शहाबुद्दीन जरुर जेल से बाहर आ गए लेकिन नीतीश बाबू का सुशासन जेल के अंदर चला गया. ये साफ हो गया कि नीतीश सत्ता में बने रहने के लिए अब सरेंडर की मुद्रा में आ चुके हैं. ये वही नीतीश कुमार हैं जिन्हें बिहार में सुशासन का पर्याय माना गया. लालू यादव के तथाकतिथ जंगलराज के बाद बिहार की जनता ने बहुत उम्मीदों के साथ उन पर एतबार किया था. अपनी पहली पारी में नीतीश उन उम्मीदों पर खरे उतरे भी लेकिन कुर्सी मोह में अब जिस तरह से उन्होंने अपने धुरविरोधी रहे लालू यादव से गलबहियां कर ली है, उसकी परिणति आप शहाबुद्दीन जैसे दुर्दांत अपराधी की रिहाई के तौर पर देख सकते हैं. बिहार में एक जमाने में खौफ का दूसरा नाम बन चुके शहाबुद्दीन ने अपराध की दुनिया में पहला कदम अस्सी के दशक में रखा था. उनके खिलाफ 1986 में जो पहला आपराधिक मुकदमा दर्ज हुआ था. वो सिलसिला लगातार बढ़ता ही गया. शहाबुद्दीन की गुंडागर्दी को देखते हुए सीवान पुलिस ने उन्हें ए श्रेणी का हिस्ट्रीशीटर घोषित कर दिया था. राजनीतिक गलियारों में शहाबुद्दीन का नाम उस वक्त चर्चाओं में आया जब शहाबुद्दीन ने लालू यादव की सरपरस्ती में जनता दल की युवा इकाई में कदम रखा. पार्टी में आते ही शहाबुद्दीन को अपनी ताकत और दबंगई का फायदा मिला. लालू ने उन्हें 1990 में विधान सभा का टिकट दिया. शहाबुद्दीन जीत गए. उसके बाद फिर से 1995 में चुनाव जीता. एक तो बाहुबल ऊपर से उस दौर के बिहार के सबसे कद्दावर नेता लालू का हाथ, शहाबुद्दीन का कद लगातार बढ़ता गया. उनके रुतबे को देखते हुए पार्टी ने 1996 में उन्हें लोकसभा का टिकट दिया और शहाबुद्दीन की जीत हुई. 1997 में राष्ट्रीय जनता दल के गठन और लालू प्रसाद यादव की सरकार बन जाने से शहाबुद्दीन की ताकत में और इजाफा हुआ. तब तक खौफ का दूसरा नाम बन गए थे शहाबुद्दीन. सरकार के संरक्षण में वो खुद ही कानून थे. पुलिस शहाबुद्दीन की आपराधिक गतिविधियों की तरफ से आंखे बंद किए रहती. शहाबुद्दीन का आतंक इस कदर था कि उस दौर में उनके खिलाफ किसी भी मामले में कोई गवाही देने की हिम्मत नहीं जुटा पाता. सीवान जिले को वो अपनी रियासत समझने लगे थे जहां उनकी इजाजत के बिना पत्ता भी नहीं हिलता. दबंगई को वो आलम था कि पुलिस और प्रशासनिक अधिकारी तक को नहीं बख्शते थे शहाबुद्दीन. ताकत के नशे में चूर शहाबुद्दीन पुलिस और प्रशासनिक अधिकारियों से भी मारपीट करने लगे थे. मार्च 2001 की घटना है जब पुलिस आरजेडी के स्थानीय नेता मनोज कुमार पप्पू के खिलाफ एक वारंट तामील करने पहुंची थी तो शहाबुद्दीन ने गिरफ्तार करने आए अधिकारी संजीव कुमार को थप्पड़ मार दिया था और उनके गुंडों ने पुलिस वालों की पिटाई की थी. मनोज कुमार पप्पू प्रकरण से पुलिस महकमा सकते में था. पुलिस ने मनोज और शहाबुद्दीन की गिरफ्तारी करने के मकसद से शहाबुद्दीन के घर छापेमारी की थी. इसके लिए बिहार पुलिस के अलावा उत्तर प्रदेश पुलिस की मदद भी ली गई थी. छापे की उस कार्रवाई के दौरान दो पुलिसवाले समेत 10 लोग मारे गए थे. पुलिस की गाड़ियां आग के हवाले कर दी गई थी. मौके से पुलिस को तीन AK 47 राईफल बरामद हुई थी. शहाबुद्दीन और उसके साथी मौके से भाग निकले थे. इस घटना के बाद शहाबुद्दीन पर कई मुकदमे दर्ज किए गए. दो हजार के दशक तक सीवान जिले में शहाबुद्दीन एक समानांतर सरकार चला रहे थे. उनकी एक अपनी अदालत थी. जहां लोगों के फैसले हुआ करते थे. वो खुद सीवान की जनता के पारिवारिक विवादों और भूमि विवादों का निपटारा करने लगे थे. 