Raj Ki Baat: लखीमपुर खीरी में जो हुआ, वह काला अध्याय है. लोगों को रौंदती थार और लाठियों के प्रहार से फूटती खून की धार. उत्तर प्रदेश में किसान आंदोलन के दौरान लखीमपुर खीरी से पूरे देश ने जिस तरह के दृश्य देखे हैं उनको जल्दी भूल पाना मुश्किल होगा. बीजेपी की केंद्र और राज्य सरकार दोनों ही विपक्ष के निशाने पर हैं. वहीं, बीजेपी रक्षात्मक होने के बजाय आक्रामक है और कह रही है कि अराजकता किसानों के नाम पर बैठे लोगों ने की. इस आरोप-प्रत्यारोप के बीच में एक सबसे बड़ा राज बना हुआ है कि आखिर केंद्र सरकार के लिए किसान आंदोलन में मुसीबत का सबब बने भारतीय किसान यूनियन के नेता राकेश टिकैत कैसे इस मुद्दे पर यूपी सरकार या प्रशासन के संकटमोचक बन गए?


राज की बात में हम आपको बताएं कि कौन है वो चेहरा जो टिकैत को लखीमपुर खीरी लाकर असंतोष की आग बुझाने में कामयाब रहा, उससे पहले आपको करीब आठ महीने पीछे ले चलते हैं. जब 26 जनवरी को गणतंत्र दिवस के दिन किसान आंदोलन के नाम पर दिल्ली में अराजकता का तांडव हुआ था. लालकिले की आबरू को जख्मी किया गया था. गणतंत्र दिवस के दिन संविधान और कानून को शर्मसार करने वाली घटनायें हुईं थीं. इस पूरे घटनाक्रम के बाद किसान आंदोलन पूरी तरह से अपनी विश्सवनीयता और संदर्भ खो चुका था.


उस समय गाजीपुर बार्डर पर राकेश टिकैत के आंसुओं ने किसान आंदोलन में जान भर दी. मुजफ्फरनगर की किसान पंचायत के बाद टिकैत वास्तव में पूरे किसान आंदोलन का चेहरा बन गया. जिस पश्चिमी उत्तर प्रदेश में उनके राजनीतिक भविष्य पर सवाल थे, वह जाटलैंड तो उनके साथ खड़ी हुई ही, साथ ही हरियाणा और सबसे बड़ी बात पंजाब के किसान संगठनों का भी पूरा बल टिकैत को मिला.


पश्चिम बंगाल के विधानसभा चुनावों में बीजेपी के खिलाफ प्रचार से लेकर हर जगह बीजेपी के सामने परेशानी बने खड़े राकेश टिकैत ने लखीमपुर खीरी में लगी आग को बुझाने में उत्तर प्रदेश सरकार की बड़ी मदद की. जिस समय किसानों को थार से कुचलने का वीडियो आया और बीजेपी कार्यकर्ताओं की लाठियों से पीट-पीटकर मारने के दृश्य, तब माहौल काफी तनावपूर्ण था. जीप से कुचलकर मरे किसानों के शवों का अंतिम संस्कार करने से आंदोलनकारियों ने मना कर दिया और शव वहीं लेकर बैठ गए. उस समय एडीजी कानून व्यवस्था प्रशांत कुमार के साथ राकेश टिकैत लखीमपुर खीरी पहुंचे और आंदोलनकारियों और परिजनों से बातचीत कर शवों के अंतिम संस्कार के लिए सहमति बनवाई.


जिस तरह से लखीमपुर खीरी से लेकर तराई बेल्ट और अवध के सीमावर्ती इलाकों में इस तनाव की रेखाएं खिंचती दिख रही थीं, उस समय यह घटनाक्रम काफी अहम था. पुलिस के साथ टिकैत प्रगट हुए और दोषियों की गिरफ्तारी को लेकर 10 दिन का समय और मृतकों के परिजनों को 45-45 लाख रुपये मुआवजे और आश्रित को सरकारी नौकरी की पेशकश हुई. इसके बाद मृतकों का अंतिम संस्कार हुआ. कानून-व्यवस्था और मानवता की दृष्टि से टिकैत का इस तरह से सक्रिय होना बेहतर रहा. हालांकि, आंदोलन को और बढ़ाने के पैरोकार और बुद्धिजीवियों ने टिकैत के इस रुख पर सवाल भी खड़े करने शुरू कर दिए. हालांकि, टिकैत ने मानवता का तकाजा बताते हुए सभी का इसे सामूहिक फैसला करार देते हुए सबके जवाब भी दिए.


इसके बावजूद यूपी सरकार के संकटमोचक टिकैत क्यों बने और उनके अगले कदमों को लेकर क्या होगा, इसको लेकर राज गहराता ही गया. तो राज की बात में हम आपको बताते हैं कि कैसे टिकैत को इस समस्या से उबरने में योगी सरकार सफल हुई. राज की बात ये है कि टिकैत को किसी भी तरह अंतिम संस्कार के लिए परिजनों को मनाने का भगीरथी काम उत्तर प्रदेश के पुलिस महानिदेशक मुकुल गोयल ने किया. आपको लग रहा होगा कि खांटी राजनेता जो काम न कर सके, वह आईपीएस अफसर कैसे कर गए? तो इस राज से भी परदा उठाते हैं.


दरअसल, 1987 बैच के आईपीएस अधिकारी मुकुल गोयल खुद भी टिकैत के गृह जिले मुजफ्फरनगर से ही हैं. बात सिर्फ इतनी ही नहीं है, जब 2013 में उत्तर प्रदेश में मुजफ्फरनगर के दंगे हुए थे, उस समय मुकुल गोयल बरेली के पुलिस महानिरीक्षक थे. मगर दंगों के बाद जब हालात बिगड़े तो उस समय तत्कालीन एडीजी कानून व्यवस्था अरुण कुमार को हटाकर मुकुल गोयल को जिम्मेदारी सौंप दी गई थी. राज की बात ये है कि उस समय शांति व्यवस्था तो बनाने में गोयल सफल हुए थे लेकिन टिकैत भी उनसे उपकृत थे. उन्हीं संबंधों के आधार पर गोयल ने बिना सामने आए परदे के पीछे से टिकैत को इस संकट का समाधान निकालने के लिए तैयार किया.


राज की बात ये भी कि टिकैत ने कार्रवाई के साथ-साथ किसानों को बड़ा मुआवजा देने के लिए भी शर्त रखी थी, ताकि आंदोलनकारियों के बीच उनकी विश्वसनीयता बनी रहे. हालांकि, टिकैत के करीबियों का दावा है कि गृहमंत्री अमित शाह ने फोन कर भारतीय किसान यूनियन के नेता को इस समस्या के समाधान के लिए तैयार किया. लेकिन हमारे सूत्र गृह मंत्री की टिकैत से बात होने की पुष्टि नहीं करते. अलबत्ता, गोयल का परदे के पीछे पूरा स्टेज तैयार करने की बात सामने आई. और एक अहम बात कि टिकैत आरएलडी के हिस्से की सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारेंगे और खुद तृणमूल के टिकट पर समाजवादी पार्टी-राष्ट्रीय लोक दल गठबंधन के उम्मीदवार हो सकते हैं.


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