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'किसान पुत्र' शिवराज बताएं आखिर किसान क्या करें जो उसे जान न गंवानी पड़े

“उत्तम खेती मध्यम बाम। निषिद चाकरी भीख निदान।। कवि घाघ ने अपनी इन पंक्तियों में कृषि की महिमा का गुणगान किया है, कवि घाघ करते है कि खेती सबसे अच्छा कार्य है. व्यापार मध्यम है,नौकरी निषिद्ध और भीख माँगना सबसे बुरा काम है.“

शायद ऐसा गुणगान इसलिए क्योंकि हमारा देश कृषि प्रधान देश कहलाता है. लेकिन वर्तमान परिदृश्य में इसके उलट किसान देश में सबसे दयनीय स्थिति में है. बात देश में सबसे अधिक कृषि विकास दर वाले राज्य की करें तो मध्यप्रदेश पिछले पाँच सालों से कृषि क्षेत्र का सबसे प्रतिष्ठित पुरस्कार कृषि कर्मण अवार्ड जीतता आ रहा है. मध्यप्रदेश की कृषि विकास दर लगभग 25 फीसदी के साथ देश में सबसे अधिक है. मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान हमेशा अपने भाषणों में कृषि को लाभ का धंधा बनाने की बात कहते है और उसके लिए वह भरकस प्रयास भी करते है. लेकिन तमाम प्रयासों के बावजूद भी प्रदेश में किसान आत्महत्या करने को मजबूर हैं.

कृषि अवार्ड जीतने वाले राज्य में खुदकुशी क्यों प्रदेश विधानसभा में कांग्रेस के वरिष्ठ विधायक रामनिवास रावत के प्रश्न के उत्तर में प्रदेश सरकार ने लिखित तौर पर आंकड़े उपलब्ध कराए. आंकड़ों के मुताबिक 16 नवंबर 2016 से इस वर्ष फरवरी तक साढ़े तीन महीने में 106 किसानों और 181 कृषि मजदूरों ने खुदकुशी की है. वही पिछले दिसंबर में मध्य प्रदेश विधानसभा के शीतकालीन सत्र के दौरान रावत के प्रश्न पर सरकार ने जानकारी दी थी कि एक जुलाई 2016 से 15 नवंबर 2016 तक 531 किसानों और कृषि मजदूरों ने प्रदेश में खुदकुशी की. इस प्रकार पिछले वर्ष एक जुलाई से अब तक की अवधि के दौरान प्रदेश में कुल 818 किसान और कृषि मजदूरों ने खुदकुशी की है।.

आखिर सीएम शिवराज सिंह चौहान जो अपने आप को किसान पुत्र कहते नहीं थकते उनके राज में किसान आखिर मौत को गले क्यों लगा रहे है यह एक यक्ष प्रश्न है. जबकि प्रदेश की कृषि विकास दर देश में सबसे अधिक है जिसके अनुसार यहाँ के किसान को समृद्ध होना चाहिए बावजूद इसके किसान आंदोलनों की राह पकड़ रहा है. सड़कों पर सब्जियां फेंक कर, दूध बहाकर अपने आक्रोश को प्रकट कर रहा है.

 सड़कों पर क्यों है आम किसान अब प्रदेश का किसान उन किसान संगठनों से भी दूरियाँ बना रहा है जो या आरएसएस से जुड़े संगठनों में से एक है या फिर भारतीय जनता पार्टी का कोई मोर्चा. इसके पीछे का सच यह है कि यह किसान संगठन कही न कही सरकार के इशारे पर काम करते हुए नज़र आते है. दिखावे के लिए तो यह सरकार का विरोध करते है लेकिन बाद में एक ही मंच पर आकर सरकार की हां में हां मिलाने का काम करने लगते है. यही कारण है कि अब आम किसान इन संगठनों से उबकर स्वयं सड़कों पर उतर आया है.

