बिजनेस स्टैंडर्ड की एक रिपोर्ट के मुताबिक जून 2019 की तिमाही में लिस्टेड कंपनियों में जीवन बीमा निगम यानी (LIC) की हिस्सेदारी की जो वैल्यू थी, तीन महीने में उसकी वैल्यू करीब 11 प्रतिशत घट गई. इसकी वजह रही होगी आईडीबीआई बैंक, जीआईसी और हिंदुस्तान एरोनॉटिक्स जैसी कंपनियों के शेयरों की कीमतों में इस दौरान आई भारी गिरावट. इन तमाम कंपनियों में एलआईसी की बड़ी हिस्सेदारी है.


सामान्य परिस्थियों में भी शेयर बाजार में उतार चढ़ाव की वजह से ऐसा संभव है. लेकिन एलआईसी सामान्य परिस्थितियों में काम नहीं करती.

भले ही इस बात का कोई लिखित सबूत ना हो, लेकिन बाजार के खिलाड़ियों के बीच यह खुला रहस्य है कि चाहे बाजार में भारी गिरावट हो या फिर सरकारी कंपनियों के आईपीओ या फॉलोऑन पब्लिक ऑफर का मामला हो, नॉर्थ ब्लॉक की तरफ से सबकुछ संभालने की पहली हिदायत एलआईसी को ही जाती है और लाचारी में उसे ऐसा करना भी पड़ता है.

LIC को हर मर्ज की दवा बना दिया गया है

शेयर बाजार में गिरावट अब खराब लगने लगी है और इससे मूड खराब हो रहा है, LIC है ना.

पावर सेक्टर और भारतीय रेल को विस्तार के लिए पैसे चाहिए, LIC है ना.

कुल मिलाकर एलआईसी के फंड को बहुत से ऐसी जगहों पर लगाया जाता है जहां सामान्य निवेशक पैसा लगाने से पहले सौ बार सोचेंगे. लेकिन LIC को कई बार मजबूरी में ऐसा करना पड़ता है.

हर साल बाजार में लगाने के लिए एलआईसी के पास करीब 60 हजार करोड़ रुपये का भारी भरकम फंड रहता है. जहां इस पैसे को तेजी से बढ़ने वाली कंपनियों में लगाकर एलआईसी के शेयरधारकों को अच्छा खासा फायदा पहुंचाया जा सकता था, वहां उस पैसे का इस्तेमाल अक्सर इमरजेंसी में किया जाता है जो कभी-कभी निवेश का ग़लत फैसला साबित होता रहा है.

ऐसे में एलआईसी में विनिवेश का बजट में किया गया ऐलान सुखद अनुभूति जैसा है. इसके कई फायदे होंगे.

1. हर तिमाही अपने रिजल्ट बताने की मजबूरी के कारण (हर लिस्टेड कंपनी को ऐसा करना होता है) एलआईसी में जरूरी पारदर्शिता आएगी.

2. असामान्य निवेश करने से पहले एलआईसी को अपने निवेशकों के बारे में सोचना पड़ेगा और बड़े संस्थागत निवेशकों को समझाना भी पड़ेगा कि ऐसा निवेश क्यों किया गया. इसकी वजह से एलआईसी का कंपनियों में निवेश बेहतर होगा, करोड़ों पॉलिसी धारकों को इसका फायदा होगा और सरकार को भी बड़ा डिविडेंड मिलेगा.

3. एलआईसी की लिस्टिंग से 10 लाख करोड़ रुपये या उससे ज्यादा की मार्केट वैल्यू वाली कंपनी बनेगी जिसपर हमें गर्व होगा.

4. एलआईसी में एक छोटा सा हिस्सा बेचकर भी सरकार अपने अगले साल के 2 लाख करोड़ रुपये के विनिवेश लक्ष्य को पूरा कर लेगी. एलआईसी के विनिवेश के बिना ये लक्ष्य पूरा करना बहुत मुश्किल होगा.

5. बाजार में एलआईसी की मजबूरी में की गई दखलंदाजी खत्म होने से मार्केट की विकृतियां कम होंगी और शेयर बाजार में प्राइस डिस्कवरी बेहतर होगी.

