सद्गुरु: देश आम तौर पर नस्ल, धर्म, भाषा या जातीयता के आधार पर बनते और एक साथ जुड़े रहते हैं. समानता राष्ट्र निर्माण का फ़ॉर्मूला है, लेकिन भारत इस आम प्रवृत्ति को नकारता है. हमने राष्ट्र का निर्माण करने में गर्व महसूस किया, लोगों की समानता पर नहीं, बल्कि लोगों की विविधता पर. अगर आप पूरे देश में घूमें, तो हर पचास किलोमीटर पर लोगों की अलग-अलग भाषाएं और जीवनशैलियां हैं. भारत को एक मनुष्य – भारत माता के रूप में पहचाना गया, जहां ये सारे अलग- अलग हिस्से एक शरीर के अंग थे. हम उम्मीद नहीं करते कि छोटी उंगली और नाक एक ही तरह से काम करें, लेकिन वे एक साथ हैं. एक संगठित एकता थी जिसे इस संस्कृति ने बहुत सावधानी से पाला-पोसा, और एक बहुत मजबूत आध्यात्मिक धागे से बांधा.

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एक गणतंत्र का जन्म

भारत की भूमि हज़ारों सालों से एक सांस्कृतिक पहचान रही है, लेकिन 1950 में हम एक गणतंत्र बन गए. गणतंत्र इसलिए होता है क्योंकि यहां एक संविधान है जहां सारे नियम लिखे होते हैं. जब हम कहते हैं, मैं इस देश का नागरिक हूं तो एक तरह से हम कह रहे होते हैं कि हम इसके संविधान को मानेंगे. जब संविधान किसी चीज को सही या गलत कहता है, तो हम उसे मानते हैं. पहले, दुनिया पर बंदूकधारी ज़ालिमों का राज था, तो उनसे लड़ना और उन्हें मारना एक क्रांति थी. आज, लगभग पूरी दुनिया में प्रजातंत्र है. अगर आप कोई बदलाव लाना चाहते हैं, खासकर इस देश में तो आप इसे सिर्फ़ प्रजातान्त्रिक तरीके से ही ला सकते हैं. उसके लिए, हमारे पास एक ढांचा है, जिसे संविधान कहते हैं. आधुनिक प्रजातंत्र की खासियत यह है कि यह बैलेट बॉक्स के ज़रिए सत्ता बदलता है. यह एक बड़ी कामयाबी है कि हमें बिना खून-खराबे के सत्ता बदलने का, बिना हिंसा के सत्ता को खत्म करने का एक तरीका मिल गया है.

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ज्यादातर धर्मों में एक संविधान भी होता है जिसे माना जाता है कि उसे ईश्वर ने, उसकी संतान ने  या शायद उसके संदेशवाहक ने लिखा है, जिससे उस पर कोई समझौता नहीं हो सकता. अगर कोई संविधान ऐसा है जिस पर कोई समझौता नहीं हो सकता या जिसमें बदलाव नहीं हो सकता तो इसका मतलब है कि आप उसे बदल नहीं सकते. लेकिन एक राष्ट्र के संविधान में समय और सोच  के हिसाब से बदलाव किया जा सकता है क्योंकि यह हम सभी के बीच एक आम कानून को मानने का समझौता है, ताकि हम हर कदम पर टकराएं नहीं.

अगर मैं अपना संविधान लिखूं और आप अपना संविधान लिखें, तो किसी का भला नहीं होगा. अगर हम किसी देश में सबसे ज़्यादा लोगों की खुशहाली चाहते हैं, तो हमें एक ही नियम पुस्तिका के हिसाब से चलना होगा. यह बहुत ज़रूरी है क्योंकि तब हम न्याय को ज्यादा मानवीय तरीके से देख सकते हैं. हम नियम पुस्तिका को एक मार्गदर्शिका की तरह इस्तेमाल कर सकते हैं. आज हम कई तरह से यही कर रहे हैं; हम नियम पुस्तिका को एक मार्गदर्शिका की तरह देख रहे हैं और कानून को मानवीय तरीके से लागू कर रहे हैं.

भारत का संविधान

भारत के 76वें संविधान दिवस पर, यही समय है कि हम संविधान को सबके दिलो-दिमाग में बसा दें. यह बहुत ज़रूरी है क्योंकि इसी में हमारे देश की भलाई है. आज, भारत आर्थिक खुशहाली कीदहलीज पर बैठा है. जब मैं आर्थिक खुशहाली की बात करता हूं तो मैं स्टॉक मार्केट की बात नहीं कर रहा हूं. इस देश में 400 मिलियन लोग ऐसे हैं जिन्होंने अपने पूरे जीवन ठीक से खाना नहीं खाया है. अगर हम अगले 5 से 10 सालों में सही काम करते हैं, तो हम लोगों के इतने बड़े समूह को जीवनयापन के एक स्तर से दूसरे स्तर पर ले जा सकते हैं – परोपकार से नहीं बल्कि सिर्फ तरक्की से. हम दहलीज़ पर बैठे हैं और हम सही रास्ते पर हैं. समस्या यह है कि हम बहुत लंबे समय से दहलीज पर हैं. खासकर जब आप सही रास्ते पर हों, अगर आप वहां बहुत लंबे समय तक बैठे रहेंगे तो आप कुचले जाएंगे. यह जरूरी है कि हम आगे बढ़ें और तेज़ी से आगे बढ़ें. अभी बहुत कुछ करना है. चलिए इसे कर दिखाते हैं!

भारत के पचास सबसे प्रभावशाली लोगों में शामिल, सद्गुरु एक योगी, रहस्यवादी, दूरदर्शी और न्यूयॉर्क टाइम्स के बेस्टसेलिंग लेखक हैं. सद्गुरु को 2017 में भारत सरकार ने पद्म विभूषण से सम्मानित किया है, जो बेहतरीन और विशिष्ट सेवा के लिए दिया जाने वाला सबसे बड़ा सालाना नागरिक पुरस्कार है. वे दुनिया के सबसे बड़े जन आंदोलन, कॉन्शस प्लैनेट – सेव सॉइल के संस्थापक भी हैं, जिसने 4 अरब से ज़्यादा लोगों तक पहुंच बनाई है.

ऊपर लिखी गई बातों में लेखक के अपने विचार है.