दर्द की दो दास्तां: कलेजे पर पत्थर रखकर पढ़िए
ABP News Bureau | 13 Jan 2017 05:52 PM (IST)
विषम परिस्थितियों से जूझ रहा सैनिक गद्दियों पर बैठे लोगों से सवाल पूछ रहा है. वह सवाल अपने हिस्से का पूछ रहा है. जब वह सैनिक घर था तो बेरोजगारी से त्रस्त था, हालातों से पस्त था. आज भी उसकी परिस्थितियां उसके विपरीत ही हैं. ठहरिये, वह प्रकृति की परिस्थितियों की बात नहीं कर रहा है, क्योंकि उसे पता है कि आप सवाल पूछने लगेंगे. वह जोश में है लेकिन व्यवस्था के कोढ़ से उसे कमजोर बना दिया, जो सीमा पर दुश्मन से लड़ रहा है लेकिन अंदर के रिसते घाव पर मरहम लगाने की फरियाद किससे करे? जब वह बेरोजगार था तब भी सामने जरूरतें मुंह बाएं खड़ी थीं, आज सेना में रहते हुए भी उसके सामने जरूरतें मुंह बाएं खड़ी हैं. अंतर सिर्फ दोनों जगहों पर जरूरतों का है. अब आप सोच रहे होंगे कि यहां क्या कहानी चल रही है भाई. तो पहले यह फरियाद पढ़िए.. ‘’ मैं यज्ञ प्रताप सिंह इस समय 42 ब्रिगेड देहरादून में तैनात हूं. मेरी सर्विस 15 साल है. मैं 15 जून 2016 को एक एप्लिकेशन लिखा था, जो राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, गृहमंत्री और रक्षामंत्री और उच्चतम न्यायालय के पास है. मैंने भारतीय सेना में अधिकारियों द्वारा जवानों के शोषण करने पर एक प्रार्थना पत्र लिखा था. जिसके बाद पीएमओ से हमारे ऑफिस एक लेटर आया था, जिसके बाद ब्रिगेडियर में हड़कंप मच गया और अधिकापरियों ने हमारे ऊपर कार्रवाई शुरू कर दी, जबकि मैंने उसमें ऐसा कुछ नहीं लिखा था जो भारतीय सेना के खिलाफ हो.’’ ऐसा मैंने क्या गलत कर दिया कि मेरे खिलाफ चार्जशीट या कोर्टमार्शल के लिए कमेटी बैठा दी गई.’’ जवानों की शिकायत पर सेनाध्यक्ष बिपिन रावत ने जवानों से कहा है कि सोशल मीडिया पर शिकायत जारी करने की जगह अपनी परेशानी सीधे मुझ तक पहुंचाएं. अब पढ़ सुन चुके हों तो एक दूसरे जवान का दर्द जो कि आपने जरूर देखा होगा एक बार फिर देखिए इन्होंने फरियाद की तो प्लंबर की ड्यूटी लगा दी गई. बेहद छोटा और सरल सवाल है सजा फरियादी को ही मिलेगी या उन अधिकारियों को भी जो इनके लिए जिम्मेदार हैं. क्या जांच के जरिए इनके फरियाद का दम तोड़ दिया जाएगा? वैसे फरियादी पर हो रही कार्रवाई तो बड़ा भयावह संदेश दे रहे हैं. व्यवस्था क्यों हर वक्त कमजोर को सहारा देने का नारा देती है, फिर उन्हें ही बेसहारा करती है.