इजरायल और हमास के बीच युद्ध को एक सप्ताह होने जा रहा है. इजरायल लगातार गाजा पट्टी पर हमले कर रहा है और हमास के भी हमले जारी हैं. इजरायल ने कहा है कि जब तक एक भी आतंकी जिंदा है, हमले बंद नहीं होंगे. इसी बीच उसने गाजा को जानेवाली सप्लाई भी रोक दी है और फिलीस्तीनियों को गाजा पट्टी से दक्षिण जाने को कह दिया है, ताकि नुकसान कम हो सके. मिस्र ने हालांकि अपने बोर्डर को बंद कर दिया है, लेकिन ब्राजील ने मांग की है कि मानवीय कॉरीडोर खोला जाए. इसी बीच अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन ने इसे होलोकॉस्ट के बाद इजरायल पर सबसे बड़ा हमला करार दिया है, अमेरिकी विदेश मंत्री ब्लिंकन जॉर्डन में फिलीस्तीनी राष्ट्रपति से मुलाकात करेंगे. 


इजरायल और हमास के बीच का युद्ध फैल सकता है


ये इजरायल पर अब तक का सबसे बड़ा आतंकी हमला है. यहां तक कि अमेरिकी प्रेसिडेंट जो बाइडेन ने भी बोला कि यह होलोकॉस्ट के बाद सबसे बड़ा हमला है, इजरायलियों पर. तो, इसकी जितनी भर्त्सना की जाए, उतनी कम है और शायद यही वजह है कि आज एक हफ्ते बाद भी इजरायल का हमला लगातार जारी है. हमास ने एक सोची-समझी रणनीति के तहत हमला किया और इजरायल के मासूम नागरिकों, बच्चों, महिलाओं इत्यादि को न केवल मारा, बल्कि उनको बंदी बनाकर भी ले गया, ताकि वह बाद में मोलभाव कर सके. इजरायल एक बहुत ताकतवर देश है और पश्चिम एशिया में एकमात्र नॉन-मुस्लिम देश है. यह ठीक है कि मोसाद को इस हमले की भनक नहीं लगने पर सवाल हो रहे हैं, लेकिन यह तय है कि ये बहुत बड़ा आतंकी हमला है.



इजरायल का जिस तरह का इतिहास रहा है, वह जब तक हमास को लेकर अपने रणनीतिक लक्ष्य को पूरा नहीं कर लेता, इस आतंकी हमले की जड़ तक नहीं पहुंच जाता, वह रुकेगा नहीं. इसके अलावा एक बात और है कि जिस तरह पूरी दुनिया इस क्षेत्र में व्यापार के लिए, तेल के लिए निर्भर है, तो आनेवाले दिनों में उसका वैश्विक अर्थनीति और राजनीति पर प्रभाव पड़ेगा. रूस-यूक्रेन के बीच युद्ध से पहले ही आसार इस बात के हैं कि वैश्विक अर्थव्यवस्था में खलबली मचे. इसलिए, इजरायल को जो भी करना होगा, वह अगले 4-5 दिनों में कर लेना होगा. उसके बाद बातचीत के लिए इजरायल पर दबाव बनाया जाएगा. नेतन्याहू ने पहले ही कह दिया है कि जब तक हमास का एक भी आतंकवादी जिंदा है, इजरायल रुकेगा नहीं. इंसानी जानमाल की काफी क्षति हुई है, लेकिन इजरायल को कुछ ही दिनों में अपने स्ट्रेटेजिक गोल पूरे करने होंगे, क्योंकि अगर वेस्ट एशिया के मुस्लिम देश गोलबंद हो गए-फिलीस्तीन के मसले को लेकर तो फिर इजरायल की दिक्कतें बढ़ेंगी, युद्ध का दायरा भी बढ़ सकता है. 



