पाकिस्तान और अफगानिस्तान के बीच पहले की तुलना में संबंध काफी खराब हो चुके हैं. तालिबान में आज तीन बड़े ग्रुप हैं, जिनके सााथ कई छोटे-मोटे ग्रुप जुड़े हुए हैं. एक बड़ा ग्रुप मुल्ला बरादर का है, जो कभी मुल्ला उमर का कभी होता था. इसी ग्रुप ने अमेरिका से नेगोशिएशन की थी.


दूसरा बड़ा ग्रुप है हक्कानी नेटवर्क का. हक्कानी नेटवर्क पहले काफी प्रो-पाकिस्तानी था लेकिन अब इसके संबंध भी बिगड़ गए हैं. ऐसा लगता है कि मुरादर और हक्कानी नेटवर्क इनका आपस में थोड़े संबंध बेहतर हुए हैं, जबकि मुल्ला हैबतुल्ला इनका तीसरा ग्रुप है. मुल्ला हैबतुल्ला सुप्रीम लीडर हैं वहां के. लेकिन, ये दोनों इस ग्रुप के खिलाफ है. मुल्ला बिरादर और हक्कानी नेटवर्क- ये दोनों ग्रुप तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान (टीटीपी) को समर्थन दे रहे हैं. 


पाक सेना को निशाना बना रहे टीटीपी


टीटीपी लगातार पाकिस्तान के अंदर खासतौर से खैबर पख्तूनख्वाह के अंदर जो प्रांत है, जिसे पहले नॉर्थ वेस्ट फ्रंटियर प्रोविंस कहते थे, उसमें आए दिन आतंकी हमले कर रहे हैं.  सेना को निशाना बना रहे हैं, दूसरे ठिकानों पर भी हमले कर रहे हैं. अफगानिस्तान के अंदर जितने भी ग्रुप हैं वो डूरंड लाइन को मानने को तैयार नहीं है. डूरंड लाइन वो लाइन है तो सर डूरंड ने तीसरी अफगान युद्ध के बाद खिंची थी. जिसमें पश्तून इलाका काफी बड़ा था जो भारत से जोड़ दिया था, जो इस समय खैबर पख्तूनख्वाह के नाम से जाना जाता है. 


पश्तून की खतरनाक मंशा


गौरतलब बात ये है कि अधिकतर पश्तून आज पाकिस्तान के खैबर पख्तूनख्वाह में रहते हैं ना कि अफगानिस्तान में. जितनी भी अफगानिस्तान में सरकारें रही हैं वो पहले भी और बाद में भी वो डूरंड लाइन को मानने को तैयार  नहीं है, दूसरे पश्तूनों का यह सपना रहा है कि हमें दोबारा से मिलना चाहिए. ऐसे में अगर ये डूरंड लाइन मिल जाती है, दोनों एरिया मिल जाते हैं तो पश्तून बहुत पावरफुल हो जाएंगे. 


पश्तून इस समय अफगानिस्तान के अंदर सबसे बड़ा ग्रुप है और यही हमेशा वहां पर रूल करते हैं, तालिबान में भी यही ग्रुप शासन करते हैं. पश्तूनों में भी खासकर दुर्रानी ट्राइब के लोग होते है.      


अफगानिस्तान में हमेशा पाक के खिलाफ नफरत


अफगानिस्तान में हमेशा से पाकिस्तान के खिलाफ नफरत रही है. लेकिन, पाकिस्तान में सेक्यूलर मूवमेंट जितने थे बादशाह खां के बाद से खत्म करके नफरत खत्म करने का जो तरीका निकाला था वो था- इस्लामिक मूवमेंट बढ़ाया. लेकिन अब इस्लामिक मूवमेंट पर से भी कंट्रोल छूटता चला गया. अब पाकिस्तान के ऊपर वो बहुत ज्यादा निर्भर नहीं है. 


अमेरिका ने इतना ज्यादा असलहा छोड़ दिया कि और उन्हें इतने हथियार मिल गए कि उससे ज्यादा उन्हें जरूरत नहीं. इसके साथ ही, पाकिस्तान पहले ही काफी ज्यादा पश्तून और आतंकियों को ट्रेनिंग दे चुके हैं, इसलिए अब वो खुद ट्रेनिंग कर लेते हैं. वो खुद गुरिल्ला वॉर के लिए तैयार कर लेते हैं. इसलिए अब इन्हें पाकिस्तान पर वो निर्भरता नहीं चाहिए. यही वजह है कि हालात लगातार बिगड़ते जा रहे हैं.


