Raaj Ki Baat: आस्था की गंगा और विकास की क्रांति. इन दो पटरियों पर यूपी में बीजेपी का पूरी चुनावी अभियान टिका है. राममंदिर और विश्नवाथ धाम से सनातन धर्मावलंबियों के दिल मे जगह बीजेपी ने बना रखी है, लेकिन उसे मालूम है कि 'भूखे भजन न होए गोपाला' मतलब भूखे पेट धर्म नहीं समझ आता. इसीलिए विकास को लेकर उठने वाले सवालों का जवाब भी बीजेपी पूरी आक्रामकता से देगी. राज की बात बीजेपी की इसी रणनीति पर. पीएम मोदी ने देश की सबसे बड़ी दूध विपणन कम्पनी अमूल के मेगा प्लांट का उद्घाटन करने यूपी पहुंचे.


गुजरात से शुरू हुई अमूल की यात्रा भारत में श्वेत क्रांति की कामयाबी कहानी है, बल्कि यह दुनिया की शीर्ष 20 डेयरी कम्पनियों में भी शामिल है. मगर अब इस कम्पनी की पहचान का एक नया पड़ाव यूपी की भी पहचान बनाएगा जो बीते कुछ सालों में देश का बड़ा दूध उत्पादक राज्य बना है.


विश्वनाथ कॉरिडोर से लेकर करोड़ों रुपए की लागत से बने अमूल के डेयरी संयंत्र का उद्घाटन सियासी टाइमिंग को देखकर हो रहा है. क्योंकि देश का सबसे बड़ा सूबा उत्तर प्रदेश चुनावी संग्राम का अखाड़ा बन चुका है जिसमें बीजेपी के योद्धा, धर्म और विकास के डबल इंजन के साथ अपनी गाड़ी को सत्ता के स्टेशन तक पहुंचाने में जुटे हैं.


यही वजह है कि एक तरह अयोध्या के बाद काशी मथुरा जैसे मुद्दों को हवा दी जा रही है तो वहीं यूपी को आर्थिक संभावनाएं के सूबे की पेश करने की भी कवायद तेज है. केवल देश में ही नहीं दुनिया के मंच पर भी उत्तर प्रदेश का निवेश आकर्षण बढ़ाने का काम हो रहा है. यानि बीजेपी अतीत की नींव को मजबूत करने के साथ ही शानदार शिखर तक ले जाने के सपने को भी जनता के सामने परोस रही है.


आम और अमरूद जैसे फलों के लिए मशहूर यूपी को दुनिया के फूड प्रोसेसिंग मैप पर जगह दिलवाने की कोशिश हो रही है. इसके लिए पेप्सी, कोकाकोला जैसी बहुराष्ट्रीय कम्पनियों के साथ निवेश समझौते हुए हैं. इस कड़ी में ही यूपी राज्य औद्योगिक विकास प्राधिकरण ने पीलीभीत और चित्रकूट में हज़ारों करोड़ रुपये की फ़ूड प्रोसेसिंग परियोजनाओं को हरीझंडी दी है.


पीलीभीत में यूके की कंपनी एबी मौरी को 1100 करोड़ की लागत से फूड प्रोसेसिंग संयंत्र स्थपित करने के लिए जमीन आवंटित की गई है. वहीं यह ब्रिटिश कम्पनी बुंदेलखंड के चित्रकूट में 400 करोड़ की लागत से संयंत्र स्थापित करने जा रही है. इससे करीब 10 हज़ार लोगों के लिए रोजगार अवसर का लक्ष्य रखा है.


दुनिया के मंच पर भारत के निवेश अवसरों की मार्केटिंग करने वाली सरकारी संस्था इन्वेस्ट इंडिया, इन दिनों यूपी को इन्वेस्टमेंट डेस्टिनेशन की तरह दिखाने में जुटी है. इन्वेस्ट इंडिया के मुताबिक यूपी भारत में तीसरे नम्बर पर सबसे ज़्यादा जीडीपी रखने वाला सूबा है और दुनिया के निवेशकों के लिए यहां चल रही 993 परियोजनाओं में 126 अरब डॉलर यानि करीब 9 लाख 45 हज़ार करोड़ रुपए से अधिक की निवेश संभावनाएं हैं. इतना ही नहीं यूपी में साल 2020-21 के दौरान 16 अरब डॉलर से अधिक के निर्यात आंकड़ों के साथ भी निवेशको को लुभाने की कोशिश है.