आसान नहीं होगा LIC में विनिवेश

हालांकि, एलआईसी की लिस्टिंग के फैसले पर अमल करना आसान नहीं होगा. पहले राजनीति पार्टियों का विरोध, फिर यूनियन को भरोसे में लेना और फिर बाजार में ऐसे हालात का इंतजार करना जहां इतनी बड़ी कंपनी के शेयर आसानी से बेचे जा सकें. इसके अलावा, एलआईसी को कंपनी बनाने के लिए (लिस्टिंग से पहले ऐसा करना जरूरी होगा) कानून में बदलाव भी करने होंगे.

एलआईसी की स्थापना 1950 के दशक में संसद के एक कानून से हुई थी. इस कानून में भारत सरकार ने गारंटी दी है कि वो एलआईसी के सारे पॉलिसी धारकों को भुगतान सुनिश्चित करेगी. एलआईसी को कंपनी में तब्दील करने के बाद वो गारंटी बनी रहेगी या नहीं, ये जानने के लिए हमें कानून में बदलाव का इंतजार करना होगा.

लेकिन लिस्टिंग के बाद होने वाले संभावित फायदे से पॉलिसी धारकों के बल्ले-बल्ले होंगे. वैसे भी एलआईसी अपने आप में अनोखी कंपनी है. इसके पास 31 लाख करोड़ रुपये से ज्यादा का एसेट बेस है. और वित्त वर्ष 2018 में इसने करीब 50 हजार करोड़ रुपये का मुनाफा कमाया था.

इसमें से अकेले 23 हजार करोड़ से ज्यादा का मुनाफा शेयर बाजार में निवेश से ही आया था. इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट के मुताबिक एलआईसी के पूरे निवेश की मौजूदा मार्केट वैल्यू करीब 29 लाख करोड़ रुपये है.

अलग-अलग इंफ्रास्ट्रक्चर कंपनियों में एलआईसी का 3.7 लाख करोड़ से ज्यादा का निवेश है. वित्त वर्ष 2019 में एलआईसी ने पहले प्रीमियम से 1.42 लाख करोड़ रुपये की कमाई की और 214 लाख से ज्यादा पॉलिसी बेची. देश के लाइफ इंश्योरेंस बाजार में एलआईसी की हिस्सेदारी करीब 67 परसेंट की है. ये सारे आंकड़े बताते हैं कि एलआईसी वाकई अनमोल है.

ऐसा नहीं है कि एलआईसी में सबकुछ अच्छा ही हो रहा है. कभी इसकी देश के बीमा बाजार में 90 परसेंट से ज्यादा की हिस्सेदारी हुआ करती थी. अब वो घटकर 70 परसेंट के नीचे चली गई है. बिजनेस टुडे की एक रिपोर्ट के मुताबिक बैंकों की तरह हाल के दिनों में एलआईसी का भी एनपीए (खराब लोन) तेजी से बढ़ा है. एलआईसी जैसी संस्था के लिए यह बहुत बुरी खबर है. ये सब शायद खराब निवेश का ही नतीजा है.

लेकिन हममें से जिसने भी एलआईसी के दफ्तर का चक्कर लगाया होगा, उसे पता है कि देश के बदलते माहौल में एलआईसी में भी बदलाव की जरूरत है. इसे शायद एक कॉरपोरेट कल्चर का बड़ा डोज चाहिए. लिंस्टिंग इस रास्ते की पहली सीढ़ी हो सकती है. फासले तो बहुत तय करने होंगे.

हो सकता है इसके बाद एलआईसी नए जोश से काम करे और फिसलते मार्केट शेयर को फिर से हासिल करने में कामयाब हो जाए. हो सकता है उसे खराब निवेशों से भी मुक्ति मिल जाए. कम से कम एक बार सच्ची लगन के साथ कोशिश करने में हर्ज़ ही क्या है.

(नोट- उपरोक्त दिए गए विचार व आंकड़े लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. ये जरूरी नहीं कि एबीपी न्यूज ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.)