यह सभ्यताओं का संघर्ष 


सैमुअल पी हटिंगटन अपनी किताब 'क्लैश ऑफ सिविलाइजेशन' में इस्लाम और ईसाइयत के संघर्ष की बात करते हैं. फिलीस्तीन और इजरायल के बीच का संघर्ष भी बहुत पुराना है. फिलीस्तीन एक सुन्नी इस्लामिक देश है, उसकी मांग हो रही है और इस्लामिक सॉलिडैरिटी के नाम पर ये मुल्क इकट्ठा हो रहे हैं. केवल पश्चिम एशिया के देश ही नहीं, दुनिया के हर उस देश में जहां कहीं भी मुस्लिम आबादी अधिक है, यहां तक कि भारत में भी, वहां गाहे-बगाहे फिलीस्तीन का समर्थन हमने देखा है. वेस्ट एशिया के मुल्क केवल इजरायल के मुद्दे पर इस्लामिक ब्रदरहुड को मानते हैं, भले ही उनमें शिया और सुन्नी को लेकर चाहे कितना भी तफरका हो. ईरान ने भले ही हमास के पीछे होने का खंडन किया है, लेकिन उस हमले का स्वागत, बधाई और शुभकामना देते सबसे पहले वही नजर आया था. अंतरराष्ट्रीय आतंकवाद में अंतरराष्ट्रीय फंडिंग भी है, जो कई देशों से होते हुए हमास तक पहुंचा है.


इजरायल ने बिटक्वाइन और साइबर फंडिंग पर रोक लगायी है, लेकिन कहीं न कहीं अंतरराष्ट्रीय फंडिंग भी आतंकवाद को होती रही है. कहीं न कहीं यह पूरा मामला मजहब विशेष पर आकर रुक जाता है और तुर्की के वर्तमान राष्ट्रपति मुस्लिम देशों के खलीफा बनना चाहते हैं और इसीलिए वह हमास के पक्ष में नजर आते हैं. यह ठीक नहीं है, क्योंकि आतंकवाद की बस मजम्मत होनी चाहिए. जिस तरह इजरायल के लोगों का गला काटा गया, महिलाओं से रेप हुआ और यहां तक कि नवजात शिशुओं को गोद से छीनकर हत्या कर दी गयी, वह किसी भी तरह गलत ही है, हरेक मुल्क को उसकी निंदा करनी ही चाहिए. वेस्ट एशिया के देश लेकिन मजहब के नाम पर अलग ही पॉलिटिक्स कर रहे हैं, तो वह ठीक नहीं है. 


भारत की विदेश नीति आतंक के खिलाफ 


जो लोग इस तरह का स्टेटमेंट दे रहे हैं कि नरेंद्र मोदी ने विदेश नीति पलट दी है, यहां तक कि अटलबिहारी वाजपेयी की नीति के खिलाफ चले गए हैं, तो ऐसा कुछ भी नहीं है. भारत का कई वर्षों से सीधा स्टैंड रहा है कि इसका आतंक के खिलाफ जीरो-टॉलरेंस है. हमास एक आतंकी संगठन है, जो गाजा पट्टी पर कब्जा कर बैठा है. पैलेस्टाइन इस्लामिक जेहाद, हिजबुल्ला भी इस समय हमास का साथ दे रहे हैं. केवल भारत ही नहीं, दुनिया के कई देशों की नीति आतंक के खिलाफ जीरो-टॉलरेंस की रही है. पिछले दस वर्षों में भारत की इजरायल और फिलीस्तीन को लेकर नीति यही रही है कि नरेंद्र मोदी सरकार ने इजरायल के साथ अच्छे संबंध बनाए हैं, लेकिन वह फिलीस्तीन की कीमत पर नहीं किया है. वह फिलीस्तीन के दौरे पर भी गए हैं, वह केवल फिलीस्तीन ही गए, उन्होंने इजरायल का रूट भी नहीं लिया. फिलीस्तीन ने तो उनको सर्वोच्च नागरिक सम्मान से भी नवाजा.


पुरानी सरकारें चाहे कांग्रेस की हो, इजरायल के साथ उन्होंने संबंध-विच्छेद किया हुआ था. अटल बिहारी वाजपेयी के शासनकाल में ही इजरायल के साथ संबंध बहाल हुए और अभी भी इजरायल से हमारे संबंध अच्छे हैं. सरकार का सीधा स्टैंड है कि इजरायल और फिलीस्तीन आपसी बातचीत से मुद्दे का हल करें, युद्ध या आतंकी घटनाओं से नहीं. हमास जिस फिलीस्तीनी कॉज की बात कर रहा है, भारत उसके साथ नहीं है. बाकी, कांग्रेस ने जो प्रस्ताव फिलीस्तीन के पक्ष में पारित किया, वह तो फिर भी ठीक है लेकिन उन्होंने हमास की आतंकी हरकत की निंदा नहीं की, यह निंदनीय है. 



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