1999 में एक CPI(ML) कार्यकर्ता के अपहरण और संदिग्ध हत्या के मामले में शहाबुद्दीन को 2004 में गिरफ्तार कर लिया गया था लेकिन चुनाव आते ही शहाबुद्दीन ने मेडिकल आधार पर अस्पताल में शिफ्ट होने का इंतजाम कर लिया. उनके आगे सिस्टम इतना लाचार था कि अस्पताल का एक पूरा फ्लोर उनके लिए रखा गया था. जहां वो लोगों से मिलते, बैठकें करते. बिल्कुल फिल्मी अंदाज में वहीं से फोन पर अधिकारियों, नेताओं को निर्देश भी दिया करते थे. कई सालों तक शहाबुद्दीन की तूती बोलती रही लेकिन साल 2004 के बिहार विधानसभा चुनाव के बाद से शहाबुद्दीन का बुरा वक्त शुरू हो गया था. इस दौरान शहाबुद्दीन के खिलाफ कई मामले दर्ज किए गए. राजनीतिक रंजिश भी बढ़ रही थी. नवंबर 2005 में बिहार पुलिस की एक विशेष टीम ने दिल्ली में शहाबुद्दीन को उस वक्त गिरफ्तार कर लिया जब वो संसद सत्र में हिस्सा लेने आए थे. दरअसल उससे पहले ही सीवान के प्रतापपुर में एक पुलिस छापे के दौरान उनके पैतृक घर से कई अवैध आधुनिक हथियार, सेना के नाइट विजन डिवाइस और पाकिस्तानी गन फैक्ट्रियों में बने हथियार बरामद हुए थे. हत्या, अपहरण, बमबारी, अवैध हथियार रखने और जबरन वसूली करने के दर्जनों मामले शहाबुद्दीन पर हैं. अदालत ने शहाबुद्दीन को उम्रकैद की सजा सुनाई थी. शहाबुद्दीन अपराधी तो हैं लेकिन काफी पढ़े लिखे हैं. राजनीति शास्त्र में एमए और पीएचडी करने वाले शहाबुद्दीन ने हिना शहाब से शादी की थी. उनका एक बेटा और दो बेटी हैं. शहाबुद्दीन ने कॉलेज से ही अपराध और राजनीति की दुनिया में कदम रखा था. किसी फिल्मी किरदार से दिखने वाले मोहम्मद शहाबुद्दीन की असल जिंदगी की कहानी भी फिल्मी लगती है. अदालत ने 2009 में शहाबुद्दीन के चुनाव लड़ने पर रोक लगा दी थी. जिस मामले में शहाबुद्दीन को उम्र कैद की सजा सुनाई गई थी वो मामला साल 2004 का है. घटना वाले दिन सीवान के गोशाला रोड वाले घर से चंदा बाबू नाम के एक शख्स के तीन बेटों को अगवा कर लिया गया था. दरअसल शहाबुद्दीन और उसके गुर्गों की नजर चंदा बाबू की जमीन पर थी. वारदात वाले दिन भी पहले झगड़ा हुआ फिर बेटों को अगवा किया गया. गिरीश, सतीश और राजीव को बंधक बनाकर शहाबुद्दीन के गांव प्रतापपुर ले जाया गया. जब सतीश और गिरीश को शहाबुद्दीन के गुर्गे तेजाब से नहा रहे थे तभी राजीव किसी तरह जान बचाकर भाग निकला. वो इस मामले का मुख्य गवाह बना लेकिन 2014 में कोर्ट में पेशी से ठीक पहले उसकी भी सीवान में हत्या कर दी गई. डीएवी गोल चक्कर के पास हुई हत्या में मुख्य अभियुक्त शहाबुद्दीन का बेटा ओसामा ही है. चंदा बाबू के तीन बेटों की हत्या हो चुकी है. चंदा बाबू को इंसाफ और कानून पर भरोसा था लेकिन शहाबुद्दीन की रिहाई से वो टूट गया. उनके पास ताकत और पैसे का बल नहीं कि उनके लिये कोई बड़ा वकील उनका मुकदमा लड़े. उनके पास सियासत और राजनीतिक रसूख भी नहीं कि कोई उनकी आवाज बुलंद करे. आज चंदा बाबू पति पत्नी बहुत मुफलिसी में जीवन यापन कर रहे हैं. ऐसे में सवाल नीतीश कुमार से कि क्या चंद्रा बाबू के आंसू आपको नजर नहीं आते नीतीश बाबू ? लालू जी से तो उम्मीद नहीं की जा सकती क्योंकि जैसे ही वो इस बार किंग मेकर बने. कुछे बातें तो स्पष्ट नजर आ रही थीं. शहाबुद्दीन की रिहाई के कयास लगाए जाने लगे थे. जेल जाकर मंत्री उनकी खिदमत करने लगे थे. शहाबुद्दीन को कुछ दिनों पहले पत्रकार राजदेव रंजन की हत्या के आरोपों में घिरने के बाद सीवान से भागलपुर जेल शिफ्ट किया गया था. वैसे जेल से रिहा होने के बाद शहाबुद्दीन सैकड़ों गाड़ियों के काफिले के साथ जिस रुतबे के साथ सीवान रवाना हुए उसमें भविष्य की आहट साफ तौर पर समझी जा सकती है. सवालों के घेरे में बिहार के सीएम नीतीश कुमार हैं. उन्हें तय करना है कि उनके लिए कुर्सी से चिपके रहना ज्यादा महत्वपूर्ण है या उनकी छवि ? वैसे भी शहाबुद्दीन जेल से छूटते ही नीतीश को परिस्थितियों का मुख्यमंत्री तो बता ही चुके हैं !