रूप की रानी नहीं रही! हिंदी फिल्मों की ‘चांदनी’ चली गई. दुबई में हो रही एक शादी में पति बोनी कपूर और छोटी बेटी खुशी के साथ हंसी-खुशी शामिल होने पहुंची श्रीदेवी अब इस दुनिया में नहीं हैं. यकीन ही नहीं होता! मेरे लिए यह सच्ची खबर सुनने के बाद भी झूठ के भरम में रहने के कई कारण हैं. पहला तो यही कि 54 की उम्र भी जाने की कोई उम्र होती है?


यह बात और है कि श्रीदेवी ने मेरे जन्म से 3 वर्ष पहले 1967 में ही एक बाल कलाकार के तौर पर अपने अभिनय कैरियर की शुरुआत कर दी थी. लेकिन वही ऐसी पहली अभिनेत्री भी बनीं, जिसे देख कर मेरी पीढ़ी के किशोरों को अपने जवां हो जाने का एहसास हुआ था. यह उन दिनों की बात है जब हम पढ़ाई के पीरियड ना करके थिएटरों में श्रीदेवी की फिल्म ‘सदमा’ के कमलहासनी सदमे झेलते थे और उनकी ‘सुरमई अंखियों में’ खोए रहते थे.

हालांकि हमारी पिछली पीढ़ी ने 1979 में ही ‘सोलहवां सावन’ की मेहना को रिजेक्ट कर दिया था लेकिन जब 1983 में ‘हिम्मतवाला’ की हिम्मतवाली रेखा बंदूकवाला ने जीतेंद्र के साथ ‘नैनों में सपना, सपने में सजना’ और ‘ताकी ओ ताकी’ वाले आइकॉनिक नृत्य किए तो अगली-पिछली पीढ़ी के तमाम सिनेप्रेमी जीतेंद्र के रकीब (दुश्मन) बन बैठे. उन्हें मंजूर नहीं हुआ कि श्रीदेवी के साथ उनके अलावा कोई और इस तरह के ‘लम्हे’ गुजारे! अब श्री के अपोजिट हर कोई अदृश्य ‘मिस्टर इंडिया’ बनना चाहता था; ‘मवाली’ भी बनना चाहता था और ‘मास्टर जी’ भी बनना चाहता था. श्री को अपने दिल का ‘तोहफा’ देना चाहता था. सीधी-सादी अंजू की जगह ‘चालबाज’ मंजू की बदमाशियों पर निसार होना चाहता था. उनके साथ ‘घर-संसार’ बसाना चाहता था और ‘मिस्टर बेचारा’ बनकर कहना चाहता था कि ‘मेरी बीवी का जवाब नहीं’!


श्रीदेवी की लोकप्रियता का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि उनके परदे पर अवतरित होते ही जो सीटियां बजनी शुरू होती थीं वे फिल्म के द इंड होने तक नहीं थमती थीं और 80 के दशक में फिल्म इंडस्ट्री का बुजुर्ग से बुजुर्ग स्टार भी उनका नायक बनना चाहता था. फिल्मी तर्ज पर पत्र-पत्रिकाओं ने उन्हें लेडी अमिताभ बच्चन का खिताब दे दिया था.

ऐसी अभिनय की देवी श्रीदेवी का अचानक दुनिया से चला जाना प्रशंसकों के दिमाग में फिल्म प्रोजेक्टर वाली रील की तरह उल्टा घूम रहा है. उनकी ‘निगाहें’ अपनी प्रिय नागिन का ‘नगीना’ ढूंढ़ रही हैं. प्रशंसकों के लिए यह ‘जुदाई’ बर्दाश्त कर पाना ख्वाबों का ‘बलिदान’ देने जैसा है. ‘खुदा गवाह’ है कि ऐसी ‘चंद्रमुखी’ बार-बार जन्म नहीं लेती.


प्रशंसक हमेशा चाहते हैं कि उनकी पसंदीदा अभिनेत्री आजीवन युवा बनी रहे. वैसे भी श्रीदेवी की काया कुछ ऐसी थी कि बोलती हुई आंखों वाला चेहरा तो किसी मासूम बच्ची जैसा था लेकिन जिस्म भरा-पूरा मादक और अभिनय उससे भी दिलकश! फिल्म के सेट पर अपने आप में खोई और कैमरा ऑन होते ही अचानक जागृत और जीवंत हो जाने वाली श्रीदेवी ने खुद को हमेशा छरहरा रखा. दिल का दौरा तो किसी को कभी भी पड़ सकता है लेकिन कौन भरोसा करेगा कि करोड़ों दिलों पर राज करने वाली चुस्त-दुरुस्त श्रीदेवी की मृत्यु हृदयाघात से हुई! वह खुद को इतना फिट रखती थीं कि अपने से वर्षों छोटी उर्मिला मातोंडकर के साथ उन्होंने ‘प्यार-व्यार करते-करते’ गाने में धमाल मचा दिया था और जल्वों के मामले में बीस ही ठहरी थीं.


