फिल्म 'द केरला स्टोरी' को लेकर काफी विवाद हुआ है. इसे जहां पश्चिम बंगाल की सरकार ने न दिखाते हुए राज्य में बैन का फैसला किया तो वहीं दूसरी तरफ तमिलनाडु में मल्टीप्लेक्स थिएटर एसोसिएशन ने बॉयकॉट का फैसला किया. हालांकि, बीजेपी शासित राज्यों में पहले मध्य प्रदेश और उसके बाद उत्तर प्रदेश ने बॉलीवुड फिल्म 'द केरला स्टोरी' को टैक्स फ्री करने का ऐलान किया. केरल के हाईकोर्ट में इस फिल्म की रिलीज पर रोक की मांग को लेकर कई याचिकाएं दायर की गई थीं, लेकिन कोर्ट ने इस पर रोक से इनकार किया. उसके बाद इस फिल्म के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में भी रोक लगाने की याचिका दायर की गई लेकिन कोर्ट ने सुनवाई से साफ इनकार कर दिया. सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि हर मामले में सुप्रीम कोर्ट उपाय के तौर पर नहीं आ सकते हैं. इस मामले में याचिकाकर्ता हाईकोर्ट जा सकते हैं. इसके साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने ये टिप्पणी भी की थी कि हम यहां पर सुपर हाईकोर्ट नहीं बन सकते है.


दरअसल, ऐसा नहीं है कि किसी फिल्म को लेकर विवाद इस तरह का पहली बार हो रहा हो. इससे पहले कश्मीर फाइल्स और कई अन्य फिल्मों को लेकर भी कुछ इसी तरह का विरोध देखने को मिला था. ये कोई नई बात नहीं है. लेकिन अब ये हो गया है कि ये फिल्म चर्चा में आ गई है. बॉक्स ऑफिस पर इसके कलेक्शन की अगर मैं बात करूं तो 5 दिन में करीब 50 करोड़ की कमाई हुई, 56 करोड़ की कमाई हो चुकी है. आसानी से भारत में 150 से लेकर 200 करोड़ तक ये फिल्म कमाई कर सकती है.



विवाद का फिल्म को मिलता है फायदा


'द केरला स्टोरी' में जान बूझकर विवाद पैदा नहीं किया गया है. कोई भी अपनी फिल्म को बैन नहीं करवाना चाहेगा. ये बात सच है कि जब आपकी फिल्म विवादों में घिर जाती है और सुर्खियों में आ जाती है तो दर्शकों में फिल्म को देखने की उत्सुकता बढ़ जाती है. कहीं न कहीं यही बात अब द केरला स्टोरी के साथ भी हो रहा है. जिन्होंने पहले सोचा होगा कि वे इस फिल्म को नहीं देखेंगे या सोचा होगा कि ओटीटी पर देखेंगे या शायद नजरंदाज कर देंगे, नहीं देखना चाहेंगे अब वे लोग इस फिल्म को देखने के लिए थिएटर्स का रुख कर रहे हैं.


इससे ऐसा लगता है कि द केरला स्टोरी के व्यापार को बहुत फायदा होगा. मेरा तो सिर्फ यही मानना है कि जब सेंसर बोर्ड ने फिल्म को लेकर रुख साफ किया है, इसको सर्टिफिकेट दिया है तो फिर आप कैसे इसे रोक सकते हैं? लेकिन, इसका जवाब राज्य सरकार ही दे सकती है कि उन्होंने ऐसा क्यों किया है. लेकिन, एक बार जब सेंसर बोर्ड से पास हो जाती हैं फिल्म तो सब रास्ता साफ हो जाता है.


द केरला स्टोरी पर बैन 'सियासत' या कुछ और?


