दीपिका पादुकोण की सुरक्षा बढ़ा दी गई है- चूंकि करणी सेना वाले उनकी नाक काटने के पीछे लगे हैं. दीपिका संजय लीला भंसाली की पद्मावती में टाइटिल रोल में हैं और करणी सेना वाले कहते हैं कि फिल्म में रानी को बैड लाइट में दिखाया गया है. रानी पद्मिनी (या पद्मावती) राजपूती आन-बान-शान का प्रतीक हैं. इतिहास का पात्र हैं. उनके प्रति कोई असम्मान नहीं दिखाया जा सकता.

औरत की अस्मिता की बात करते-करते, एक औरत की अस्मिता को उधेड़ने की कोशिश की जा रही है. झगड़ा कोई भी हो, किसी भी मुद्दे पर हो- अंत में औरत को ही हथियार बनाया जा रहा है. ढाल भी औरत ही है. भंसाली मोटा-मोटी चुप्पी साधे हैं. उनकी फिल्म को मुफ्त में प्रचार मिल रहा है. लड़े कोई, कटे कोई- उनका दोनों तरफ से फायदा है. पार्टियां भी मजे लूट रही हैं. ध्रुवीकरण किया जा रहा है. खेल जीतने हारने की चुनौतियों से भरा है. जो जीते, हारेगी तो औरत ही. परदे पर भी- परदे से बाहर भी.

भंसाली की बजाए निशाने पर दीपिका करणी सेना मर्दों की लड़ाई में औरत को रौंदने का फरमान जारी कर चुकी है. कहा गया है कि दीपिका नतीजा भुगतने को तैयार रहें. भंसाली को नहीं रोक पा रहे, इसलिए दीपिका से ही बदला ले लिया जाएगा. उनकी नाक काट दी जाएगी. नाक सुर्पनखा की भी कटी थी. नाक कटने से पहले सुर्पनखा मीनाक्षी कहलाती थी. दुष्टबुद्धि नाम के एक युवक से ब्याही भी थी. भाई रावण ने बहनोई का वध किया और मीनाक्षी विवधा हो गई. उसका अपराध यही थी कि उसने राम और लक्ष्मण से प्रेम निवेदन किया था. विधवा का प्रेम निवेदन करना हमें मंजूर कैसे हो सकता है. अपनी हद लांघी तो नाक काट दी गई. नाक प्रतीक थी कि सूर्पनखा पर काबू पा लिया गया. इस प्रतीक का दोबारा इस्तेमाल किया जा रहा है. दीपिका को उनकी हद बताई जा रही है. कहा जा रहा है कि वह अपनी नाक संभाल लें. उसे कभी भी काटा जा सकता है.

हर बार कटती रही है नाक

औरतें अक्सर अपने पिता, भाई, परिवार या समाज की नाक होती हैं. नाक पर मक्खी बैठी नहीं कि धड़ से काट दी जाती हैं. कभी सड़कों पर भटकने को मजबूर होती हैं, कभी जौहर में फूंकने को. राजपूती इतिहास भी जौहर की मिसालों से भरा पड़ा है. नाक कट न जाए इसलिए आग में कूदने को तैयार हो जाती थीं औरतें. जान से ज्यादा प्यारी नाक होती है. जान चली जाए पर नाक न कटे. औरत का अस्तित्व नाक से ज्यादा क्या है. दंगों में, प्रतिशोध भरे संघर्षो में, आपदाओं में आदमियों की पूरी जमात को नेस्तनाबूद करने के लिए इसी नाक पर बार-बार वार किया जाता है. 2015 में उत्तर प्रदेश में एक खाप पंचायत ने दो दलित लड़कियों के रेप का आदेश सिर्फ इसलिए दिया क्योंकि लड़कियों के भाई ने एक ‘ऊंची’ जाति की लड़की के साथ भागकर शादी कर ली थी. पिछले साल मिर्जापुर में एक लड़की के साथ गुस्से में इसलिए रेप किया गया क्योंकि उसकी मां स्थानीय चुनाव जीत गई थी. इसी साल मार्च में गुजरात के दाहोद में दो नाबालिग बच्चियों का चलती कार में बलात्कार हुआ- कारण था, उनके भाई ने शराब की अवैध बिक्री में कुछ लोगों के इनवॉल्वमेंट की जानकारी पुलिस की दी थी. डॉक्यूमेंट्री फिल्म मेकर दिव्या भारती ने जब अन्ना यूनिवर्सिटी में सिर पर मैला ढोने वालों का एक वीडियो पोस्ट किया तो उन्हें फोन पर जान से मारने की धमकियां मिलने लगीं. हर बार नाक कटती रही, औरत तार-तार होती रही. उसके उड़ते परखच्चे देखने हों तो 2016 में छपी गैरिसन्ड माइंड्स- विमेन एंड आर्म्ड कंफ्लिक्ट्स इन साउथ एशिया को पढ़ा जा सकता है. इस किताब में 12 पत्रकारों ने ऐसी बहुत सी औरतों की कहानियां रची हैं जो संघर्षों में आदमियों का तेज धार औजार बनीं.

ऐसा इसीलिए है क्योंकि औरत की इज्जत, उसकी देह और मर्द से उसके रिश्ते पर चस्पा है. खासकर मर्द की जाति और धर्म से. बेशक, उसे एक से ज्यादा लोगों से रिश्ता रखने की भी मंजूरी नहीं है. चूंकि औरत खुद का ख्याल नहीं रख सकती, इसलिए यह काम करणी सेना ने संभाल लिया है. वह पद्मावती की लड़ाई लड़ रही है. इस लड़ाई में वह किसी औरत को ही निशाना बना रही है, वह इस बात को याद ही नहीं रखना चाहती.

समाज के दिमाग में फिट है इज्जत का सॉफ्टवेयर दरअसल समाज के दिमाग में इज्जत का जो सॉफ्टवेयर फिट है, उसकी प्रोग्रामिंग ही स्त्री विरोधी है. किसी दुस्साहसी ने अपनी मनमर्जी का कदम उठाया नहीं कि हाय-तौबा मच गई. गंदली जुबान की छुरियां चलने लगीं. दीपिका पर भी निशाना साधा जा रहा है. दुष्ट दलन जारी है. दीपिका की नाक बचनी जरूरी है. एक बार ट्विटर पर किसी ने कमेंट किया था- पद्मावती खिलजी के प्रेम को स्वीकार भी कर सकती थी. पर उसने आत्महत्या को चुना. इसीलिए वह महान थी. ऐसे बयान देकर हम किसी रेप सरवाइवर को बता देते हैं कि उसने सरेंडर करके अच्छा नहीं किया. उसे महान बनना चाहिए. सती या जौहर का पूरा कॉन्सेप्ट ही इस पर बेस्ड है. हम नहीं जानते कि भंसाली की पद्मावती इस मिथक से कितनी अलग है. पर प्रस्तुति जो भी हो, औरत को न तो हथियार बनाया जाना चाहिए- न हथियार से बचने की ढाल. क्योंकि वह आपके हाथों का खिलौना नहीं है.

(नोट- उपरोक्त दिए गए विचार व आंकड़े लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. ये जरूरी नहीं कि एबीपी न्यूज ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.)