याद आता है कि मार्च 2002 के दौरान वर्ली (मुंबई) स्थित नेहरू सेंटर में ‘रापा’ (रेडियो एंड टीवी एडवरटाइजिंग प्रैक्टीशनर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया लिमि.) का एक पुरस्कार वितरण समारोह था. कार्यक्रम के बाद रापा अध्यक्ष (अब स्वर्गीय) पंडित विनोद शर्मा ने मुझे विशेष अतिथि के तौर पर आमंत्रित श्रीदेवी से चलते-चलते मिलवाया था. उस बड़ी और अतिलोकप्रिय अभिनेत्री की विनम्रता और नमस्कार करने की सादा-सहज मुद्रा मुझे आज तक याद है. अपने उद्बोधन में श्रीदेवी ने अभिनेत्रियों को अभिनेताओं की ही तरह ज्यादा से ज्यादा समर्थ और सार्थक भूमिकाएं देने का विचार सामने रखा था, जो आज बरसों बाद हम फलीभूत होता देख रहे हैं. इसी से अंदाजा लगाया जा सकता है कि वह महज ‘ग्लैमर डॉल’ नहीं बल्कि एक सजग और दूरदर्शी अभिनेत्री भी थीं.


यह भी याद आता है कि दक्षिण की तमिल, मलयालम, तेलुगु और कन्नड़ भाषा की फिल्मों में काम करने के बाद बॉलीवुड में अवतरित हुई श्रीदेवी को शुरू-शुरू में हिंदी नहीं आती थी. इसी वजह से मुंबई की पत्रकार बिरादरी में शामिल ज्योति व्यंकटेश रातों-रात स्टार पत्रकार बन गए थे. तमिलभाषी होने के कारण वह श्रीदेवी का इंटरव्यू आसानी से प्राप्त कर लेते थे और हिंदी-अंग्रेजी न आने के कारण श्रीदेवी भी उन्हें प्राथमिकता देती थीं. हिंदी के मामले में श्रीदेवी की स्थिति यह थी कि अमिताभ बच्चन के साथ वाली फिल्म ‘आखिरी रास्ता’ में उनके संवाद रेखा से डब कराने पड़े थे. लेकिन उनकी लगन, मेहनत और समर्पण देखिए कि आगे चलकर उन्होंने न सिर्फ अपने संवाद हिंदी में बोलने शुरू कर दिए बल्कि यश चोपड़ा की ‘चांदनी’ का शीर्षक गीत ‘मैं तेरी चांदनी’ तक गाकर दिखाया!
फिल्म जगत की एक बड़ी हस्ती और प्रसिद्ध गीतकार अमित खन्ना याद करते हैं- “श्रीदेवी से जुड़ी अनगिनत यादें हैं. उनकी कई शूटिंगों के दौरान मेरा मिलना-जुलना होता था. शुरू-शुरू में वह काफी अंतर्मुखी थीं लेकिन बाद में उन्होंने बहुत अच्छी हिंदी और अंग्रेजी सीख ली थी. बोनी कपूर से उनकी शादी होने के बाद मेरा उनसे मिलना-जुलना और बढ़ गया था. उन्हें हाल के दिनों की बेहतरीन अभिनेत्रियों में गिना जाएगा. वे यादों में रहेंगी.”


सहमत. हमें तो उनकी हालिया फिल्म ‘मॉम’ की गहरी उदास आंखें भी भुलाए नहीं भूलेगी. वह अपनी बेटी जाह्नवी का फिल्मी कैरियर शुरू करवाने को लेकर असली मॉम की भूमिका निभाने में जुटी हुई थीं. लेकिन चंचल आंखों वाली इस हिरणी को कुदरत ने अधबीच ही अपने आगोश में ले लिया. यकीनन उनके यों चले जाने से बागों में आधी रात बोलने वाली मोरनी भी उदास होगी. RIP Sridevi !!


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