प्रधानमंत्री लगातार दसवीं बार लाल किले की प्राचीर से देश को संबोधित कर रहे होंगे. साथ ही, अब आम चुनाव की भी उल्टी गिनती शुरू हो चुकी है. यह 2024 के चुनाव का भी आगाज ही समझिए. इस भाषण में इसीलिए देश के मुद्दों के साथ ही चुनावी मसले भी रहेंगे. क्या कुछ बोल सकते हैं प्रधानमंत्री और देश की जनता को उनसे क्या अपेक्षाएं रखनी चाहिए? 

Continues below advertisement

सभी मसलों को छुएंगे प्रधानमंत्री

एक परंपरा यह रही है कि राष्ट्र के नाम संबोधन में राष्ट्र के नाम बातें ज्यादा होती हैं, तो उन्हीं बातों की अपेक्षा भी ज्यादा करनी चाहिए. हालांकि, उसमें बहुत सारे चुनावी मुद्दे भी जोड़ दिए जाते हैं. इसके साथ ही विदेशी फ्रंट पर किए कार्य भी गिनाए जाते हैं. इस साल संयोग ये है कि भारत जी20 की अध्य क्षता कर रहा है. यह दुनिया का बहुत महत्वपूर्ण आर्थिक मंच है औऱ इसको भारत सरकार अपने तईं पूरा प्रचारित भी कर रही है, तमाम प्रतिनिधिमंडलों से मिल रही है. एक संयोग ये भी है कि अगले ही महीने सितंबर में जी20 का शिखर सम्मेलन भी होने वाला है. अभी जैसे अविश्वास प्रस्ताव पर जैसे हमने देखा। प्रधानमंत्री ने अपने नौ साल के कार्यकाल का पूरा ब्योरा रखा, उपलब्धियों को गिनाया. तो, लाल किले से भी बहुतेरी उपलब्धियां गिनाने की होंगी. वह गिनवाने के साथ ही मोदी यह भी बताएंगे कि जो काम बचे रह गए हैं या जो बीच रास्ते में हैं, उनको पूरा करने के लिए एक और मौका उन्हें चाहिए. अपरोक्ष रूप से वह इसके लिए भी मौका तलाश सकते हैं.

Continues below advertisement

विदेश से घरेलू नीति तक की होगी बड़ाई

भारतीय विदेश नीति का गुणगान अक्सर ही किया जाता है, खासकर रक्षा को लेकर बहुतेरे दावे-प्रतिदावे होते हैं. उनका भी जिक्र होगा. अविश्वास प्रस्ताव के दौरान सरकार की तरफ से कई मंत्रियों ने इस बात को बहुत बधाई दी है, ग्लोरिफाई किया है इस बात को कि भारतीय अर्थव्यवस्था अभी कहां है? मोदी के पदभार संभालने के समय 11 वीं अर्थव्यवस्था होने से दुनिया की पांचवी बड़ी अर्थव्यवस्था बनने तक की यात्रा को जाहिर तौर पर पीएम याद करेंगे. आने वाले दिनों में दुनिया की तीसरी बड़ी अर्थव्यवस्था बनाने के लिए उनको और बीजेपी को एक मौका चाहिए, इसकी भी बात हो सकती है. इस तरह की तमाम बातें होंगी. नयी शिक्षा नीति का जिक्र होगा. कैसे मातृभाषा पर जोर दिया जा रहा है, उस पर बात कर सकते हैं. अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष और विश्व बैंक की रिपोर्ट्स का हवाला देते हुए भारत से साढ़े 13 करोड़ लोगों को करीबी रेखा से ऊपर उठाने का भी जिक्र होगा. 

