्स हो सकते हैं. लेकिन हैरानी की बात है कि तकरीबन 6 साल तक अमर सिंह ने मुलायम की इस लव-स्टोरी को सबसे छिपाए रखी. साल 1982 से 1988 तक अमर सिंह इकलौते ऐसे शख्स थे जो जानते थे कि मुलायम को प्यार हो गया है. उन्होंने किसी से कहा नहीं.


कहते भी कैसे- मुलायम के घर में पत्नी मालती देवी और बेटे अखिलेश थे. हालांकि, नेताजी ने सत्ता में आने के बाद अमर सिंह को उन्हीं सरकारों में अहम पद देकर उनके इस अहसान का बदला भी चुकाया. साल 1988, तीन चीजें एक साथ हुईं. मुलायम मुख्यमंत्री बनने की एकदम चौखट पर खड़े थे. दूसरा,साधना अपने पति चंद्र प्रकाश गुप्ता से अलग रहने लगीं, तब उनकी गोद में एक बच्चा था और तीसरा ये कि मुलायम ने अखिलेश को साधना से मिला दिया. जब एक बार अखिलेश को साधना ने थप्पड़ मार दिया तो मुलायम ने उन्हें पढ़ने के लिए दूर भेज दिया.


‘कारवां’ मैगजीन में नेहा दीक्षित ने इस कहानी पर लिखा था. उन्होंने बिना नाम छापे परिवार के खास लोगों के हवाले से लिखा, ‘साल 1988 में पहली बार मुलायम ने ही, अखिलेश को साधना गुप्ता से मिलवाया. तब वो 15 साल के थे. उसी वक्त अखिलेश को साधना अच्छी नहीं लगीं. एक बार तो साधना ने उन्हें थप्पड़ मार दिया. कुछ समय बाद उन्हें पढ़ाई के लिए पहले इटावा, फिर धौलपुर राजस्‍थान भेज दिया.
 
इस कहानी ने दिलचस्प मोड़ तब लिया जब इसमें कांग्रेस से नजदीकी रखने वाले विश्वनाथ चतुर्वेदी की एंट्री हुई. उन्होंने मुलायम की जिंदगी के दबे हुए पन्नों को उजागर करवा डाला. इन्होंने मुलायम के खिलाफ 2 जुलाई 2005 को सुप्रीम कोर्ट में एक हलफनामा दायर किया जिसमें पूछा गया था कि 1979 में 79 हजार रुपए की संपत्ति वाला समाजवादी करोड़ों का मालिक आखिर कैसे बन गया? सुप्रीम कोर्ट ने कहा, CBI, मुलायम की जांच करे.


जांच शुरू हुई और 2007 तक के सभी पुराने पन्ने खंगाले गए, नई रिपोर्ट लिखी गई. उनमें ये सब लिखा गया मुलायम की एक और बीवी और एक और बच्चा भी है. आज से नहीं बल्कि 1994 से. 1994 में प्रतीक गुप्ता ने स्कूल के फॉर्म में अपने परमानेंट रेसिडेंस में मुलायम सिंह का ऑफिशियल एड्रेस लिखा था. मां का नाम साधना गुप्ता और पिता का एमएस यादव लिखा था. साल 2000 में प्रतीक के गार्जियन के तौर पर मुलायम का नाम दर्ज हुआ था. जिंदगी का हर सफा उजागर हो जाने के बाद आखिरकार 23 मई 2003 को मुलायम ने साधना को अपनी पत्नी का दर्जा देना पड़ा.


हालांकि अगर इस प्रेम कहानी की कड़ियों पर गौर करें, तो असल में मुलायम की जिंदगी में साधना 1988 में ही आईं और अगले साल ही 1989 में मुलायम UP के  सीएम बन गए. कहते हैं कि तभी से वे साधना को अपने लिए भाग्यशाली मानने लगे. हालांकि दावा तो ये भी किया जाता था कि तब तक पूरे पर‌िवार को बात पता चल गया था लेकिन नेताजी के आगे बोलने की हिम्मत कोई नहीं करता था. अब जब सब सामने आ ही रहा था तब उन्होंने हर सच को कबूलने का रास्ता अपनाया. साल 2007 में मुलायम ने अपने खिलाफ चल रहे आय से अधिक संपत्ति वाले केस में सुप्रीम कोर्ट में एक शपथपत्र दिया जिसमें लिखा था- मैं स्वीकार करता हूं कि साधना गुप्ता मेरी पत्नी और प्रतीक मेरा बेटा है.


लेकिन मुलायम के कुनबे में ये डर पैदा हो गया कि अब मुलायम का एक और उत्तराधिकारी पैदा हो गया. ज़ाहिर है कि ये डर अखिलेश और उनकी मां को ही सबसे ज्यादा था. इसके बाद तो अखिलेश अपने पिता से काफी नाराज रहने लगे. बताते हैं बात काफी आगे तक बढ़ चुकी थी. लेकिन मुलायम ने हौसला नहीं हारा और अपने दम पर ही बीएसपी, कांग्रेस व बीजेपी से लड़ते हुए 2012 में  विधानसभा का चुनाव जीता लेकिन अपनी सियासी  जिंदगी का सबसे बड़ा फैसला लेते हुए गद्दी दे दी.


अखिलेश यादव को ये कहते हुए गद्दी दी कि नाराजगी दूर करने की इससे बड़ी कीमत और क्या दूंगा, “ले बेटा गद्दी संभाल.” कल जब उसी मुलायम-साधना की बहू अपर्णा यादव ने BJP का झंडा थामा तो पत्रकारों ने इस बारे में जो पूछा,उसका जवाब उनके पास नहीं था.


कहते हैं कि पुराना रोग सालों बाद फिर से ताजा होकर दर्द देने लगता है. हालांकि, वो रोग तो पिता का था लेकिन 40 साल बाद उसके दर्द को झेलने का अहसास इस चुनाव में बेटे को भी उठाना पड़े, तो किसी को हैरानी नहीं होना चाहिए.



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