यूपी सरकार नया अध्यादेश लेकर आई है जिसका नाम दिया गया है गैर कानूनी धर्मान्तरण निरोधक अध्यादेश. इसमें लव जिहाद का जिक्र तो नहीं है लेकिन सभी टीवी चैनल लव जिहाद के खिलाफ कानून बता रहे हैं. अखबारों में भी ऐसा ही कुछ लिखा जा रहा है.


सवाल उठता है कि जब लव जिहाद की इतनी चिंता है तो नाम से परहेज क्यों. जब बीजेपी लव जिहाद को लेकर इतनी चिंतित है तो बाकी के चार राज्य भी एक साथ कानून ले कर आते. मध्यप्रदेश, असम, कर्नाटक और हरियाणा की हम बात कर रहे हैं. सवाल उठता है कि विधानसभा का सत्र बुलाकर क्यों कानून नहीं बनाया गया. इससे बीजेपी को फायदा ही होना था. विधानसभा में बहस होती विपक्षी दलों के रुख का पता चलता.


सियासी फायदा उठाने की कोशिश कर सकती थी बीजेपी


मायावती क्या सोचती है, अखिलेश यादव क्या सोचते हैं, यूपी में सक्रिय हो रही प्रियंका गांधी की कांग्रेस क्या सोचती है. इनके रुख का सियासी फायदा उठाने की कोशिश कर सकती थी बीजेपी. योगी सरकार इतनी बड़ी चूक कैसे कर गये. कहीं उन्हें इस बात का डर तो नहीं था कि इलाहाबाद हाई कोर्ट के बदले हुए फैसले के बाद कहीं कोई अदालत न पहुंच जाए और अदालत से आग्रह करें कि बदले हुए फैसले के मददेनजर अदालत यूपी सरकार को लव जिहाद पर कानून बनाने से रोके.


दरअसल अदालत ने अपने उस फैसले को पलट दिया था जिसमें उसने कहा था कि अगर किसी का दूसरे धर्म में यकीन नहीं है लेकिन सिर्फ शादी के लिए धर्म बदलता है तो यह वैध नहीं है. लेकिन दो दिन बाद की कोर्ट ने कहा कि वो अपने फैसले को वापस लेते हैं क्योंकि यह किसी अच्छे कानून का आधार नहीं बन रहा है. कोर्ट ने कहा कि दो बालिग लोग अपनी मर्जी से क्या करते हैं, किसे जीवनसाथी के रुप में चुनते हैं यह दोनों के बीच का मामला है. उनकी व्यक्तिगत आजादी से जुड़ा हुआ है.


कई राज्यों में 1967 से हिंदु मैरिज एक्ट में इसका प्रावधान है


जाहिर है कि पहले वाले फैसले के आधार पर कानून लाने की तैयारी कर रही योगी सरकार को बदले फैसले के बाद कुछ नये सिरे से सोचना पड़ता. सोचना था नहीं हिंदुत्व की राजनीति चमकानी थी लिहाजा आनन फानन में अध्यादेश ला दिया. संविधान भी कहता है कि अध्यादेश खास मौकों पर ही लाया जाना चाहिए. इसका पालन नहीं हुआ है. लेकिन चलो अच्छा है नया कानून आ गया. इस बात को तो सभी स्वीकार करेंगे कि जबरन शादी नहीं होनी चाहिए. डरा कर धमका कर फुसला कर पहचान छुपाकर शादी करना धोखा देना ही है. शादी के बाद भी डरा कर धमका कर फुसला कर जबरदस्ती करके धर्म परिवर्तन करवाना भी गलत बात है.


दंडनीय अपराध है और इस पर कानून जरुर बनना चाहिए. लेकिन यह बात तो हमारे यहां 1967 में ही सोच ली गयी थी और तब बहुत से राज्यों ने ऐसा कानून बनाया था. हिंदु मैरिज एक्ट में इसका प्रावधान है. कुछ विधि जानकारों के अनुसार सीआरपीसी के सैक्शन 493 के तहत भी ऐसा ही कुछ प्रावधान है. अगर सच में ऐसा ही है तो फिर नये कानून की जरुरत क्यों पड़ी. पुराने कानून में कुछ खामियां थी तो उसपर काम किया जा सकता था. कुछ का कहना है कि अगर पांच राज्य कानून बना भी देंगे तो क्या लव जिहाद कथित रुप से रुक जाएगा. अगर यूपी का जोड़ा दिल्ली या राजस्थान जाकर शादी कर लेता है तो क्या होगा. इसलिए कहा जा रहा है कि केन्द्र के स्तर पर एक माडल कानून लाया जाता तो ज्यादा अच्छा रहता.


नया कानून बनाकर राजनीति को जरुर गरमा दिया है


खैर, अब अध्यादेश आ गया है और इसे अदालत में भी चुनोती दी जाएगी. देखना होगा कि अगर यह मामला इलाहाबाद हाई कोर्ट की उसी डबल बेंच में जाता है जिसने धर्मान्तरण को लेकर बड़ा फैसला दिया है तो अदालत का रुख क्या रहता है. इस कानून के बाद चार अन्य बीजेपी राज्य कितनी जल्दी अपने यहां कानून बनाते हैं और बंगाल के चुनाव में इसका किस तरह से फायदा उठाने की कोशिश बीजेपी करती है. यह भी देखने की बात है. कुल मिलाकर योगी सरकार ने नया कानून बनाकर राजनीति को जरुर गरमा दिया है.


(नोट- उपरोक्त दिए गए विचार व आंकड़े लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. ये जरूरी नहीं कि एबीपी न्यूज ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है)