मणिपुर का हो सकता है जिक्र

प्रधानमंत्री अपने भाषण में मणिपुर की बात करें, यह भी संभव है. अविश्वास प्रस्ताव के दौरान बोलते हुए वह मणिपुर पर शायद खुद को पूरी तरह अभिव्यक्त नहीं कर पाए थे और मणिपुर को लेकर अंतरराष्ट्रीय निगाहें भी हैं, तो इस बहाने भी शायद बोलें. फिर उससे जुड़ा एक अंतरराष्ट्रीय मसला भी है, जिस पर वह अविश्वास प्रस्ताव के दौरान बोले भी थे. उन्होंने और खासतौर पर अमित शाह ने जिस तरह घुसपैठ कर रहे लोगों का जिक्र किया, उसके बहाने हो रही हिंसा पर बात की, उससे हो सकता है कि पीएम इस पर बोलें. पीएम की यात्रा अगर देखें, चुनावी और शासन करने की, तो पहले उन्होंने यूपी पर फोकस किया, फिर उत्तर-पूर्व पर. अभी दक्षिण पर उनका फोकस है, तो उस पर बहुत सारी चर्चा हो सकती है. काशी-तमिल संस्कृति के संगम पर बात हो सकती है. उत्तर-पूर्व की संस्कृति के ऊपर भी बात हो सकती है. प्रधानमंत्री के शासन काल में उत्तर-पूर्व में रेल लाइनों का जाल बिछना शुरू हुआ. इसके अलावा उत्तर पूर्व उनके ध्यान में भी है. अब जैसे, अब तक जो बात थी, उत्तर-पूर्व को संरक्षण के नाम पर काटकर रखने की- एल्विन ग्रेगियर की सलाह पर. उसको लगातार पाला-पोसा गया, तो मोदी सरकार ने सम्मिलन की कोशिशेंं की हैं. उसकी भी चर्चा हो सकती है. सीमाओं की, पाकिस्तान के साथ रिश्ते चूंकि जुड़े हैं, आजादी से लेकर आंदोलन तक की, तो उसकी भी चर्चा होगी. अमेरिका यात्रा का भी जिक्र हो सकता है, कई वर्षों के बाद अमेरिकी राष्ट्रपति के स्टेट गेस्ट कोई भारतीय शासनाध्यक्ष थे, तो उसका भी वर्णन हो सकता है. भारत-अमेरिका संबंधों की चर्चा, जिस तरह अफ्रीकी देशों में भारत अपने संबंध सुधार रहा है, क़षि क्षेत्र की जो प्रगति हुई है, कैसे भारत के चावल का निर्यात रोकने से अमेरिका में त्राहि मच गयी थी, इस बहाने भारत के कृषि-क्रांति की चर्चा कर सकते हैं. 

अगले साल का कुछ खाका भी खींच सकते हैं. कुछ कार्यक्रम रख सकते हैं. जहां तक यूसीसी का सवाल है, तो किसने सोचा होगा कि कोई प्रधानमंत्री लाल किले की प्राचीर से शौचालय क्रांति की बात करेगा? मोदी जिस तरह के लीडर हैं, तो वह देश को चौंकाते हैं, अपनी बातों को रखने में हिचकते नहीं और जनता से संवाद कायम करने का प्रयास करते हैं. तो, यूसीसी पर भी वह चर्चा कर सकते हैं और उसको एक डेवलपमेंटर फ्रेमवर्क में रखने की कोशिश होगी, उसको विकास से जोड़ा जाएगा, जैसे तीन तलाक के खात्मे के साथ मुस्लिम महिलाओं की स्थिति ठीक होने की बात को पेश किया गया. यूसीसी का मसला सबसे अधिक मुस्लिम समुदाय से जुड़ा है. हिंदुओं के तो उत्तराधिकार और संपत्ति के अधिकार के कानून तो बन चुके हैं. 

जनता देती है तात्कालिक मसलों पर ध्यान

बहुत दूर की चीजें जनता के लिए मसला नहीं होती है, वह तात्कालिक समस्या से जूझता है. अभी जैसे जनता महंगाई से जूझ रही है. वह उम्मीद करेगी कि महंगाई पर प्रधानमंत्री गायब करे. जनता अगर बहुत दूर के मुद्दों पर जाती, तो विकास की क्रांति हो गयी होती. महंगाई मुझे दिख रही है एक मसला और है, पूर्वांचल और बिहार में सूखे जैसे हालात का, तो शायद राहत की घोषणा हो जाए. अभी जैसे किसान सम्मान निधि दी जा रही है, अनाज दिया जा रहा है, तो हो सकता है, उसमें इजाफे का ऐलान कर दिया जाए. तो, जनता को दीर्घकालिक मुद्दों की जगह अल्पकालिक मसलों मेंं दिलचस्पी होती है. महंगाई पर पीएम के रुख को जानना चाहती है. अगर लंबे मुद्दों पर जाती तो भारत में विकास के आधार पर ही सरकार बनती. जनता उससे कभी बहकती नहीं, जो उसके तत्काल के मुद्दे हैं. 

[नोट- उपरोक्त दिए गए विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. ये जरूरी नहीं कि एबीपी न्यूज़ ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.]