वनडे टीम की कमान संभालने के बाद विराट कोहली किसी को खोज रहे थे. उन्हें तलाश थी एक ऐसे बल्लेबाज की जो टीम इंडिया के लिए मैच ‘फिनिश’ करे. सिर्फ दो हफ्ते के भीतर उनकी ये तलाश पूरी होती दिख रही है. इंग्लैंड के खिलाफ सीरीज में केदार जाधव ने जिस तरह की बल्लेबाजी की है उसके बाद ये बात यकीन से कही जा सकती है कि उनमें वो ‘टेंपरामेंट’ है जो कप्तान की खोज को पूरा करता है. तीन वनडे मैचों की सीरीज में उन्हें ‘प्लेयर ऑफ द सीरीज’ चुना गया. उन्होंने 232 रन बनाए. इसमें एक शतक भी शामिल है. उनकी औसत करीब 80 रनों की रही.

टीम इंडिया में इस वक्त महेंद्र सिंह धोनी और युवराज सिंह के तौर पर दुनिया के दो सबसे बेहतरीन ‘फिनिशर’ मौजूद हैं. विराट कोहली खुद शानदार ‘मैन फिनिशर’ हैं. ऐसे में केदार जाधव का इस सीरीज में चमकना टीम इंडिया के लिए और कप्तान विराट कोहली के लिए काफी सुखद है. कोलकाता में जब आखिरी ओवर में केदार जाधव ने पहले छक्का और फिर चौका लगाया तो धोनी के चेहरे पर बड़ी मुस्कान थी. शायद उन्हें भी अपना उत्तराधिकारी दिखाई दे रहा था.

कभी कभी हारे मैच में भी मिलते हैं चैंपियन कोलकाता वनडे में जब केदार जाधव आउट होकर पवेलियन पहुंचे तो उनके लिए ताली बज रही थी. शिखर धवन ने उन्हें शाबाशी दी. कुंबले ने पीठ थपथपाई. बगल में कप्तान विराट कोहली भी खड़े थे. ऐसा कम ही होता है कि टीम हार रही हो और जो बल्लेबाज आउट होकर आया है उसके लिए ताली बज रही हो. इस शाबाशी के पीछे ‘स्पोर्ट्समैन स्प्रिट’ के अलावा केदार जाधव का जुझारूपन भी था, जिसकी जमकर तारीफ हो रही है. कल मैच के बाद सोशल मीडिया में इस बात पर खूब चर्चा हो रही थी कि इंग्लैंड ने एक मैच जीता है जबकि केदार जाधव ने सवा सौ करोड़ हिंदुस्तानियों का दिल.

इस सीरीज में केदार जाधव पहले ही मैच में धुआंधार शतक लगाकर तारीफ बटोर चुके थे लेकिन कोलकाता में दिल जीतने के पीछे उनका संघर्ष था. 32वें ओवर में जब धोनी आउट हुए थे उसके बाद भी टीम इंडिया को जीत के लिए करीब डेढ़ सौ रन चाहिए थे. केदार जाधव ने वहां से खेलना शुरू किया था जब भारत की हार तय दिख रही थी. आखिरी ओवर तक मैच को लेकर आए. आखिरी ओवर में 16 रन चाहिए थे. पलड़ा अब भी इंग्लैंड का ही मजबूत था.

केदार जाधव ने पहली गेंद पर ‘एक्सट्रा कवर’ के ऊपर शानदार छक्का लगाया. इसके बाद उन्होंने इसी तरफ से चौका मारा. मैच भारत की पकड़ में आ गया. अब 4 गेंद पर सिर्फ 6 रन चाहिए थे. अगली दो गेंद पर वो कोई रन नहीं बना पाए. इसी दबाव में वो ओवर की पांचवी गेंद पर आउट हो गए. लेकिन जिस ‘फाइटर’ और ‘फिनिशर’ की तलाश कप्तान को थी उस कसौटी पर खरा उतरने का काम वो कर चुके थे.

इस सीरीज से बदलेगी केदार जाधव की किस्मत केदार जाधव स्टार अभी बने हैं लेकिन उन्हें टीम इंडिया में आए काफी समय हो गया. केदार जाधव ने 2014 में ही वनडे करियर की शुरूआत की थी. ये अलग बात है कि उन्हें ज्यादा मौके नहीं मिले. करियर के शुरूआती दौर में उन्होंने जिम्बाब्वे के खिलाफ एक शतक भी लगाया था लेकिन टीम में अपनी जगह पक्की करने में उन्हें कामयाबी नहीं मिली. उन्हें 2015 में सिर्फ तीन और 2016 में आठ वनडे खेलने का ही मौका मिला. इंग्लैंड के खिलाफ सीरीज उनके लिए ‘लकी’ साबित हुई है. पुणे में उन्होंने शानदार शतक लगाया. जिसकी बदौलत भारत को जीत मिली. शतक के साथ साथ शतक के अंदाज पर भी खूब चर्चा हुई. उन्होंने 76 गेंद पर 120 रनों की पारी खेली थी. उन्हें ‘प्लेयर ऑफ द मैच’ चुना गया था.

निश्चित तौर पर आने वाले वनडे मैचों में खास तौर पर चैपियंस ट्रॉफी के लिहाज से केदार जाधव पर अब सभी की नजर रहेगी. जितने वनडे मैच उन्होंने पिछले ढाई साल में खेले हैं उतने मैच वो एक अकेले साल में खेल जाएंगे. इसके पीछे की वजह ये है कि अब उन्होंने टीम में अपनी उपयोगिता साबित की है. जाहिर है अब उन पर जिम्मेदारियां भी बढ़ेगी.

अभी और क्या सीखना होगा केदार को? केदार जाधव को वही सीखना होगा जो अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेट में सफलता की सबसे बड़ी चाबी है. कोलकाता में उन्होंने जिस मुश्किल स्थिति से निकालकर टीम के लिए मैच बनाया था उसके बाद वो बड़ी आसानी से मैच जिता सकते थे. बेहतर होता अगर वो ओवर की तीसरी गेंद पर सिर्फ सिंगल लेकर ‘स्ट्राइक रोटेट’ कर लेते. यूं तो क्रिकेट में ‘अगर-मगर’ जैसी स्थिति नहीं होती लेकिन ऐसा करके वो अपने ऊपर से दबाव कम कर सकते थे. वो एक रन शायद मैच के हालात को बदल सकता था. ऐसी सूझबूझ ही खिलाड़ी को चैंपियन के तमगे के और करीब लाती है.