दुनिया में मोहब्बत की सबसे बड़ी निशानी कहलाने वाले ताजमहल की कहानी तब भी अधूरी थी और और शायद आगे भी अधूरी ही रहेगी. अपनी पत्नी मुमताज़ महल की याद में मुगल सम्राट शाहजहां द्वारा 1632 में बनवाया गया ये मकबरा दुनिया के सात अजूबों में शुमार है, लेकिन ये अचानक फिर से चर्चा में आ गया है. इसलिए नहीं कि दुनिया भर से आने वाले पर्यटक इसे देखकर भौंचके रह जाते हैं, बल्कि इसलिए कि कुछ संगठनों का दावा है कि यहां भी पहले मंदिर बना हुआ था.


ताजमहल के 22 बंद कमरों के पीछे क्या है,ये फिलहाल तो रहस्य ही बना रहेगा. इसलिये कि इलाहाबाद हाइकोर्ट की लखनऊ बेंच ने इन कमरों को खोलने और उसका सर्वे कराने की मांग करने वाली एक बीजेपी नेता की याचिका को न सिर्फ खारिज़ कर दिया, बल्कि जनहित याचिका यानी PIL का मखौल बनाने को लेकर खासी फटकार भी लगाई. साथ ही ये नसीहत भी दे डाली कि पहले रिसर्च करो, उसके बाद ही कोर्ट का रुख करना.


दरअसल, पिछले कुछ अरसे से ताजमहल के इन बंद कमरों को लेकर एक नया विवाद पैदा किया गया है. कुछ हिन्दू संगठनों ने दावा किया है कि उन कमरों में शिव मंदिर होने के प्रमाण हैं, इसीलिये उन्हें बंद कर दिया गया. जबकि प्रशासन का कहना है कि सुरक्षा के लिहाज़ से इन्हें तकरीबन 45 साल पहले बंद किया गया था.


बीजेपी के अयोध्या मीडिया प्रभारी डॉ. रजनीश सिंह ने हाईकोर्ट में याचिका दायर की थी कि ताजमहल के 22 कमरों में बंद राज को दुनिया के सामने लाने के लिए इसे खोला जाए और कोर्ट इस बारे में आदेश दे. याचिका में इतिहासकार पीएन ओक की किताब ताजमहल का हवाला देते हुए दावा किया गया कि ताजमहल वास्तव में तेजोमहालय है, जिसका निर्माण 1212 एडी में राजा परमार्दी देव ने कराया था.


याचिका में यह भी दावा किया गया कि ताजमहल के बंद दरवाजों के भीतर भगवान शिव का मंदिर है. याचिका में अयोध्या के जगतगुरु परमहंस के वहां जाने और उन्हें भगवा वस्त्रों के कारण रोके जाने संबंधी हालिया विवाद का भी जिक्र किया गया था.


कोर्ट को प्रभावित करने के मकसद से याचिकाकर्ता ने कहा- मैं कई आरटीआई लगा चुका हूं. मुझे पता चला है कि कई कमरे बंद हैं और प्रशासन की ओर से बताया गया कि ऐसा सुरक्षा कारणों की वजह से किया गया है. इसके जवाब में यूपी सरकार के वकील ने कहा कि इस मामले में आगरा में पहले से ही मुकदमा दर्ज है, लिहाजा यहां याचिका दायर करने का अधिकार क्षेत्र ही नहीं बनता है. याचिकाकर्ता के वकील ने दलील दी कि मैं इस तथ्य पर बात ही नहीं कर रहा कि वह जमीन भगवान शिव से जुड़ी है या अल्लाह से. मेरा मुख्य मुद्दा वो बंद कमरें हैं और हम सभी को जानना चाहिए कि आखिर उन कमरों के पीछे क्या है.


हालांकि जस्टिस डीके उपाध्याय की अगुवाई वाली खंडपीठ ने तमाम दलीलों को ठुकराते हुए सख्त रवैया अपनाया. याचिकाकर्ता ने कहा कि हमें उन कमरों में जाने की अनुमित दीजिए. इस पर कोर्ट ने बेहद तीखे अंदाज में तंज कसा कि कल को आप कहेंगे, हमें माननीय न्यायाधीशों के चेंबर में जाना है. कोर्ट ने याचिकाकर्ता को फटकार लगाते हुए कहा कि 'PIL व्यवस्था का दुरुपयोग न करें. इसका मजाक न बनाएं.'


याचिकाकर्ता की सभी दलील ठुकराते हुए हाई कोर्ट ने ये भी कहा कि "आप नहीं मानते कि ताज महल को शाहजहां ने बनाया है? अगर ऐसा है तो जाकर रिसर्च कीजिए, PHD करो, तब कोर्ट आना. रिसर्च से कोई रोके, तब हमारे पास आना. अब इतिहास को आपके मुताबिक नहीं पढ़ाया जाएगा."


(नोट- उपरोक्त दिए गए विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. ये जरूरी नहीं कि एबीपी न्यूज ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.)