ज़ाहिर है यहां कवायद उत्तर प्रदेश की छवि बदलने की भी है. ताकि दुनिया में आबादी के लिहाज़ से जर्मनी, यूके और फ्रांस की कुल जनसंख्या से बराबरी रखने वाली सूबे की छवि एक आधुनिक राज्य की भी बने. इसके लिए डेटा प्रोसेसिंग, ड्रोन, आईटी उत्पाद व सेवाओं के क्षेत्र में निवेश को तवज्जो दी जा रही है.


बीते कुछ महीनों में सिंगापुर की कम्पनी एसटी टेलेमीडिया ग्लोबल डेटा सेंटर ने गौतम बुद्ध नगर में बड़ा डेटा सेंटर बनाने का ऐलान किया है. वहीं अमेरिका की माइक्रोसॉफ्ट और जापानी कम्पनी NTT पहले ही अपने डेटा सेंटर लगाने की कवायद शुरू कर चुकी हैं. स्वाभाविक तौर पर यह बात सब समझ रहे हैं कि सूचना प्रौद्योगिकी के इस दौर में डेटा ही नया सोना है और इसे यूपी को भी नहीं खोना है.


इसके अलावा डिफेंस कॉरिडोर के सहारे यूपी को हाई वैल्यू रक्षा उत्पादों के मैन्यूफैक्चरिंग मैप पर लाने की भी कोशिश हो रही है. अमेठी में भारत और रूस की साझेदारी में बनने वाली AK203 राइफलें जब दुनिया के अन्य देशों में जाएंगी तो अपना पता भी बताएंगी. वहीं 28 दिसम्बर को रक्षा मंत्री ब्रह्मोस मिसाइल की जिस नई रिसर्च फेसेलिटी का उद्घाटन करेंगे उससे न केवल इस मिसाइल की क्षमता बढ़ेगी बल्कि निवेश संभावनाएं भी बढ़ेंगी.


हालांकि, यूपी की  निवेश संभावनाओं की राह में एक बड़ा रोड़ा अब तक सत्ता के समीकरण भी रहे. यानि केंद्र और राज्य की सरकारों की सियासी धुरियां. बीते तीन दशकों के दौरान जब केंद्र में कॉंग्रेस की अगुवाई वाले यूपीए या भाजपा नेतृत्व वाले एनडीए की सरकार रही तो सूबे में कभी सपा तो कभी बसपा का शासन रहा. साथ ही कनून व्यवस्था की मुश्किलों का 'हिस्ट्री शीटर' इतिहास भी यूपी के चेहरे को बदनाम करता रहा. इसने उत्तर प्रदेश के विकास और अंतरराष्ट्रीय विवश की गाड़ी पर अक्सर ब्रेक ही लगाया. मगर 2017 के बाद केंद्र और राज्य की सत्ता में एक साथ काबिज होने वाली बीजेपी ने इसके सहारे निवेशकों के आगे नीतियों के स्थायित्व और सहूलियत का इश्तेहार परोसने की कोशिश की है.


बहरहाल, दुनिया में यूपी की निवेश संभावनाओं के चमकीले इश्तेहार देख रहे निवेशक भी फिलहाल भारत की राजनीति पर बड़ा दबदबा रखने वाले सूबे के सियासी संग्राम पर नज़रें लगाए हैं. निवेश के चेक साइन करने के साथ साथ इस बात पर नज़र लाज़िमी तौर पर होगी कि सत्ता का ऊंट किस करवट बैठता है. क्योंकि इस सूबे के आधुनिक चुनावी इतिहास का यह भी एक सच है कि इसने किसी भी मुख्यमंत्री को लगातार दूसरी बार मौका नहीं दिया है. अब योगी की तपस्या इस ट्रेंड को तोड़ेगी या सत्ता की कुर्सी कलेवर बदलेगी इसका जवाब भारत की 20 करोड़ से अधिक आबादी का घर कहलाने वाले यूपी की छवि और आमदनी दोनों तय करेगा.



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