दूसरी तरफ, अभी ये कहना जल्दबाजी होगी क्या होगा. ये सारी फोर्सेज- तालिबान, अलकायदा, आईएसआईएस ये सभी अशांति तो कर सकते हैं लेकिन अमन शांति नहीं कर सकते हैं. 


ये पहले अफगानिस्तान में अमन-चैन खत्म कर रहे थे, अब यही काम पाकिस्तान में शुरू कर दिया है. इनका मानना है कि खासकर खैबर पख्तूनख्वाह में सही इस्लामिक सुन्नी मुस्लिम निजाम बनाना चाहिए. इसलिए इनकी लड़ाई अब पाकिस्तान की सेना से छिड़ गई है.


खासकर टीटीपी का ये मानना है कि पाकिस्तान की सेना असली इस्लामिक नहीं है. पाकिस्तान इस्लाम के नाम पर बना था. इसलिए सही इस्लामिक हुकूमत बननी चाहिए और ये सेना इसमें बाधक है. टीटीपी के पास भी काफी असलहा है. अफगानिस्तान के अंदर इसका बड़ा बेस है. इनके पास अमेरिकन हथियार है.


तीसरी बात ये है कि अगर टीटीपी की जंग बढ़ती है तो पाकिस्तान के अंदर जो जमात-ए-इस्लामी है इसमें टूट हो सकता है. अभी तक ये सेना को समर्थन करते थे. 
अब ये लड़ाई बढ़ती है तो खैबर पख्तूनख्वाह प्रांत में कई हजार इनके मदरसे हैं, दूसरी तरफ हक्कानी नेटवर्क और मुल्ला बरादर के भी नेटवर्क है. ऐसे में ये बड़ी फोर्स बनकर सामने आ सकते हैं.


ये सभी पश्तून हैं, जो अफगानिस्तान से शरणार्थी बनकर आए हैं, इनके बच्चे इन मदरसों में पढ़ते हैं और उन लोगों को काफी नफरत भी है पाकिस्तान से क्योंकि इनके साथ वहां पर अच्छा व्यवहार नहीं होता है.


पाकिस्तान में नेतृत्व विफल


इतना ही नहीं, पाकिस्तान में राजनीतिक नेतृत्व विफल है. नई सरकार सेना की मदद से बनी है. ऐसा कहा जाता है कि इमरान खान के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव सेना की मदद से लाया गया था. ऐसे में अब ये सरकार को नहीं चला पा रहे. कोई बड़ा नेता नहीं है. इमरान खान ने बड़ी लड़ाई तो छेड़ दी, लेकिन वे खुद भी सत्ता में आते हैं तो नहीं सुधार सकते न कोई बड़ा धार्मिक नेता नजर आता है.


इसके अलावा, पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था लुढ़क चुकी है. उसके पास फॉरेन एक्सचेंज रिजर्व सिर्फ पांच बिलियन डॉलर की है. आईएमएफ ने 1.1 बिलियन डॉलर का इनके लोन का वादा किया पिछले नवंबर में, वो उसने देने से इनकार कर दिया है. आईएमएफ का कहना है कि आप टैक्स बढ़ाइये, सब्सिडी को कट करिए, और ये सब पाकिस्तान के लिए संभव नहीं हो रहा है.


संकट में घर चुका पाकिस्तान 


अगर पाकिस्तान पूरा करेगा तो पूरे मुल्क में आग लग जाएगी, गरीबी बढ़ जाएगी. दूसरी बात ये है कि चीन-सऊदी अरब से कितना लोन लेंगे. बाढ़ के चलते पाकिस्तान को फौरन 30 बिलियन डॉलर चाहिए. जितना नुकसान हुआ है वो करीब 800 बिलियन डॉलर का हुआ है. सबसे ज्यादा नुकसान खेती का हुआ है. सिंध समेत कई इलाकों में लाखों घर बह गए है. इतनी बड़ी संकट में पाकिस्तान घिर गया, जिससे उसका निकलना मुश्किल हो रहा है.


पाकिस्तान के अंदर हथियार बहुत है. आतंक संगठन बहुत ज्यादा उसने बना रखे हैं. ऐसे में अगर मुल्क में हालात बिगड़ते हैं, सेना को वेतन नहीं मिलेगा तो उसकी टूट का डर बना रहेगा. ऐसा अफ्रीका के बहुत मुल्कों में हुआ है. पाकिस्तान भी उसी रास्ते पर जा रहा है. अगर पाकिस्तान में अशांति होती है तो इसका असर भारत में पड़ेगा, क्योंकि फिदायीन वहां से काफी भारत में आने की संभावना है.


[नोट- उपरोक्त दिए गए विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. ये जरूरी नहीं कि एबीपी न्यूज़ ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.]