किसानों की बढ़ती खुदकुशी दूसरी तरफ पूरे देश में किसान आत्महत्याओं पर नज़र दौड़ाए तो राष्ट्रीय अपराध रिकार्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) के ताजा आंकड़ों के मुताबिक, किसान आत्महत्याओं में 42% की बढ़ोतरी हुई है. आत्महत्या के सबसे ज्यादा मामले महाराष्ट्र में सामने आए. 30 दिसंबर 2016 को जारी एनसीआरबी की रिपोर्ट 'एक्सिडेंटल डेथ्स एंड सुसाइड इन इंडिया 2015' के मुताबिक साल 2015 में 12,602 किसानों और खेती से जुड़े मजदूरों ने आत्महत्या की है. एनसीआरबी की इस रिपोर्ट को देखें तो साल 2014 में 12,360 किसानों और खेती से जुड़े मजदूरों ने खुदकुशी कर ली. ये संख्या 2015 में बढ़ कर 12,602 हो गई. 2014 के मुकाबले 2015 में किसानों और खेती से जुड़े मजदूरों की आत्महत्या में 2 फीसदी बढ़ोतरी हुई.

वहीं इन मौतों में करीब 87.5 फीसदी केवल सात राज्यों में ही हुई हैं. जिसमें मध्यप्रदेश चौथे नम्बर पर है. साल 2015 में महाराष्ट्र में 4,291, कर्नाटक में 1,569, तेलंगाना 1400, मध्य प्रदेश1290, छत्तीसगढ़ 954, आंध्र प्रदेश 916 और तमिलनाडु में 606 किसानों ने आत्महत्या कर ली.

स्वामीनाथन आयोग की रिपोर्ट पर चुप्पी

यह तो सरकारी आंकडे हैं जो सरकारी फाईलों में दर्ज है लेकिन देश के किसानों की आत्महत्या की दर इससे कही अधिक है. स्वामीनाथन आयोग की जिस रिपोर्ट को लागू करने का वादा कर बीजेपी सत्ता में आई थी. वह यूपीए सरकार की तरह उसे पूरा करने में असफल रही. स्वामीनाथन आयोग की सिफारिशों के अनुसार किसानों को फसल लागत मूल्य से 50 प्रतिशत अधिक न्यूनतम समर्थन मूल्य दिया जाना था लेकिन एनडीए की मोदी सरकार अभी तक इसे लागू नहीं कर पायी है. एम.एस.स्वामी नाथन ने अपनी रिपोर्ट में 32 सुझाव सरकार को दिए थे जिसकी रिपोर्ट 2007 में यूपीए की मनमोहन सरकार को सौंपी गई थी.

समर्थन मूल्य को लेकर लामबंद किसान

कुल मिलाकर मामला किसानों की फसलों के समर्थन मूल्य से जुड़ा है जिसको लेकर पूरे देश का किसान लामबंद होता दिख रहा है. मध्यप्रदेश में भी शिवराज सिंह चौहान के लिए अब किसान आंदोलन सिर दर्द बनते जा रहे है. भारतीय किसान संघ जैसे किसान संगठनों से शिवराज सरकार की बात होने के बावजूद भी मंदसौर में मंगलवार को आंदोलित किसानों पर गोलियां चलाई गई जिसमें 6 किसानों की मौत हो गई.अब शिवराज सरकार किसानों की मौत का ठिकरा विपक्षी दल कांग्रेस पर फोड़ने में लगी है. 'किसान पुत्र' शिवराज बताएं आय बढ़ाने की तकनीक हालंकि सरकार ने किसानों की गोली लगने से मौत की न्यायिक जाँच के आदेश दे दिए है और मुआवजे की घोषणा कर दी है. लेकिन सीएम शिवराज सिंह चौहान जो कि अपने आपको किसान पुत्र कहते है और खुद को किसान मानते हुए अपने फार्म हाउस से लाखों रूपए कृषि से कमाने की बात कहते फिरते हैं. उस तकनीक को किसानों को बताने की जहमद उठाएगें ताकि प्रदेश का किसान अंदोलन की राह पर न चलकर कृषि से अपनी आय दोगुनी कर सके और उसे अपनी जान भी न गवानी पड़े.

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