नई दिल्ली : मंत्री अब लाल बत्ती की गाड़ी का इस्तेमाल नहीं कर सकेंगे. मंत्री क्या, प्रधानमंत्री से लेकर राष्ट्रपति और मुख्यमंत्री तक को बिना लाल बत्ती की गाड़ी में ही सफर करना पड़ेगा. प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की इस नई पहल का देश भर में चौतरफा स्वागत हो रहा है. अब गाड़ी से लाल बत्ती उतरने से न तो मंहगाई दर कम होने वाली है और न ही बेरोजगारों को रोजगार मिलने वाला है. लेकिन लोग खुश हैं.
सोशल मीडिया पर इस खुशी को बांटते बंटते देखा जा सकता है. वैसे लाल बत्ती की गाड़ी से रौब डालने में सरकारी अफसर सबसे आगे रहते हैं. लेकिन लोगों को गुस्सा नेताजी की गाड़ी पर लाल बत्ती देख कर ऐसे भड़कता है जैसे सांड लाल कपड़े को देखकर भड़कता है. मोदीजी ने पहली बार नेताओं के सुविधाओं के पर नहीं कतरे हैं. वह दसियों बार कह चुके हैं कि नेताओं को अपना काम पूरी ईमानदारी के साथ करना चाहिए, फाइलों को जल्दी निपटाना चाहिए, काम में पूरी पारदर्शिता होनी चाहिए और अपने इलाके का दौरा लगातार करते रहना चाहिए. मोदी जी कह चुके हैं कि न खाउंगा, न खाने दूंगा. मोदी जी दावा करते हैं कि उन्होंने कभी एक दिन की भी छुटटी नहीं ली. मोदी जी रातदिन काम में जुटे रहते हैं. मोदी जी सांसदों को भी आगाह कर चुके हैं कि सत्र चलने के दौरान पूरे समय सदन में बैठना है. वह चेतावनी दे चुके हैं कि किसी भी सांसद से किसी भी समय पूछ सकते हैं कि सदन में क्या चल रहा है, किस विषय पर बहस हो रही है और उसमें सांसद महोदय का क्या योगदान रहा है. यह सब बताने का मतलब यही है कि देश में राजनीति बदल बदल रही है. देश में नई तरह की राजनीति हो रही है. अब तक माना जाता रहा है कि चुनाव जीतने के बाद मंत्री पद की शपथ के साथ ही नेताजी आराम फरमाने लगते हैं. घर पर जब भी फोन करो तो यही जवाब मिलता है कि मंत्रीजी बाथरुम में हैं. हूटर बजाती लाल बत्ती की गाड़ी के आगे पुलिस की जीप. चौराहे पर खड़ी जनता. चुनावी सभा हो या मंत्रालय की बैठक हो या फिर जनता दरबार...हर जगह देर से पहुंचना. मंत्रीजी खाते हुए, मंत्रीजी सुस्ताते हुए, मंत्रीजी डपटते हुए, मंत्रीजी विदेश दौरे से आते हुए या जाते हुए. मंत्रीजी के साथ चमचों का घेरा. ऐसे द्श्य कभी आम हुआ करते थे. लेकिन अब मंत्रीजी को सुबह समय पर दफ्तर आना है, शाम देर तक बैठना है, फाइलों को अटकाना नहीं है, इलाके का दौरा करते रहना है और लोगों की सेवा करनी है. यानि कुल मिलाकर नेतागीरी करना अब तफरीह का काम नहीं रहा है. अब पांच साल की नौकरी है विधायक या सांसद या मंत्री या मुख्यमंत्री या प्रधानमंत्री बनना.(नोट- उपरोक्त दिए गए विचार व आकड़ें लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. ये जरूरी नहीं कि एबीपी न्यूज ग्रुप सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है)