तुलसीदास के राम अनोखे हैं. यह राम लोगों के ज्यादा करीब हैं. तुलसी के राम मोहक हैं. वह आध्यात्मिक हैं, आत्मीय हैं, चमत्कार दिखाते हैं, लोगों को लुभाते हैं.  यह लोक लुभावन राम हैं. यह वाल्मीकि की कल्पना से भिन्न हैं. वाल्मीकि ने राम के चरित्र को सीता की आंखों से देखा था. इसीलिए शायद वे बाल्यावस्था के बाद युवावस्था में ऋषि विश्वामित्र के आश्रम की रक्षा में ताड़का वध करते सामने आते हैं. एक वीर बालक जो अस्त्रविद्या जानता है और पीड़ित मुनियों को दुष्टों से बचाता है. एक राजपुत्र जो सबका ख्याल रखता है. एक ऐसा युवा जो राजनेता बनते हुए दिखता है. वह पिता के आज्ञाकारी पुत्र हैं. जन्म के बाद राम की पहली उपस्थिति उनकी युवावस्था में होती है. सामान्य रूप से यह माना जाता है कि सीता ने ही राम की गाथा वाल्मीकि को सुनाई थी. उनका चित्रण इसीलिए बाल-राम से ज्यादा किशोर और युवा राम का है.


तुलसी के राम अलग


जिस राम को तुलसी ने सृजित किया उनमें लालित्य है, वे मोहक हैं, वे आकर्षक हैं, सबको मुग्ध करते हैं. एक उपासक अपने आराध्य को अपने तरीके से चित्रित करते है. यह राम सामान्य तौर पर अन्य रामकथा से अलग चित्रित है. तुलसी के राम आकर्षक हैं और सूरदास के कृष्ण जैसे ठुमकते हुए दिखते है. तुलसीदास ने कृष्ण-लीला की विशेषताओं को अपनी रामायण में लागू किया. यह बालगोपाल राम, बाल कृष्ण की तरह हैं. यहीं से हमें प्रतिष्ठित गीत, ठुमक चलत रामचन्द्र, बाजत पैंजनिया मिला. यह कृष्ण-लीला के प्रभाव के अतिरिक्त और क्या है? तुलसीदास में राम कोमलता के प्रतीक हैं. उनकी रामायण में अस्त्र-शस्त्रों की झंकार कम है. तुलसीदास को अपने राम के योद्धा स्वरुप की तुलना में राम के साथ  भक्तों के मिलन पर भरोसा है. कौशल्या, राम के “ठुमक चलत रामचंद्र बाजत पैजनिया” से न खुद मोहित होती है, भक्त मंडली भी आह्लादित होती है. उनके राम धनुर्भंग से पहले सीता को देखते है और आकर्षित होते हैं. तुलसी सिर्फ एक कथावाचक नहीं है. वे सामाजिक हैं और पारिवारिक संबंधों को निर्दिष्ट ही नहीं करते हैं, उसे वर्णित भी करते है. राम आदर्श पुत्र के रूप में खड़े हैं, जो अपने पिता की खातिर 14 साल के लिए वनवास जाते हैं. वह आज्ञाकारिता और कर्तव्य के मूल्यों का प्रतिनिधित्व करते हैं. लक्ष्मण एक आदर्श भाई के रूप में खड़े हैं, जो अपने बड़े भाई के लिए कुछ भी करने को तैयार हैं. सीता आदर्श पत्नी, पवित्रता का प्रतीक हैं. संयुक्त परिवारों को बांधने के मूल्य  तुलसीदास को भाते हैं. 



तुलसी की रामकथा सरस और सरल


तुलसीदास ने रामचरितमानस में राम कथा को अत्यन्त सरलता और रसभरे ढंग से प्रस्तुत किया. उनकी कविताएं धर्म, नैतिकता, और प्रेम के सुंदर संगम को दर्शाती हैं जो भारतीय समाज को प्रेरित करती हैं. राम भक्ति और भक्ति के माध्यम से सामाजिक निर्माण की दिशा में योगदान किया, जो आज भी लोगों को प्रभावित कर रहा है. तुलसीदास का रामचरित मानस, जो हिंदी भाषी क्षेत्रों को बांधता है, भक्ति या भक्ति केंद्रित है. राम अपने भक्तों के प्रति समर्पित हैं. रामराज्य की विधि या धर्म सम्मत मर्यादा की अवधारणा केवल राजा या शासक के कर्तव्यों का विचार नहीं है, अपितु एक ऐसी समग्र राज्य व्यवस्था की निर्मिति है जिसमें सामाजिक जीवन का प्रत्येक कोना धर्म के चार चरणों- सत्य, सोच, दया और दान पर अवलंबित होता है. यह एक ऐसी चतुष्पाद व्यवस्था है जो राज्य और समाज के सभी आधारभूत घटकों को सच्ची श्रद्धा से ओत-प्रोत करते हुए सबकी स्वतंत्रता सुनिश्चित करती है. यह एक ऐसा ईश्वरीय राज्य है जो सभी प्रकार की पीड़ा से मुक्त है, जहां सर्वत्र भद्र और कल्याणकारी लोग दीखते है.


मानस में ब्राह्मण ही नहीं वानर, भालू भी चरित्रवान हैं. वनवासी, आदिवासी श्रेष्ठ हैं. अयोध्या से निकलते ही राम की पहली मुलाकात निषाद से होती है. पिछड़ों से होती है. निषाद उनका स्वागत करते हैं. वन में राम की भेंट आदिवासियों और वनवासियों से होती है.  भील जाति की शबरी उनके लिए पूजनीय हैं. अनुसुईया पूज्य हैं. शूर्पणखा ब्राह्मण है, राम ने उसकी क्या गति की? मनुष्य तो मनुष्य, उनके यहां वानर भी पूज्य हैं. आज तुलसीदास के राम ही आदर्श है. उन के बाल राम ही अयोध्या में हैं और वही देश में सबके प्रिय हैं. पूरा देश उन्ही की शरण में है और एक नई क्रांति लाने की कोशिश में है. इसमें अयोध्या का कायाकल्प हो रहा और देश कायाकल्प का इंतजार कर रहा है.


जय सिया राम.


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