द केरला स्टोरी प्रोपगेंडा का हिस्सा है या नहीं इसका मुझे तो कुछ आइडिया नहीं है. लेकिन एक क्रिटिक और बॉक्स ऑफिस एनालिसिस्ट के तौर पर जब मैंने ये फिल्म देखी तो मुझे ऐसा लगा कि ये फिल्म आतंकवाद को दर्शाती है. उसको बेनकाब करती है. जिस तरह से आईएसआईएस लोगों को इस्तेमाल करते हैं, बाहर लेकर जाते हैं, वो दर्शाती है. मेरा फिल्म देखने का वही नजरिया था.


अभी लोग इसे किस नजरिए से देखते हैं और क्या कहते हैं इसके बारे में मैं नहीं जानता हूं. जहां तक किसी फिल्म को लेकर प्रोपगेंडा के बारे में बात है या किसी धर्म विशेष को लेकर बात है तो ये उन प्रोड्यूसर और कलाकारों को सोचना चाहिए. हर प्रोड्यूसर, कलाकार और डायरेक्टर का फिल्म करने का, एनाउँस करना और बनाने का अपना अलग नजरिया होता है. सब अपनी-अपनी सोच से ही उस फिल्म को बनाते हैं या उस फिल्म में काम करते हैं.


उनको उस वक्त क्या सही लगता है ये वही कह सकते हैं. विवेक अग्निहोत्री की चाहे कश्मीर फाइल्स हो या फिर द केरला स्टोरी हो, इन फिल्मों को उन्होंने क्यों बनाई हैं, किसलिए बनाई है इसका जवाब विवेक अग्निहोत्री और विपुल शाह ही दे सकते हैं.


जरूरी नहीं कि हर विवादित फिल्म की अच्छी कमाई हो


ये कोई जरूरी नहीं है कि जो भी फिल्म विवादित होगी उसका कलेक्शन भी अच्छा ही होगा. कई बार ऐसा भी देखा गया है जब काफी विवाद के बावजूद बॉक्स ऑफिस के आंकड़े काफी कमजोर रहे. इसके लिए फिल्म का कंटेंट दमदार होना भी जरूरी है. फिल्म में दम भी होना चाहिए. 


दरअसल, दर्शक ये फैसला करते हैं कि फिल्म देखनी भी है या नहीं देखनी. आज की तारीख में चाहे वो कश्मीर फाइल्स हो या फिर पठान हो, जो विवादों में घिरी थी, चाहे वो केरल स्टोरी हो, ये तीनों फिल्में बॉक्स ऑफिस पर अच्छा बिजनेस कर रहीं हैं.


दर्शकों को खिंचना बहुत कठिन काम


आज ओटीटी और डिजिटल मीडिया के समय में थिएटर तक दर्शकों को खिंचने के लिए काफी मशक्कत करनी पड़ती है. हर घर में टीवी है, हमारे मोबाइल 24 घंटे हमारे साथ है. ऐसे में जरूर ये सवाल उठता है कि लोग अपना पैसा खर्च करके क्यूं जाएंगे. इसलिए, उस फिल्म में इतनी काबिलियत होनी चाहिए. उस फिल्म में उतना दम होना चाहिए कि वो दर्शकों को अपने घरों से बाहर निकाले और अपनी जेब में हाथ डालने के लिए मजबूर करे. और जब वे घर आएं तो बाकियों को उस फिल्म को देखने के लिए बोले.  इसलिए, उस फिल्म की ताकत ज्यादा होनी चाहिए.  


मुझे यकीन है कि राजा मौली जी की नई फिल्म आएगी या किसी और किसी नामचीन लोगों की नई फिल्म आएगी तो दर्शक जरूर सिनेमा-घरों पर टूट पड़ेंगे. हर फिल्म को बनाने का बजट अलग-अलग रहता है. ऐसे में जब कोई राज्य सरकार ये फैसला करती है कि उस पर बैन लगाया जाए तो ये प्रोड्यूसर का लिए बड़ा नुकसान होता है. 


(यह आर्टिकल निजी विचारों पर आधारित है)